एस.अनंतकृष्णन का नमस्कार। वणक्कम।
शीर्षक --उदासियाँ कुछ दे नहीं सकती।
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मानव जीवन में
उदासियां की कमी नहीं ।
उदासी?
नौकरी नहीं मिली।
शादी नहीं हुई।
बच्चा नहीं।
बच्चा है बुद्धि नहीं।
अपना निजी घर नहीं।
नयी नयी उदासियाँ।
नयी नयी राहें।
व्यापार में घाटा।
तन की चोरी।
धन की चोरी।
मन की चोरी।
उदासी के कारण
बाहर नहीं जाता।
किसी से मिलता-जुलता नहीं।
यों उदास बैठने पर,
उदासी कुछ नहीं दे सकती।।
आलसी ही ईश्वर,
भाग्य लेकर रोता।
उदासी मानवीय देन।
उदासी ईश्वरीय देन।
जन्म से अंधा,
जन्म से रोगी
उदासी अपने अपने आप
बिन बुलाए
किसी न किसी रूप लेकर
छा जाती।।
चुप बैठा, मच्छर काटा।
बीमारी आ गयी।
सड़क पर चलता रहा ,
तिनका चढ़ा,आँख में गिरा।
हुई समान चुभा।
यों ही उदासियाँ आती,
दुख देती, सुख न देती।।
स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक
एस. अनंत कृष्णन,चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
नमस्ते। वणक्कम।
विचारों की अभिव्यक्ति में स्वतंत्रता चाहिए। समाज कल्याण के साहित्यकार धन के लिए नहीं लिखते।
जैसे समाचार पत्र नग्न चित्र अश्लीलता राजनीति अपनाकर धन अर्थ कमाकर अर्थ हीन जीवन बिताते हैं।
सार्थक जीवन अर्थ प्रधान नहीं, अतः
साहित्यकार अमर बनते हैं। साहित्यकार की जीवनी में भूखे प्यासे दरिद्र जिंदगी बीतनवाले ही अमर है।
भक्त त्यागराज कबीर प्रेमचंद दरिद्र देते। उनकी ज्ञान धारा में डुबकी लगाकर मोती की सुंदर माला बनाकर बाजार चलानेवाले डाक्टरेट की उपाधि पाकर प्राध्यापक बनकर रईस जीवन बिता रहे हैं।
समाज में सकारात्मक, नकारात्मक चिंतन की अभिव्यक्ति का अधिकार है।
सब्रता से सोचना चाहिए कि
लिखने का केंद्रीय भाव क्या है?
आसाराम जैसे नकली त्रेता युग में द्वापर युग में कलियुग में तीनों युगों में ढोंगी संन्यासी थे, है, होंगे ही। जग में ईश्वर ने गुलाब क…
[0:09 pm, 27/08/2023] sanantha 50: सर्वजन हिताय जो कुछ लिखा जाता है, वह साहित्य है।
साहित्य कारों के मन में सकारात्मक भी नहीं नकारात्मक जन कल्याण के लिए तुलना करना ही पड़ेगा। गुलाब के का ही वर्णन करना साहित्य नहीं है, कांटों का भी उल्लेख करना है।
इसकी अनुमति नहीं है तो साहित्यकार के विचारों का बंधन है। मैं अन्यत्र अपने ब्लाग में लिखूंगा ही। गलामी लेखक बनना नहीं चाहता। मैं अपने दर्ज सभी लेखों को मिटा दिया है।
धन्यवाद आदरणीय। मैं फ़िदा लेता हूँ।
[1:24 pm, 27/08/2023] sanantha 50: पति नपुंसक है तो अन्य पुरुषों का संबंध द्वापर युग में माननीय रहा। विचित्र वीर्य के तीन रानियांँ तो उनके पुत्र ऋषि के द्वारा।
आज कलियुग में शुक्लदान,
भाड़े की माँ। पांडवों का जन्म भी कुंती के पति पांडु के नहीं।
दशरथ के पुत्र भी।
द्वापर युग में त्रेता युग में ज्ञान का विस्फोट नहीं।
ज्ञानार्जन भी सीमित।
कलियुग में सर्वशिक्षा अभियान।
जो गोपनीयता प्राचीन युग में थी, आज खुल्लमखुल्ला
प्यार करेंगे हम दोनों,
इस दुनिया से न डरेंगे हम दोनों।
स्त्री --छुआ तो मैंने
मचाया उसने (पुरुष)शोर।।
हम तुम एक कमरे में बंद हो(आज)
साहित्यकार समाज कल्याण के साहित्यकार लिखेगा ही।
अश्लीलता लिखनी नहीं चाहिए,
अश्लीलता था लिखनेवाले धनाढ्य।
जनकल्याण के लिए लिखने के लेखक कौन में।
यह केवल कलियुग का धर्म नहीं।
कामायनी में छात्रों को हमेशा
नींद में उठाकर पूछने पर कामयनी का यही वाक्य प्रिय है,
नील परिधान बीच अधखुला अंग।
जय हो।
माँबाप काम आएँगे । पर मातापिता क अवहेलने की बात घन प्रधान विचार प्रदूषण और धन
प्रधान । शिक्षाक पैसे के गुलाम .वेतनभोगी ट्यूषन शुल्क के मिलतेही बेगार बन जाते शिक्षक और संस्थान ।छात्र केंद्रित शिक्षा सही या गलत ।पाश्चात्य प्रभाव है बडों का अनादार
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