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Thursday, August 9, 2018

पत्नी का कठपुतला

Good
இனி ய காலை வணக்கம்
morning
सुप्रभात.
 आज मैं क्या लिखूँ.
आत्मा की बात  या परमात्मा  की बात.
समाज की बात  या सांस्कृतिक बात.
राजनैतिक  बात या राष्ट्र  की बात.
शादी की बात  या साथी की बात.
संयोग  की बात या संभोग का बात.
विष्णु की बात या शिव की बात.

मजहबी बात या मनौती  की बात.
स्वस्थ  या अस्वस्थ  बात
फिल्मी बात या फिर की बात.
यों सोचते सोचते रात बीती.
जो़रू  की जोर  की आवाज़
बर्तनों  की आवाज़
बडबडाना की आवाज
जो कुछ सोचा,
क्या सोचा क्या सिखा
पता नहीं, उठा, दाँत साफ कर
काफी पी, लंबा भाषण सुना.
सब भूल  पत्नी का लट्टू, कठपुतला.
कल देखा जाएगा  कवि की कल्पना की बात.

Monday, August 6, 2018

विस्मय सनातन धर्म शक्ति।

हिंदू  धर्म अर्थात  सनातन धर्म  प्राचीन काल से
 दिव्य शक्ति के लिए अति प्रसिद्ध है.

हज़ारों  मंदिर  बनते हैं  तो
हर मंदिर के पीछे  की कहानियाँ 
अपूर्व ही नहीं ,
 शक्ति का प्रमाण  भी  है.
  ऐसे  ही मंदिरों में एक है   नाच्चियार कोइल अर्थात  नारायणी मंदिर।

  नरैयूर  तमिल शब्द है. एक गाँव का  नाम  है.
नरै  का मतलब है  शहद।
 तिरुमंगै याळ वार   ने लिखा  है --
  शहद  भरे  फूल ,
 सुगन्धित तालाबों से घेरे हैं
तिरुनरैयूर,   जहाँ  जाकर मैंने देखा
"श्री वेंकटेश्वर" को.
  इस   तीर्थ क्षेत्र  की कहानी अद्भुत हैं तो
 यहाँ के पत्थर के  गरुड़ की महिमा
अपूर्व अतिशय है.
महाविष्णु के भक्त है मेधावी महर्षि।
उन्होंने  चाहा कि  महाविष्णु ही अपने दामाद बने.
क्या  विष्णु भगवान को दामाद बनाना  सरल काम है?
 उन्होंने  मौलश्री पेड़ के  नीचे  बैठकर कठोर तपस्या की।
कठोर तपस्या के फलस्वरूप  फाल्गुन महीने के उत्तरा
नक्षत्र में  श्री देवी ही पुत्री के रूप में  पैदा हुई।
 जब  श्री देवी विवाह के योग्य बनी ,
तब महाविष्णु अपने वाहन
गरुड़ पर बैठकर  नरैयूर  पहुंचे।
श्री देवी से विवाह करने की इच्छा प्रकट की।

 तब पहली बार  मेधावी महर्षि ने  भारत में लड़की के पिता होकर भी
कन्यादान करने निम्नलिखित शर्तें रखीं :-
 विष्णु भगवान से  कहा ,
आप को हमेशा मेरी बेटी  की बात माननी चाहिए।
हर काम में उसीको प्राथमिकता और प्रधानता देनी चाहिए।
महाविष्णु  ने सहर्ष  महर्षि की बात  मान ली|
 गरुडाळवार  के  सामने  शादी हुई।
भगवान ने गरुडाळवार   से  कहा -
"तुम भी यहीं  रहकर भक्तों पर अनुग्रह कर"।

    अब  उस पत्थर के गरुडाळवार  की मूर्ती की विशेषता है कि
वही  उतसव मूर्ति  है.

उसको उठाते वक्त चार आदमी काफी है.
बाहर आते आते वजन बढ़ता रहता है.
और उठानेवालों की संख्या बढ़ती रहती हैं , वैसे ही
वापस आते समय भी,पर  मंदिर के  अंदर
चलते चलते उठाने वालों की संख्या  बढ़ती हैं,
पर मंदिर के अंदर जाते ही उठाने चार आदमी काफी हैं।
यही  इस मंदिर  की  बड़ी अतिशय विशिष्टता है.








Sunday, August 5, 2018

पूजा करने चली आई .

