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Thursday, March 6, 2025

तमिऴ्

 तमिऴ संस्कृत की तुलना योग्य भाषा है। अति प्राचीन।

 भाषा परिवर्तन शील है।

 बूढ़ों का मरना, नये लोगों का जन्म यह ईश्वर की सूक्ष्म लीला है। वैसे ही भाषाएँ  पुरानी भर्ती हैं, नयी उत्पन्न होती है।

यह भी ईश्वरीय चमत्कार हैं।

 देवभाषा संस्कृत का प्रचार एक वर्ग तक सीमित है।

पाली, अपभ्रंश, मैथिली ,ग्रीक, लैटिन , हिब्रू आदि समृद्ध भाषाएँ अब व्यवहार में नहीं।

 खड़ी बोली हिन्दी के रूप में अब विश्व की बड़ी भाषा।

 असली इतिहास भारतेंदु से।

 साकेत को समझनेवाले 

 मानस नहीं समझ सकते।

  अब तमिऴ जिंदा है।

  तमिऴ की सुरक्षा के नाम 

 अनेक आत्महत्या कर चुके।

 आकाश वाणी को वानोलि कहने  के लिए जान त्यागा।

सूर्य नारायण शास्त्री 

तमिऴ् को शुद्ध रूप से प्रयोग करने संस्कृत प्रभाव से छुडानै

 अपने नाम को  तमिऴ में 

 परितिमार्कलैज्ञर में बदल दिया।

 फिर भी उनकी तमिऴ क्रांति का  कोई  असर न पड़ा।

 अब तमिऴ् द्राविड़ माडल का चिन्ह  उदय सूर्य।

 अतः भारतीय एकता में संस्कृत आजकल की अंग्रेज़ी के समान रहा।   आज भी आ सेतु हिमाचल   की एकता   है तो संस्कृत, संस्कृति और आध्यात्मिक महत्व।

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