Thursday, September 17, 2020

 मैंने दक्षिण भारत अर्थात तमि लनाडु में यात्रा की। 

जैन साधुओं की गुफाएँ चित्ताकर्षक है। चित्त रम्य ,चित्त संतोष 

चिंता की बात है मजहबी द्वेष। 

मजहबी कट्टरता कितनी निर्दयता पूर्ण। 

शासक की मर्जी से भक्ति प्रह्लाद की कहानी। 

यहां तो आँखों देखी निर्दयता के चित्रण।

मजहबी हो तो दया चाहिए। 

पर इतना घृणा ,हिरण्यकश्यपु के बाद 

यह जैन गुफायें खेदजनक।

कोराना ,सुनामी से मनुष्यता सीखनी है ,

बाद में मज़हबी। 

तिलक धारण अदालत तक.

इंसान को इंसानियत सिखानी है ,सीखनी है.

प्रेम दया परोपकार अपनाना है.

आज मेरे मन में उठे विचार।

हर बात लिखते समय  सतर्कता है.

मैं अपने मन मन उठे विचार ज्यों के त्यों तत्काल लिखता या 

कहता हूँ ,परिणाम मुझे प्रेम सहित दूर रखते हैं। 

अतः यथार्थ बात कहना चाहकर भी 

अधिकांश चुप रहना बेहतर समझता हूँ.

पर जैन गुफाएं मजहबी रहमी  अर्थात मानवता के प्रधान 

लक्षण सहिष्णुता /सब्रता असब्र कर 

यथार्थ पर आँसू बहाने ही पड़ते हैं.

कसर तो करुणासागर का है क्या?

एस। अनंतकृष्णन।

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