आध्यात्मिक मार्ग का मतलब है
बाह्याडम्बर रहित ईश्वर वंदना।
किसी के मन में धन के अभाव की चिंता उत्पन्न करना
वास्तविक आद्यात्मिक्ता नहीं है.
सुभद्राकुमारी चौहान जैसे kavita की प्रेरणा देना भक्ति नहीं है
देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं
धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं
मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं
मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लाई
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आई .

हिन्दू समाज

हिन्दू  समाज  में  एकता नहीं है.

मंदिरों में भी  उच्च वर्ग मंदिर ,दलित मंदिर,
पुजारी में भी नगर पुजारी।  ग्राम पुजारी।
मन्त्र रहित पूजा , मन्त्र रहित पूजा।
तमिलनाडु में संस्कृत अर्चना। तमिल अर्चना।
जब तक  ये भेद भाव हिन्दुओं में  प्रचलित रहेंगे ,
तब तक तीसरे  को लाभ होता  रहेगा।
चर्च गया वहाँ  नहीं लिखा गैर ईसाई प्रवेश  न करें।
पर मंदिर में गैर हिन्दू का प्रवेश मना  है.
इसके  मूल में विदेशों का मंदिर लूटना, डाका डालना , मूर्ति तोडना।
इसको  न  समझकर हिन्दू को अवहेलना हिन्दू के लोग ही करते हैं.
प्रार्थना  के विषय में भी मत भेद हैं.



Wednesday, August 1, 2018

अचंचल हो तो सुख ही सुख है.

आज श्री गणपतिसच्चिदानंद 
आश्रम में ध्यान में बैठा तो चंचल मन में कई प्रकार के विचार आये. 
क्या ये मंदिर, ये चर्च, ये मसजिद का संख्याओं बढाने से 
वास्तव में भक्ति का प्रचार हो रहा है या वाणिज्य प्रवृत्तियां बढा रहे हैं. 
कई प्रकार के आश्रम बाह्याडंबर से, 
आधुनिक सुख सुविधाएं से माया मोह धन लोलुपता
बढा रहे हैं या निस्पृह मानव सेवा की ओर जा रहे हैं.
जग की हर बात के दो पहलू है सत्य असत्य, भला बुरा,
जन्म मरण सुख दुख इन सब में माया मोह सद्यःफल की आशा, अतः मन गिरगिट के समान बदल रहा है.
लौकिक आशा में लोग अलौकिकता को भूल रहे हैं
एक आश्रम में ध्यान मग्न बैठने पर कहीं दूसरे आश्रम के चाहक या भक्त उसके मन पसंद आश्रम की श्रेष्ठता बताकर वहाँ से जाने का प्रयत्न करता है.
वैसे ही नये नये मंदिर का यशोगान करके मन बदल ने का माया पूर्ण नाटक चला रहे हैं.
माया भरी संसार में सर्वेश्वर की लीला अति सूक्ष्म है.
सूत्रधार वही है. वह मानव मन की स्थिरता अस्थिरता को तुला पर चलकर फल प्रदान कर रहाहै.
उसके अनुसार मानव जीवन में शांति अशांति, सुख दुख
बदल बदलकर आते हैं.
मन निश्चल, निश्छल, अचंचल हो तो सुख ही सुख है.

Tuesday, July 31, 2018

ईसाई मशीनरियों के हिंदी गद्य -पद्य साहित्य .

ईसाई मशीनरियों के हिंदी गद्य -पद्य साहित्य .

 पृथ्वी  पर जब जब अति अत्याचार,अनाचार ,अशांति  आदि चरम सीमा पर पहुँचते हैं ,तब विश्व भर की शांति के लिए  धर्माचार्य का अवतार होता है.  मत -मतान्तर अलग है ,धर्म अलग हैं .
सनातन  धर्म ,ईसाई  धर्म ,मुग़ल धर्म , जैन धर्म ,बौद्ध धर्म  आदि का जन्म इंसानियत या मनुष्यता जगाने  के लिए.   आपस में प्रेम ,परोपकार ,दयालुता ,सेवा भाव ,संतोष , शान्ति ,सहानुभूति  आदि गुण
के   विकसित  करने के लिए.
ऐसे धार्मिक सिद्धांत के विकास  में गीत और वाद्य-यंत्रों का अपना महत्त्व है.
सनातन धर्म में कितने ही अवतार पुरुष और  ईश्वर तुल्य लोग पृथ्वी पर पैदा हुए , सब का अपना वाद्य यन्त्र है.
शिव  के हाथ  में डमरू, विष्णु के हाथ में शंख , कृष्ण के हाथ में मुरली , सरस्वती के  हाथ में वीणा .

