नमस्ते वणक्कम
अगजग सत्यदेव की देखरेख में!
सीना तानकर चलते हैं सत्यपालक
सिर झुक छिप छिप छलते हैं असत्य पालक!
सत्यदेव की सज़ा अति सूक्ष्म!
समझकर भी मानव
सद्यःफल के लिए
अधर्म अपनाकर
अनंत सुख सागर में है मानव!!
स्वरचित अनंतकृष्णन
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