हिंदू धर्म अर्थात सनातन धर्म प्राचीन काल से
दिव्य शक्ति के लिए अति प्रसिद्ध है.
हज़ारों मंदिर बनते हैं तो
हर मंदिर के पीछे की कहानियाँ
अपूर्व ही नहीं ,
शक्ति का प्रमाण भी है.
ऐसे ही मंदिरों में एक है नाच्चियार कोइल अर्थात नारायणी मंदिर।
नरैयूर तमिल शब्द है. एक गाँव का नाम है.
नरै का मतलब है शहद।
तिरुमंगै याळ वार ने लिखा है --
शहद भरे फूल ,
सुगन्धित तालाबों से घेरे हैं
तिरुनरैयूर, जहाँ जाकर मैंने देखा
"श्री वेंकटेश्वर" को.
इस तीर्थ क्षेत्र की कहानी अद्भुत हैं तो
यहाँ के पत्थर के गरुड़ की महिमा
अपूर्व अतिशय है.
महाविष्णु के भक्त है मेधावी महर्षि।
उन्होंने चाहा कि महाविष्णु ही अपने दामाद बने.
क्या विष्णु भगवान को दामाद बनाना सरल काम है?
उन्होंने मौलश्री पेड़ के नीचे बैठकर कठोर तपस्या की।
कठोर तपस्या के फलस्वरूप फाल्गुन महीने के उत्तरा
नक्षत्र में श्री देवी ही पुत्री के रूप में पैदा हुई।
जब श्री देवी विवाह के योग्य बनी ,
तब महाविष्णु अपने वाहन
गरुड़ पर बैठकर नरैयूर पहुंचे।
श्री देवी से विवाह करने की इच्छा प्रकट की।
तब पहली बार मेधावी महर्षि ने भारत में लड़की के पिता होकर भी
कन्यादान करने निम्नलिखित शर्तें रखीं :-
विष्णु भगवान से कहा ,
आप को हमेशा मेरी बेटी की बात माननी चाहिए।
हर काम में उसीको प्राथमिकता और प्रधानता देनी चाहिए।
महाविष्णु ने सहर्ष महर्षि की बात मान ली|
गरुडाळवार के सामने शादी हुई।
भगवान ने गरुडाळवार से कहा -
"तुम भी यहीं रहकर भक्तों पर अनुग्रह कर"।
अब उस पत्थर के गरुडाळवार की मूर्ती की विशेषता है कि
वही उतसव मूर्ति है.
उसको उठाते वक्त चार आदमी काफी है.
बाहर आते आते वजन बढ़ता रहता है.
और उठानेवालों की संख्या बढ़ती रहती हैं , वैसे ही
वापस आते समय भी,पर मंदिर के अंदर
चलते चलते उठाने वालों की संख्या बढ़ती हैं,
पर मंदिर के अंदर जाते ही उठाने चार आदमी काफी हैं।
यही इस मंदिर की बड़ी अतिशय विशिष्टता है.
दिव्य शक्ति के लिए अति प्रसिद्ध है.
हज़ारों मंदिर बनते हैं तो
हर मंदिर के पीछे की कहानियाँ
अपूर्व ही नहीं ,
शक्ति का प्रमाण भी है.
ऐसे ही मंदिरों में एक है नाच्चियार कोइल अर्थात नारायणी मंदिर।
नरैयूर तमिल शब्द है. एक गाँव का नाम है.
नरै का मतलब है शहद।
तिरुमंगै याळ वार ने लिखा है --
शहद भरे फूल ,
सुगन्धित तालाबों से घेरे हैं
तिरुनरैयूर, जहाँ जाकर मैंने देखा
"श्री वेंकटेश्वर" को.
इस तीर्थ क्षेत्र की कहानी अद्भुत हैं तो
यहाँ के पत्थर के गरुड़ की महिमा
अपूर्व अतिशय है.
महाविष्णु के भक्त है मेधावी महर्षि।
उन्होंने चाहा कि महाविष्णु ही अपने दामाद बने.
क्या विष्णु भगवान को दामाद बनाना सरल काम है?
उन्होंने मौलश्री पेड़ के नीचे बैठकर कठोर तपस्या की।
कठोर तपस्या के फलस्वरूप फाल्गुन महीने के उत्तरा
नक्षत्र में श्री देवी ही पुत्री के रूप में पैदा हुई।
जब श्री देवी विवाह के योग्य बनी ,
तब महाविष्णु अपने वाहन
गरुड़ पर बैठकर नरैयूर पहुंचे।
श्री देवी से विवाह करने की इच्छा प्रकट की।
तब पहली बार मेधावी महर्षि ने भारत में लड़की के पिता होकर भी
कन्यादान करने निम्नलिखित शर्तें रखीं :-
विष्णु भगवान से कहा ,
आप को हमेशा मेरी बेटी की बात माननी चाहिए।
हर काम में उसीको प्राथमिकता और प्रधानता देनी चाहिए।
महाविष्णु ने सहर्ष महर्षि की बात मान ली|
गरुडाळवार के सामने शादी हुई।
भगवान ने गरुडाळवार से कहा -
"तुम भी यहीं रहकर भक्तों पर अनुग्रह कर"।
अब उस पत्थर के गरुडाळवार की मूर्ती की विशेषता है कि
वही उतसव मूर्ति है.
उसको उठाते वक्त चार आदमी काफी है.
बाहर आते आते वजन बढ़ता रहता है.
और उठानेवालों की संख्या बढ़ती रहती हैं , वैसे ही
वापस आते समय भी,पर मंदिर के अंदर
चलते चलते उठाने वालों की संख्या बढ़ती हैं,
पर मंदिर के अंदर जाते ही उठाने चार आदमी काफी हैं।
यही इस मंदिर की बड़ी अतिशय विशिष्टता है.
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