 गद्य  की देन  और व्यवहार  भारत में अंग्रेजों  के आने के बाद ही अधिक विक्सित हुआ. अधिकाँश भारतीय भक्ति साहित्य  काव्य , भजन आदि.
   जब भारत  में अंग्रेज़ी   आये , तब भारत के  लोग सुखी और विलास प्रिय रहे. आप  सब ने शतरंज के खिलाड़ी कहानी पढ़ी होगी.  यहाँ शरंज के मुहरे के राजा को बचाने लोग आपस में लड़कर मर रहे थे , इसका लाभ उठाकर अंग्रेज़ी भारत में आये.  भारतीय धार्मिक लोगों के जातियों के भेद , उच्च- नीच के बीच अछूत लोगों की दुर्दशा, सार्वजनिक स्थानों में ,मंदिरों में निम्न वर्ग लोगों  का प्रवेश मना, बेगार प्रथा, सती प्रथा ,बाल विवाह , अनमेल विवाह , विधवाओं का अपमान आदि में सुधार लाने के विचार तब के युग पुरुष राजाराम मोहन राय ,महात्मा गांधीजी  आदि के मन में उठा. नारी उत्थान में स्त्री शिक्षा ,स्त्री सुधार , समाज में स्त्रियों का समान महत्त्व , विधवा पुनर्विवाह ,विधवा विवाह ,तलाक आदि सुधार लाने में भारतीय नेता और उनके अनुयायी आगे कदम उठाने लगे.
     ईसाई मिशनरियों ने  इस परिस्थिति का सठीक  लाभ उठाया. भारत के दलित वर्ग आसानी से ईसाई धर्म का पालन करने लगे. गिरजा घर  बनवाकर वहाँ प्रेम का सन्देश देने लगे. देव दूत ईसा पापियों को माफ करने रक्त बहा रहे है. देवालय में अपने अपराध स्वीकार कर चर्च के पादरी द्वारा पापों से मुक्त होकर अपराध रहित जीवन बिताने  का मौका मिला.
  तब लोगों में भक्ति और प्यार की भावना और ईसाई सन्देश देने हिंदी में गीत गाने लगे.

आज  मेरा विषय ईसाई भक्ति गीत हिंदी में . पर तत्काल मुझे कवियों  के नाम नहीं मिले .
पर गीत तो मिलते हैं. उन गीतों के पद दयामयी ईसा की ओर मोहित करने भारतीय दलित दीन  दुखियों को
सांत्वना  देने लगे.
ईसाई धर्म के प्रचार और विकास में  प्रधान रहा -उनका सेवा भाव. चर्च ,चर्च के पास विद्यालय , अनाथालय ,अंधों का विद्यालय,बहरों के विद्यालय , विकलांगों का विद्यालय  आदि सेवालय के कारण लोक प्रिय बन गए.
हिन्दू धर्म के छूत-अछूत की भावना दूर होती रही.
मदर  तेरसा को अपनी सेवा के कारण  नोबल पुरस्कार भी मिला.
अब देखेंगे   ईसाई गीत साहित्य.
   साहित्य के विकास में अनुवाद साहित्य का  अपना विशेष महत्त्व है.
अतः जितने बाइबिल  सम्बन्धी अनुवाद हुए हैं , वे सब हिंदी साहित्य के भण्डार हैं.
ग्रन्थ जो भी हो, वे हमें सत्पथ दिखाते  हैं .
जैसे भी अश्लील साहित्य हो ,वह अश्लीलता बनाए रखने नहीं , अश्लीलता मिटने-मिटाने के लिए हैं.
ग्रन्थ  नफरत बढाने से अमर नहीं  बनते , मानवता के सन्देश से अमर बनते हैं.
हिंदी में प्रकाशित बाइबिल साहित्य ग्रन्थ   हैं---
१. बच्चों  की बाइबिल ,२. पुल फिट बाइबिल, ३.राटारी  अध्ययन बाइबिल ४. डेक बैबले ५.द्विभाष बाइबिल ६. मसीही गीत की पुस्तक .
इस प्रकार हिन्दी भक्ति साहित्य में ईसाई धर्म के प्रचार ग्रन्थ उपलब्ध हैं .


क्या भक्ति और ईश्वर की कृपा के लिए धन की ज़रुरत  है ?


