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Thursday, September 17, 2020



 जुगनू 


 जुगनू में चमक

मानव में नहीं।

जग की रचनाएं अतिविचित्र।

जागृत जीवन में

जुगनू की रोशनी काफी

सूर्य की चमक जीवन में।

उल्लू की अंधेरे की सृष्टि

मानव को नहीं,है तो

चोर डाकू। स्मगलर्स

जी नहीं सकते।

मानव में सत्य की चमक

जुगनू सम होते हैं,

असत्य की चमक सूर्य सम।

अतः सत्य जुगनू सा

टिम टिम करता है।

वही देता सुख दुख असह्या सह्य।।

स्वरचित सवाचिंतक

एस.अनंतकृष्णन।

 

कल्पना के पंख उड़ते हैं ,

कंजूसी अभिव्यक्ति की नहीं ,

श्रोताओं के मनो भावों की। 

ऐसा लिखना जिसमें न हो राजनीति। 

ऐसा लिखना न मत-मतान्तरों का भेद। 

गुण  ही गुण जिसमें वैमनस्य का जूँ  भी न रेंगे। 

लिखने में क्या व्यवहार में अलग भाव.

एक शब्दों के कर्णधार को विद्यालय के 

वार्षिकोत्सव में मुख्यातिथि का सम्मान दिया।

अतिथि महोदय  आये ,अपने विशेष भाषण में 

इतनी तालियों  की आवाज़ सूनी। 

जोश में कहा संस्था की प्रगति के लिए 

दो लाख देता हूँ।  फिर तालियाँ। 

चार साल हो गए वे बहाने बनाने में पटु निकले। .

अभिव्यक्ति में क्या कंजूसी ,व्यवहार तो अलग.

कल्पना के घोड़े दौड़ाने  में मितव्ययी क्यों ?

वर्णनातीत वर्णन तिल को ताड़ बनाना ,

ताड़ को तिल  बनाना शब्दानंद। 

दिलानन्द तिल पर भी नहीं। 

कल्पना पाताल आसमान एक कर सकता।

हवा में महल बनाता। 

स्वरचित स्वचिंतक -एस। अनंतकृष्णन।

 जीवन /जिंदगी। 

नमस्कार। वणक्कम। 

जी  वन है तो सुन्दर नंदवन  जिंदगी। 

जिंदगी झाडी हो तो वन में सन्यासी जीवन। 

ज़िंदा आतंकित मनुष्य  की जिंदगी 

अति वेदना ,सिद्धार्थ राजकुमार को 

वन में जीवन अति ज्ञानप्रद। 

जी   वन जैसा होने पर 

अर्थात  जी में खूँख्वार विचार। 

लोभ ,काम अहंकार हो तो 

वनजीवन  मानव जीवन।

नाना प्रकार के वन जीव के भय। 

वही जी में तीर्थंकर हो तो 

घने वन आदमखोर पशु ,हिरन 

एक ही घाट पर पानी पीते। 

संकीर्ण तंग मय  माया भरा  जी 

शांत संतोष चैन  भरा जीवन। .

स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन।


बूढ़े की रक्षा 

 देखिए ईश्वर उस बुड्ढे की

 जान बचाने अपने 

एक प्रतिनिधि 

भेजा है।

वह चाहें तो रक्षक।

चाहें तो भक्षक।

कोराना आतंक,

बचने सरकार सज्जनों का ऐलान।

न मानेंगे ,तो प्राण 

पखेरु उड़ने तैयार।

आत्मा में परमात्मा 

परमात्मा परमेश्वर रूप।।

देवेन मनुष्य रूपेण।

स्वरचित स्व चिन्तक

यस. अनंत कृष्णन। चेन्नैक

 फूलों के संग कांटे क्यों ?

सोचा बहुत ,

ईश्वर तो सही है ,

जीभ अति कोमल। 

स्वाद पहचानने में  वही सहायक। 

वही कोमल जीभ दाँत के बीच है 

अति सुरक्षित ,पर एक शब्द गलत बोल 

जीभ सुरक्षित,श्रोता जन्मजन्मांतर दुश्मन। 

नाखून के चुभने से खुद का नाखून अति दुख। 

सीपी में मोती सुरक्षा ,कछुआ को कवच। 

साँप  को फुफकार ,बघनख। 

हर एक को विशेष सुरक्षा एक -एक.

पर मानव के काँटें 

सुन्दर रूप ,सुन्दर मोहक स्वर।

ठग की बातें मोह की बातें ,

छिपकर रहना ,गुप्त बातें। 

फूल के कांटें प्रत्यक्ष पर 

अंग रक्षक खुद हत्यारा।

मधुर वचन मनुष्य बम। 

फूल के कांटे प्रत्यक्ष। 

मनुष्य के छल -कपट ,

षड्यंत्र  जैसे सुन्दर फूल में 

कीड़े फँसाने  की शक्ति। 

कोमल दल  पर चिपक जाते कीड़े।

सूक्ष्मता ईश्वर की रचनाएँ अति चमत्कार। .


स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन ,

Sunday, September 13, 2020

 करत करत अभ्यास करत


मैं भी हिंदी भाषी नहीं,

ईश्वर के अनुग्रह हिंदी विरोध 

वातावरण में बना हिंदी प्रचारक हिंदी अध्यापक तमिलनाडु में।

कुछ लिखता रहता 

हूं।

प्रयत्न / कोशिश/चेष्टा/प्रयास

फल/मेवा/प्रशंसा/तारिफ 

कौनसा शब्द बढ़िया उचित जानने समझने में देरी।

अलविदा अंतिम विदा समझने 

ईश्वर करुण चाहिए।

मैं मित्रों को भाई बहनों को अलविदा कहता कि  मैं बड़ा पंडित।

ईश्वर करुण जी ने समझाया 

जब उनको अलविदा कहा,

भाई अलविदा तो अंतिम विवदा

आप की हिंदी में सुधार चाहिए।

ऐसी बातें समझाने

 ईश्वर करुण सा  शुभ चिंतक चाहिए।

अब मैं नहीं  कहता अलविदा।

केवल विदा।

 नमस्ते वणक्कम

अगजग सत्यदेव की देखरेख में!

सीना तानकर चलते हैं सत्यपालक

सिर झुक छिप छिप छलते हैं असत्य पालक!

सत्यदेव की सज़ा अति सूक्ष्म!

समझकर भी मानव 

सद्यःफल के लिए

अधर्म अपनाकर 

अनंत सुख सागर में है मानव!!

स्वरचित अनंतकृष्णन