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Friday, September 18, 2020

 जहननुम है जिंदगी।

  जिंदगी स्वर्ग है या नरक।

 स्वर्ग है जिंदगी  ,

वहीं जिंदगी नरक है।

कोई दुखी व्यक्ति 

दुख भूलने  शराब पीकर 

पियक्कड़ बन जाता है

कहता है जिंदगी स्वर्ग है।

वही स्वर्ग उसको 

नरक की ओर ले जाता है,

उसके घरवाले गरीबेके  गड्ढे में 

नरक अनुभव,पियक्कड़

शराब लेने पैसे न तो नरक।

स्वर्ग  नरक हमारे व्यवहार से।

प्रेम एक पक्षीय है तो 

छोड़ना स्वर्ग,

उसी की याद नरक।।

रिश्वत भ्रष्टाचार के पैसे स्वर्ग।

उसके पाप का दण्ड

 ईश्वरीय नरक।

सत्संग स्वर्ग, बद संग नरक।

मत सोचो स्वर्ग नरक देवलोक में।

समाज का अध्ययन करो

पता चलेगा मनुष्य 

यही स्वर्ग नरक के

सुख दुख का

 दण्ड भोगता है।   

यही स्वर्ग है ऐसा

 कोई न कह सकता।

यही नरक है

 ऐसा नहीं कह सकता।

दोनों भोगता है मनुष्य।

स्वाचिंतक,स्वरचित अनंतकृष्ण।

 नमस्कार।

     शीर्षक :--कल का सूरज किसने देखा। 

कल का सूरज कौन देखेगा ?

जो बीत गयी ,बात गयी। 

जो बीतेगा ,पता नहीं। 

आज के सूरज की रोशनी में 

भूत को भूलो ,वर्तमान में संचय करो। 

कल के सूरज की चिंता नहीं ,

वर्तमान सोओगे तो 

कल के सूरज देख नहीं सकते। 

कल के सूरज देख नहीं सकोगे।

कल पाठ  न  पढ़ा ,कल पढ़ूँगा। 

कल दूका न  न खोला ,कल खोलूँगा। 

न कोई लाभ। आज पढ़ना है।

 आज दूकान खोलना है। .

तब कल के सूरज किसीने देखा कि  चिंता क्यों ?

तब कल के सूरज कौन देखेगा कि  चिंता क्यों ?

वर्तमान सही है तो सदा के लिए सूरज की रोशनी।

Thursday, September 17, 2020

 मैंने दक्षिण भारत अर्थात तमि लनाडु में यात्रा की। 

जैन साधुओं की गुफाएँ चित्ताकर्षक है। चित्त रम्य ,चित्त संतोष 

चिंता की बात है मजहबी द्वेष। 

मजहबी कट्टरता कितनी निर्दयता पूर्ण। 

शासक की मर्जी से भक्ति प्रह्लाद की कहानी। 

यहां तो आँखों देखी निर्दयता के चित्रण।

मजहबी हो तो दया चाहिए। 

पर इतना घृणा ,हिरण्यकश्यपु के बाद 

यह जैन गुफायें खेदजनक।

कोराना ,सुनामी से मनुष्यता सीखनी है ,

बाद में मज़हबी। 

तिलक धारण अदालत तक.

इंसान को इंसानियत सिखानी है ,सीखनी है.

प्रेम दया परोपकार अपनाना है.

आज मेरे मन में उठे विचार।

हर बात लिखते समय  सतर्कता है.

मैं अपने मन मन उठे विचार ज्यों के त्यों तत्काल लिखता या 

कहता हूँ ,परिणाम मुझे प्रेम सहित दूर रखते हैं। 

अतः यथार्थ बात कहना चाहकर भी 

अधिकांश चुप रहना बेहतर समझता हूँ.

पर जैन गुफाएं मजहबी रहमी  अर्थात मानवता के प्रधान 

लक्षण सहिष्णुता /सब्रता असब्र कर 

यथार्थ पर आँसू बहाने ही पड़ते हैं.

कसर तो करुणासागर का है क्या?