“परमेश्वर और धन में समानता है”
(आगे पढ़ें ‘धन’ की परिभाषा और परिणाम)
वो ये कि,भरोसा दोनो में से , एक पर ही किया जा सकता है ।
प्रभु यीशु कहते हैं, “तुम परमेश्वर के साथ साथ धन की भी सेवा नहीं कर सकते” मत्ती ६:२४
भरोसे के मामले में, मुकाबला परमेश्वर और शैतान के बीच नहीं है, पर परमेश्वर और धन के बीच है।
इसका अर्थ है आपके जीवन में जिस तख्त पर परमेश्वर को बैठना चाहिए
वहां पर आप धन को बैठा सकते हैं।
एक जीवित है तो दूसरा बेजान (मूरत समान)
* तो आखिर “धन” की परिभाषा क्या है?
धन वो “शक्ति” है जो हमें हर स्थिति का सामना करने और संसार में सफल होने का ‘झूठा’
भरोसा दिलाती है.
धन = पैसा + संपत्ति + ज्ञान + शिक्षा +परिवार + धर्म + कर्म + तंत्र + सामाजिक पहुंच + राजनीतिक पहुंच
परमेश्वर का वचन कहता है ‘धन’ के पंख होते हैं और वो पक्षी की तरह हमारे पास से उड़ जाता है। नीति वचन २३:५, हमारा भरोसा भी हवा में उड़ जाएगा।
* तो परिणाम क्या होता है
धन हमें कबर तक तो सही सलामत पहुंचा देगा, ऊपर शायद मकबरा भी बनवा दे।
या हमारी चिता की लकड़ियां सजवा दे।
या ईसाई कब्रिस्तान में हमारे लिये संगमरमर का क्रूस लगवा दे।
लेकिन उसके आगे धन की पहुंच नहीं है।
धन शक्ति है, मनुष्य का प्रयास है, सामर्थ है, मनुष्य द्वारा उपजाया हुआ फल है। जिसे कीड़े खा लेते हैं।
धन हमारे शरीर और स्वार्थ को खड़ा करता है।
धन पर भरोसा हमें पाप से मन फिराने या मुक्ति दिलाने में काम नहीं आता है।
प्रभु यीशु क्या दावा करते हैं?
“मैं ही पुनरूत्थान और जीवन हूँ जो कोई मुझ पर भरोसा करता है वो मृत्यु वश नहीं होता पर शाश्वत जीवन पाता है”
आज सवाल है,
भरोसा किस पर है?
स्वामी   विवेकानंद  भी धन को अधिक महत्त्व न देते.

“मर-मर के जीवन में आया”
(असली और नकली क्रूस – कविता)
सोचा था, सोने का मैंने
हीरे मोती, जड़ा हो जिसमें
चाहा वो ही, क्रूस था मैंने
जो प्रिय हो सबकी आंखों मैं
दूर दूर तक, ढूंढा मैंने
देश विदेश, भी घूमा था मैं
भूलभुलैय्यों, की गलियों में
दुनिया की चौड़ी सड़कों में
लोगों ने भी, पते दिए थे
घर बाजार, और उन लोगों के
जिनके गले, कान, चोगे पर
क्रूस के बुत भी लटक रहे थे
उस दिन मैं, यूँ बंजारा सा
उसे खरीदने, निकल पड़ा था
एक आवाज़, पीछे से आयी
मैंने अपनी नज़र घुमाई
गौर से देखा, मैंने उसको
हांथों के सब, उन ज़ख्मों को
क्रूस था मेरा, मैं ही देता
उसको जो पीछे हो लेता
कांधे पर जब, उसे उठाया
बोझ से दबकर, उठ न पाया
दर्द, अपमान, हो लहूलुहान मैं
मर-मर के जीवन में आया
अब मैं जीवित, नहीं रहा हूँ
मरकर फिर से, जी भी उठा हूँ
पुनुरुत्थान और, जीवनदाता
मृत्युंजय प्रभु क्रूस विराजा
“जब मर जाता है, तो बहुत फ़ल लाता है”

आज सवाल है

कहीं नकली क्रूस लिए तो नहीं फिर रहे ?
ईसाई कब्रिस्तान में हमारे लिये संगमरमर का क्रूस लगवा दे।
लेकिन उसके आगे धन की पहुंच नहीं है।
धन शक्ति है, मनुष्य का प्रयास है, सामर्थ है, मनुष्य द्वारा उपजाया हुआ फल है। जिसे कीड़े खा लेते हैं।
धन हमारे शरीर और स्वार्थ को खड़ा करता है।
धन पर भरोसा हमें पाप से मन फिराने या मुक्ति दिलाने में काम नहीं आता है।
प्रभु यीशु क्या दावा करते हैं?
“मैं ही पुनरूत्थान और जीवन हूँ जो कोई मुझ पर भरोसा करता है वो मृत्यु वश नहीं होता पर शाश्वत जीवन पाता है”
आज सवाल है,
भरोसा किस पर है?
स्वामी   विवेकानंद  भी धन को अधिक महत्त्व न देते.

