मित्रचिन्तन
40.धर्म मार्ग पर कमाओ धन।
वही तेरी होशियारी।
वही यारी बिना भूले
करेगा तेरी सुरक्षा।।
39.कुचला कड़ुआ,
कभी न होता मीठा।
प्यार हीन है तो बदला दुख ही जान।।
38.नाडी नसों को सही सलामत रखें तो शारीरिक-मानसिक कमजोरी न होगी जान।।
27.प्राप्त मानव जीवन को
सुचारू रूप से चलाएंगे तो
अड़चनें जीवन में नहीं जान।।
37.मनुष्य में मनुष्यता होने पर
अंग जंग में दुख नहीं जान।
36.परायों को निंदा कर जीने पर
कभी पीड़ा नहीं जान।।
सानंद ऊंचे जीवन जीने गहरे सोच विचार की जरूरत जान।।
35.सूखे पत्ते कभी न होंगे हरे।
सत्य के न पालकों का जीवन भी वही।।
34.त्यागमय जीवन ही है जीवन।
बाकी सब सूखे पेड़ समान जान।।33. இல்லை
32. आध्यात्मिक जीवन में नाच-गान भी साथ जान।।
31.न्याय के सामने हिलने डुलने पर भी स्तरीय पर्यटक होगा जान।।
30.अंधेरे में प्रकाश लाभ -सुखप्रद।
अड़चनें आने पर दुखप्रद।।
१. नारियल के पेड़ के सिर गया तो
फिर न उगेगा जान।
वैसे ही मानव अपने का
न पहचानता तो प्रगति बाधक जान।
2.अनचाहा रोग को चाहकर ,
अपने शरीर में बसाना
कांटे में फंसी मीन समान जान।।
3.पंचभूत से बने शरीर के पंचेंद्रियों को तत्काल के कल्याण में अर्पण करना है श्रेयस्कर।।
4.मरण तो अपने आप हमें बिना भूले आलिंगन कर लेगा ही।
अतः हमें उनकी चिंता न कर
वि स्मरण कर जीना ही
श्रेयस्कर जान मान।।
5.पंचेंद्रिय नियंत्रण रहित जीना,
आग जग नारियों के लिए अमंगल ही जान।
6.मन मोहक ईश्वर को अपने
में गुप्त रखना उचित नहीं जान।।
7.तन मन बिगड़कर जीने पर
ईश्वर की खोज में भटकना ही जीवन जान।।
8.छाया की खोज में चलने से
माया छोड़ अलौकिक तलाश ही श्रेष्ठ जान।
9. मन पार के भगवान को छिपाकर जीना जीवन नहीं जान।
10.नास्तिक विचार ईश्वर का अवहेलना अहंकार भावना जान।।
11.अनासक्त ईश्वर पर आसक्ति होना ही संत जीवन जान।।
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