लौकिक -अलौकिक प्रेम
सोचिये -
विचारिये -
जानिये -
पहचानिये
विचारिये -
जानिये -
पहचानिये
प्रेम क्या है ?
नश्वर प्रेम -
अनश्वर प्रेम
अनश्वर प्रेम
अस्थायी -स्थायी
क्षणिक .
हर मनुष्य का मन तितली है।
हर मनुष्य का मन गिरगिट है.
हर मनुष्य का मन समुद्री तरंगें हैं
मन चंचल मछली है।
जो भी सुन्दर वस्तु हो ,
उस पर क्षणिक प्रेम
उस पर क्षणिक प्रेम
तब तक जब तक उससे
अधिक सुन्दर वस्तु दीख न पड़े.
कामांधकर व्यक्ति का प्रेम
नज़र क्षणिक।
नज़र क्षणिक।
स्थायी हो तो काम बंधन ,
काम बंद।
काम बंद।
मोह होना ,मुग्ध होना
वह भी प्रेम
वह भी प्रेम
तुलसी का प्यार पत्नी से
केवल शारीरिक प्रेम।
केवल शारीरिक प्रेम।
पत्नी समझाई तो
मन पर चोट , मन में चोट
मन पर चोट , मन में चोट
रत्नाकर का प्रेम
धन तन नहीं ,
धन तन नहीं ,
साझाया नारद ने तो
अपने को सम्भाला।
अपने को सम्भाला।
भीष्म वैराग्य प्रेम ,त्याग।
रावण का प्यार
सीता के प्रति
सीता के प्रति
अहंकार और बदला लेने का।
जिन के मन में
भगवान बसे ,
भगवान बसे ,
मन में हुआ
अलौकिक प्रेम
अलौकिक प्रेम
नश्वर जग में अनश्वर भक्ति ,
अमर कीर्ति।
सोचो ,
समझो अमर बनने का मार्ग
अपनाओ।
स्वरचित-स्वचिंतक -यस। अनन्तकृष्णन जी।
समझो अमर बनने का मार्ग
अपनाओ।
स्वरचित-स्वचिंतक -यस। अनन्तकृष्णन जी।
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