“मर-मर के जीवन में आया”
(असली और नकली क्रूस – कविता)
सोचा था, सोने का मैंने
हीरे मोती, जड़ा हो जिसमें
चाहा वो ही, क्रूस था मैंने
जो प्रिय हो सबकी आंखों मैं
दूर दूर तक, ढूंढा मैंने
देश विदेश, भी घूमा था मैं
भूलभुलैय्यों, की गलियों में
दुनिया की चौड़ी सड़कों में
लोगों ने भी, पते दिए थे
घर बाजार, और उन लोगों के
जिनके गले, कान, चोगे पर
क्रूस के बुत भी लटक रहे थे
उस दिन मैं, यूँ बंजारा सा
उसे खरीदने, निकल पड़ा था
एक आवाज़, पीछे से आयी
मैंने अपनी नज़र घुमाई
गौर से देखा, मैंने उसको
हांथों के सब, उन ज़ख्मों को
क्रूस था मेरा, मैं ही देता
उसको जो पीछे हो लेता
कांधे पर जब, उसे उठाया
बोझ से दबकर, उठ न पाया
दर्द, अपमान, हो लहूलुहान मैं
मर-मर के जीवन में आया
अब मैं जीवित, नहीं रहा हूँ
मरकर फिर से, जी भी उठा हूँ
पुनुरुत्थान और, जीवनदाता
मृत्युंजय प्रभु क्रूस विराजा
“जब मर जाता है, तो बहुत फ़ल लाता है”

आज सवाल है
कहीं नकली क्रूस लिए तो नहीं फिर रहे ?
जब  ईसाई मशिनारियाँ   भारत आये , तब उन्होंने महसूस  किया --
बगैर  भारतीय  भाषा के जनसाधारण तक  ईसा का महत्त्व समझाने ,
ईसा का भक्त  बनाने भारतीय भाषाओं  का ज्ञान आवश्यक हैं .
उन्होंने  हिन्दी सीखना शुरू किया. हिंदी  सीखने के बाद हिंदी में
बाइबिल  का अनुवाद किया.
ईसामासेह  के यशो गान  के लिए हिन्दी एन गीत लिखने लगे .
अतः उनका बाइबिल   हिंदी अनुवाद साहित्य  गद्य शैली में शुरू हुआ.
बाइबिल  का हिंदी अनुवाद १७४७  ई. में बेनजामीन शिल्त्ज़  द्वारा किया गया .
समुल्ला  डोक्टारियां  क्रिष्टियान .
१९वीन शताब्दी में  फोर्ट विल्लियम कालेज  और डेनिश मिशन ने
हिंदी बाइबिल  लिखने के काम में लगे.
सन १८०९ में आधा भाग और १८ ११ में आधा भाग  लिखकर सम्पूर्ण न्यू टेस्टामेंट
का प्रकाशन हिंदी में हुआ.   १८१८ ई. में ओल्ड टेस्टमंट का हिन्दी में प्रकाशन हुआ.
हिंदी  गद्य का  जोर पकड़ने लगा.
हिन्दी  में पूरे अनुवाद और संशोधन  का काम पाश्चात्य विद्वानों ही किया.
वर्नाकुलर एजुकेशन  सोसाइटी की स्थापना कर हिंदी में पाठ्य  पुस्तकें भी लिखने लगे.
परीक्षा सम्बन्धी उन के प्रमुख ग्रन्थ  हैं --१. मत परिक्षा २. धर्माधर्म परीक्षा ३. येसु सृष्टि दर्शन ४.मूर्ती पूजा  का वृत्तांत ५. स्त्रियों का वर्णन ६.निरल जल ७.धर्म तुला ८ केशवरा की कथा ९ ऋण विचार १० ईसू विवरण ११.आर्य तत्व विवरण १२. गुरु परीक्षा  आदि.
उपर्युक्त गद्य साहित्य के आलावा  पद्य साहित्य के निम्न ग्रथ भी प्रक्स्षित  हुए.
१.मंगल समाचार दूत  २. वुह श्रेष्ठ मूल कथा ३. सृष्टि चरितामृत ४.गीत  और भजन
५.प्रेम दोहावली ६. मसीही गीत किताब ७. दाऊद माला ८. भजन संग्रह  ९. जान पार्सन लिखित “छंद संग्रह १०.सुबोध पत्रिका ११.गीतों की पुस्तक  १२ . धर्म प्रसार १३ गीत संग्रह १४.उपमा मनोरंचिका
१५.स्तुति प्रक्स्श १६. ईसू संकेतन १७.ईसू गीत  आदि. गीत संग्रह के मुख्य कविओं के नाम हैं-जान पार्सन  ,जान क्रिश्तियन ,जान बेबर्लें ,जान उल्लामन बर्नाड आदि.
इन लेखक और कवियों के भाषा अरबी -फारसी ,व्रज ,पूर्वी हिंदी ,खडी बोली आदि मिश्रित भाषा  है.

