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Thursday, September 17, 2020

 

कल्पना के पंख उड़ते हैं ,

कंजूसी अभिव्यक्ति की नहीं ,

श्रोताओं के मनो भावों की। 

ऐसा लिखना जिसमें न हो राजनीति। 

ऐसा लिखना न मत-मतान्तरों का भेद। 

गुण  ही गुण जिसमें वैमनस्य का जूँ  भी न रेंगे। 

लिखने में क्या व्यवहार में अलग भाव.

एक शब्दों के कर्णधार को विद्यालय के 

वार्षिकोत्सव में मुख्यातिथि का सम्मान दिया।

अतिथि महोदय  आये ,अपने विशेष भाषण में 

इतनी तालियों  की आवाज़ सूनी। 

जोश में कहा संस्था की प्रगति के लिए 

दो लाख देता हूँ।  फिर तालियाँ। 

चार साल हो गए वे बहाने बनाने में पटु निकले। .

अभिव्यक्ति में क्या कंजूसी ,व्यवहार तो अलग.

कल्पना के घोड़े दौड़ाने  में मितव्ययी क्यों ?

वर्णनातीत वर्णन तिल को ताड़ बनाना ,

ताड़ को तिल  बनाना शब्दानंद। 

दिलानन्द तिल पर भी नहीं। 

कल्पना पाताल आसमान एक कर सकता।

हवा में महल बनाता। 

स्वरचित स्वचिंतक -एस। अनंतकृष्णन।

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