Wednesday, August 1, 2018

अचंचल हो तो सुख ही सुख है.

आज श्री गणपतिसच्चिदानंद 
आश्रम में ध्यान में बैठा तो चंचल मन में कई प्रकार के विचार आये. 
क्या ये मंदिर, ये चर्च, ये मसजिद का संख्याओं बढाने से 
वास्तव में भक्ति का प्रचार हो रहा है या वाणिज्य प्रवृत्तियां बढा रहे हैं. 
कई प्रकार के आश्रम बाह्याडंबर से, 
आधुनिक सुख सुविधाएं से माया मोह धन लोलुपता
बढा रहे हैं या निस्पृह मानव सेवा की ओर जा रहे हैं.
जग की हर बात के दो पहलू है सत्य असत्य, भला बुरा,
जन्म मरण सुख दुख इन सब में माया मोह सद्यःफल की आशा, अतः मन गिरगिट के समान बदल रहा है.
लौकिक आशा में लोग अलौकिकता को भूल रहे हैं
एक आश्रम में ध्यान मग्न बैठने पर कहीं दूसरे आश्रम के चाहक या भक्त उसके मन पसंद आश्रम की श्रेष्ठता बताकर वहाँ से जाने का प्रयत्न करता है.
वैसे ही नये नये मंदिर का यशोगान करके मन बदल ने का माया पूर्ण नाटक चला रहे हैं.
माया भरी संसार में सर्वेश्वर की लीला अति सूक्ष्म है.
सूत्रधार वही है. वह मानव मन की स्थिरता अस्थिरता को तुला पर चलकर फल प्रदान कर रहाहै.
उसके अनुसार मानव जीवन में शांति अशांति, सुख दुख
बदल बदलकर आते हैं.
मन निश्चल, निश्छल, अचंचल हो तो सुख ही सुख है.

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