Saturday, July 28, 2018

भारत का भक्त बनो


वड कलै- तेन्कलै वाद विवाद. भगवान विष्णु को मानते हैं .
पर तिलक -U आकार या Y आकार इस के लिए बुद्धिहीन पशु सा लड़ते हैं .
किसने सवाल किया है , उसको साहस है किया --
अल्ला किसका भगवान है सिया का ,सुन्नी का या लाब्बे का?
ईसा मसीह केतोलिक का या प्रोटोस्टेंट का या सेवंत डे का है.
हिन्दुओं की दुर्बलता जातियाँ,सम्रदाय , मनुष्य -मनुष्य का अपमान
धर्म परिवर्तन पर लड़ने वाले हिन्दू धर्म परिवर्तन के मूल पर सोचते नहीं.
जो दलित ईसाई धर्म को अपनाते हैं उनमें अधिकाँश अपमानित ,
बेगार ,गुलाम. उनके पूर्वः केवल खेती उनको न कपडा , न बढ़िया खाना न वेतन , उनके मेहनत को बासी खाना ,पुराने कपडे.
कालान्तर में उनका आदर ,चर्च प्रवेश जूते सहित ,सेवा अनाथालय सब परिवर्तन में लाचार कर दिया.
इन बातों पर गहराई से सनातन धर्मियों को विचार करना चाहिए


अल्ला तमिल मुस्लिम की प्रार्थना या इबादत सुनेंगे या नहीं .
क्या मुरुगन तमिल भगवान है ? तो सुब्रह्मनियम का नाम क्यों ?
हरे! भगवान को स्वार्थ वश छिन्न -भिन्न करके इंसानियत को न गाढ्ना.
भगवान तो एक है , उनकी हवा , पानी ,सूर्य -चन्द्र प्रकाश सब के लिए.
न सनातन के लिए , न शैव के लिए ,न वैष्णव के लिए ,न जैन के लिए , न बौद्ध के लिए,
न ईसाई के लिए, न मुग़ल पठान,खान के लिए.

इसका प्रमाण जनम --मृत्यु.
भूकंप में सब के सब मरते हैं .
सुनामी में सब के सब.
संयोग से एक ईसाई मुग़ल से सभोग करेगा तो बच्चा जन्म होगा ही.
यह मजहब विरोध सम्भोग गर्भ धारण को नहीं रोकता. वैसे ही मुग़ल -हिन्दू और अन्य धर्मवालों के आपसी धर्म विपरीत सम्भोग से बच्चे पैदा होंगे ही . विदुर का जन्म हुआ.
ब्राह्मण में दोपहर हरिजन -मध्याह्न PARAIYAN है कि नहीं.
कन्नादासन ने गाया है --रात्री में शास्त्र, जाति-सम्प्रदाय ,मजहब शैव वैष्णव हिन्दू मुस्लिम ईसाई न देखा जाता. आज कलियुग का सत्य प्रमाण है --विपरीत जातीय विवाह.
इंदिरा गांधी ,करूणानिधि , करूणानिधि गर्व से कहते हैं मेरे परिवार में सब जातियीं के बहुएं हैं.
ईश्वरीय नियम आसुरी शक्ति के मिलावट, चन्द्र गुप्त-यूनानी सम्बन्ध , अकबर के अन्तःपुर में हिन्दू कन्याएं ताम कम देव नहीं दिखता यह हिदू है ,यह ईसाई है यह मुग़ल है. देश-काल जातियाँ-सम्रदाय ,मज़हब से पार कावासना.
इसीलिये ऋषी मूल नदी मूल न देखा जाता है.

भारत- भक्त बनना ही ईश्वर की प्रार्थना का फल मिलने का मार्ग है.