Sunday, March 10, 2019

लौकिक -अलौकिक प्रेम (मु )

लौकिक -अलौकिक प्रेम 


सोचिये -
विचारिये -
जानिये -
पहचानिये 
प्रेम क्या है ?
नश्वर प्रेम -
अनश्वर प्रेम 
अस्थायी -स्थायी 
क्षणिक  .
हर मनुष्य का मन तितली है। 
हर मनुष्य का मन गिरगिट है.
हर मनुष्य का मन समुद्री तरंगें हैं 
मन चंचल मछली है। 
जो भी सुन्दर वस्तु हो ,
उस पर क्षणिक प्रेम 
तब तक जब तक उससे 
अधिक सुन्दर वस्तु दीख न पड़े.
कामांधकर व्यक्ति  का प्रेम
नज़र क्षणिक। 
स्थायी हो तो  काम बंधन ,
काम बंद। 
मोह होना ,मुग्ध होना
 वह भी प्रेम 
तुलसी का प्यार पत्नी से
केवल शारीरिक प्रेम।
पत्नी समझाई तो
मन पर चोट , मन में  चोट 
रत्नाकर का प्रेम
धन तन नहीं ,
साझाया नारद ने तो
 अपने को सम्भाला। 
भीष्म वैराग्य प्रेम ,त्याग। 
रावण का प्यार
सीता के प्रति 
अहंकार और बदला लेने का। 
जिन के मन में
भगवान बसे ,
मन में  हुआ
 अलौकिक प्रेम 
नश्वर जग में अनश्वर भक्ति ,
अमर कीर्ति। 
सोचो ,
समझो अमर बनने का मार्ग
अपनाओ।

स्वरचित-स्वचिंतक -यस। अनन्तकृष्णन जी। 

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