एस। अनंतकृष्णन।



 मेरे दो सिम



 मेरे दो सिम में एक छोड़ दिया।।

दूसरे वाट्स app में चित्रलेखन है इसमें नहीं।

कदम कदम पर सही,

कदम कदम पा गलत।

तेज़ धार पर मानव कदम

ज़रा सा असावधानी या 

समय का फेर उसको

के जाता स्वर्ग की ओर।

या धखेल देता नरक में।

किसी कवि ने लिखा

एक बूंद बादल से निकला

पता नहीं उसके भाग्य का

एक ऐसी अनुकूल हवा नहीं

समुद्र के खुले सीपी में गिरी

बनी चमकीले मोती।

कदली भुजंग सीप

स्वादिष्ट फल तो सांप में विष।

यही जीवन का फल

 ऊपरवाले का देन।।

भले ही चक्रवर्ती हो

संतान भाग्य,संतोषमय जीवन

ईश्वर के देन।

गरीबी में सुखी जीवन।

अमीरी में दुखी जीवन

ईश्वर का देन ।

मानव प्रयत्न मानवेत्तर 

शक्ति के हाथ।

यही मेरे अनुभव की बात।।

 एस.अनंतकृष्णन,(मतिनंत)



 जुगनू 


 जुगनू में चमक

मानव में नहीं।

जग की रचनाएं अतिविचित्र।

जागृत जीवन में

जुगनू की रोशनी काफी

सूर्य की चमक जीवन में।

उल्लू की अंधेरे की सृष्टि

मानव को नहीं,है तो

चोर डाकू। स्मगलर्स

जी नहीं सकते।

मानव में सत्य की चमक

जुगनू सम होते हैं,

असत्य की चमक सूर्य सम।

अतः सत्य जुगनू सा

टिम टिम करता है।

वही देता सुख दुख असह्या सह्य।।

स्वरचित सवाचिंतक

एस.अनंतकृष्णन।

 

कल्पना के पंख उड़ते हैं ,

कंजूसी अभिव्यक्ति की नहीं ,

श्रोताओं के मनो भावों की। 

ऐसा लिखना जिसमें न हो राजनीति। 

ऐसा लिखना न मत-मतान्तरों का भेद। 

गुण  ही गुण जिसमें वैमनस्य का जूँ  भी न रेंगे। 

लिखने में क्या व्यवहार में अलग भाव.

एक शब्दों के कर्णधार को विद्यालय के 

वार्षिकोत्सव में मुख्यातिथि का सम्मान दिया।

अतिथि महोदय  आये ,अपने विशेष भाषण में 

इतनी तालियों  की आवाज़ सूनी। 

जोश में कहा संस्था की प्रगति के लिए 

दो लाख देता हूँ।  फिर तालियाँ। 

चार साल हो गए वे बहाने बनाने में पटु निकले। .

अभिव्यक्ति में क्या कंजूसी ,व्यवहार तो अलग.

कल्पना के घोड़े दौड़ाने  में मितव्ययी क्यों ?

वर्णनातीत वर्णन तिल को ताड़ बनाना ,

ताड़ को तिल  बनाना शब्दानंद। 

दिलानन्द तिल पर भी नहीं। 

कल्पना पाताल आसमान एक कर सकता।

हवा में महल बनाता। 

स्वरचित स्वचिंतक -एस। अनंतकृष्णन।

 जीवन /जिंदगी। 

नमस्कार। वणक्कम। 

जी  वन है तो सुन्दर नंदवन  जिंदगी। 

जिंदगी झाडी हो तो वन में सन्यासी जीवन। 

ज़िंदा आतंकित मनुष्य  की जिंदगी 

अति वेदना ,सिद्धार्थ राजकुमार को 

वन में जीवन अति ज्ञानप्रद। 

जी   वन जैसा होने पर 

अर्थात  जी में खूँख्वार विचार। 

लोभ ,काम अहंकार हो तो 

वनजीवन  मानव जीवन।

नाना प्रकार के वन जीव के भय। 

वही जी में तीर्थंकर हो तो 

घने वन आदमखोर पशु ,हिरन 

एक ही घाट पर पानी पीते। 

संकीर्ण तंग मय  माया भरा  जी 

शांत संतोष चैन  भरा जीवन। .

स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन।