Saturday, June 9, 2012

mitrata.मित्रता -रिश्ता--14

बिन देखे,बिन बोले  मित्रता निभाना,
 एक दुसरे केलिए जान देना ,
संसार के इतिहास में अपूर्व है; दुर्लभ भी है।

तिरुक्कुरल  मित्रता का लक्षण ग्रन्थ है तो पुरानानूरू साहित्यिक  है।

दूसरों के सुख से सुख होनेवाले संसार में तीन ही लोग है---1.माता।2.पिता।3 दोस्त।
माता अपने पुत्र को स्वादिष्ट भोज के खाते देख अति प्रसन्न होगी।
पिता पुत्र के पद,बहुमूल्य पोशाक-आभूषण ,देखकर प्रसन्न होंगे।
दोस्त मित्रता की प्रसिद्धि,पदोन्नति देखकर खुश होंगे।
 इन तीनी में माता-पिता के रिश्ते खून का  है।
 उनके बाद मित्र है।दोस्त लाभ के लिए नहीं,काम के लिए होते हैं।
मेरे मित्र ऊंचे पद पर हैं।उसको बाह्य और आतंरिक सुख मिलना है।
उनसे मैं  ईर्ष्या नहीं करूंगा।ऐसे संकल्प लेनेवाला आदर्श मित्र है।
THE IMMEDIATE RESPONSE TO SHARE THE BURDENS OF A FRIEND IN EVERY POSSIBLE WAY IS THE ULTIMATE FRIENDSHIP.
एक आदर्श मित्र सभी प्रकार की मदद यथाशक्ति करेगा।
उसके मन में कभी कोई भेद-भाव नहीं होगा।
मित्रता निभाने में भेद भाव्  होने से बचना बहुत कठिन है।
वल्लुवर ने समृद्ध सम्पन्न जीवन जीने के लिए मित्रता के बारे में लिखा है।

वस्त्र के गिरने पर हाथ फौरन  वस्त्र पकड़कर मान रक्षा करता है;
वैसा ही मित्र कष्ट के समय साथ देगा।
मित्रता एक संपत्ति है।वह प्रयत्न से बढेगी।
 बिना प्रयत्न के मनुष्य गरीबी के गड्ढे  में गिरेगा।
वैसे ही मित्रता है।

dostiमित्रता -रिश्ता 13

हमको बढ़िया ग्रन्थ सुखप्रद और ज्ञानप्रद है।
संसार में अति प्रिय वही ग्रन्थ ;वैसे ही है मनपसंद विषय मित्रता।
वलूवर का ग्रन्थ एक जाति  या राष्ट्र के लिए नहीं,
वह सारे संसार के मार्ग दर्शक ग्रन्थ है।
यह बात रूस के डा0.,
अलेक्सान्दोर ने उल्लेख किया है।
THIRUKKURAL,IS AN INTEGRAL HOMOGENEOUS WORK OF ART,THE AUTHOR OF WHICH ADDRESSES NEITHER KING,SUBJECT NOR PRIEST BUT ME.AND HE DOES NOT ADDRESS MAN EITHER AS LAW GIVEN OR PROPHET BUT AS WELL-WISHER,TEACHER AND FRIEND.HE NEITHER PROPHESIED NOR SPOKE IN HINTS AND RIDDLES;HIS WORDS CONTAINED NO SHADE OF DOUBT ,HE HAD FULL CONVICTION OF THE TRUTH OF WHAT HE SAID,BOTH AS AN ARTIST AND THINKER.THE KURAL OF THIRUVALLUVAR
IS RIGHTLY CONSIDERED AS CHIEF DOEUVREOF INDIAN AND WORLD LITERATURE.THIS IS DUE NOT ONLY TO THE GREATARTISTIC MERIT OF THE WORK,BUT ALSO,AND THIS IS NOST IMPORTANT,TO THE LOFTY HUMAN IDEAS PERMEATING IT,WHICH ARE EQUALLY PRECIOUS TO THE PEOPLE ALL OVER THE WORLD,OF ALL PERIODS AND COUNTRIES.

तिरुवल्लुवर ने  अपने ग्रन्थ  राजा केलिए नहीं,
धार्मिक आचार्यों केलिए नहीं,भारतीयों केलिए नहीं लिखा है।

उनके  ग्रन्थ कानूनी नहीं है।उसमें लोकोक्ति नहीं है;टिपण्णी नहीं है।
बड़े विचारक और कलाकार बनकर उन्होंने कुरल लिखा है।
सभी काल और सभी देश के लिए सार्वजनिक ग्रन्थ के रूप में  तिरुक्कुरल लिखा है।
 दूसरे के प्रति जो मित्रता है,वह स्थायी और टिकाऊ है।
दोनों के मनों की मिश्रित भावना है दोस्ती।

मित्र को निकट संपर्क की ज़रुरत नहीं है।
मोह भावना ही मित्रता का लक्षण है।
 एक दुसरे से मिलने की  ज़रुरत नहीं है।
संघ  काल में प्सिरान्थैयार और कोप्पेरुन्चोलन की  मित्रता  ऐसी  है।
अंतिम घड़ी में अपने दोस्त को जिसको पहले देखा तक नहीं है,
उनकेलिए   अपने पास ही कब्रिस्थान आरक्षित किया था।

दोस्ती के तीन कारण है।
1.मिलना-जुलना,संपर्क में आना,एकता का भाव।
इनमें एक हीभाव होना प्रधान अंग है।

Friday, June 8, 2012

मित्रता -रिश्ता--12

अब तक मित्रता की व्याख्या में बुरी मित्रता,अछूत मित्रता,
असंग मित्रता,मित्रता छूट,प्राचीनतम मित्रता आदि
पर के वल्लुवर के कुरल की विशिष्ठ   गंभीर भाव विचार धारा 
और विशेष बातों  पर ध्यान दिया गया है।

सतर्कता पर विचार-विश्लेषण के बाद सच्ची मित्रता को जानने  की स्थिति पर आये हैं।
वल्लुवर ने  मित्रता पर के  अपने विचारों से तिल को पहाड़ बना दिया है।

एक किसान खेत में तुरंत बीज नहीं बो सकता।पहले खेत को  जोतना पडेगा।
पानी सींचकर छोटे पौधे  बोना पड़ेगा।
फिर पानी सींचना पडेगा।अन्य पौध उगे तो उन्हें  निकालना  पडेगा।
खाद देना पडेगा।धान के दाना पकने पर फहरा देना पड़ेगा।
धान काटने के  दिन तक खेत  में ही परिश्रम करना पडेगा।
तभी भात बनाने  योग्य चावल मिलेगा।
वैसे ही अच्छी  सच्ची योग्य गुणी  मित्र की प्राप्ति के लिए
मेहनत करना पडेगा।

मित्रता के गोपुर कलश है उनका पहला कुरल।

मित्रता जैसे अपूर्व रिश्ता क्या है संसार में?
हमारे कर्म करने में शत्रु से  होनेवाली हानियों और  बाधाओं  से बचाने वाले
 हमारे  सच्चे मित्र ही है।
वही पहरेदार है।

एक मनुष्य का जीवन नाते-रिश्तों के घेरे से बना है।
रिश्ता प्राकृतिक और कृत्रम दो तरह से होता है।
प्राकृतिक रिश्ता खून से सम्बंधित है।
शादी का रिश्ता अप्राकृतिक है।मदद पाने से होनेवाला रिश्ता,
संपर्क का रिश्ता,पेशे का रिश्ता,आवागमन का रिश्ता आदि
अप्राकृतिक रिश्ता है।इनमें मित्रता का रिश्ता निराला होता है।
पुष्ट होता है।सच्चे मित्र कष्ट काल में जान देकर  बचायेंगे।

there is a proverb ---A father is a treasure,a brother a comfort,but friend is both.
अव्वैयार  ने कहा है --मनुष्य जन्म दुर्लभ है;उस  बात को आगे करें तो
 योग्य मित्र पाना उससे भी  दुर्लभ है।

FORGETTING FRIENDSHIP WITH PERSONS OF GOOD QUALITIES IS BENIFICIAL LIKE READING GOOD BOOKS.

mitrata kee khojhमित्रता -रिश्ता--11

मित्र  की खोज की असावधानी    मृत्यु के समय  में  भी जलन का कार्य करेगा ।
मित्र    हीनावस्था में मदद नहीं  करें  तो  उसकी चिंता आजीवन  रहेगी।

किसी एक के गुण -दोष का अनुसंधान-विश्लेषण  गहराई छानबीन करके न करें तो
अंत में वह मृत्यु  का कारण बन जाएगा।
खोज,खोज ,खोज पुनः खोज ;यों ही वल्लुवर मित्रता के चुनाव की सावधानी पर सतर्क किया है।

THINK  CAREFULLY BEFORE YOU MAKE FRIENDS FOR FRIENDSHIP WITH SOME ONE WHO IS INCOMPATIBLE WILL CAUSE SARROW.
मनुष्य गुण में विविधता हैं।समाज में मनुष्य  स्वाभाविक व्यवहार  अलग-अलग हैं।
मित्र के चुनाव में असावधानी दुःख की अतल-पाताल में छोड़ देगा।
दुःख से बचना है तो मित्र को छान -बीन करके योग्य गुणी  को मित्र चुनना है।

वल्लुवर ने बड़ी सूक्ष्मता से मनुष्य कुल की शान्ति केलिए मित्र की खोज पर अपना सन्देश दिया है।
उनका सन्देश दिल में चुभता है।दिमाग में छप जाता है।

DOSTIमित्रता -रिश्ता--10

नालडियार  में वल्लुवर के समर्थन- सा एक पद है===

घृणा का कार्य ,बुरा कार्य ,खून  आदि मित्र करने पर भी
उसकी रक्षा करेंगे और चाहेंगे ;
जितना भी वे घृणा करें,सहकर भी साथ रहेंगे;

यारी नहीं छोड़ेंगे;
साथ न छोड़ेंगे;

यही मित्रता का पुरातन लक्षण है।
मित्रता की प्राचीनता को वल्लुवर ने ऊंचा उठाकर  कहा है---
मित्र को अपने मित्र की जान लेने का अधिकार भी है।
जान लेने के कार्य में मित्र लगने पर भी मित्रता न छोड़ेंगे।

हमारे हाथ हमारी  आँखों को चुभता है तो दुःख होगा ही।
उस हाथ को हम काटते नहीं;वैसे ही दोस्त बुरा करने पर भी
उसे  घृणा न करके गले  लगाना मित्रता है।

सच्ची मित्रता उनमें नहीं है,
जो नाच-गान,खाना,पंचेद्रियों  के सुख के लिए
 अपराध करने में  साथ देता है।
नीच कार्य में साथ देने को हम मित्रता समझ  लेते है।
 यह तो गलत धारणा है।
समाज को बिगाड  देने वाली दोस्ती में
आदर्श फ़र्ज़  और बढ़िया कला भी नष्ट हो जाएगा।
वह संकुचित मित्रता नफरत के योग्य है।

बराई में साथ देने को मित्रता समझना
 मित्रता का लक्षण नहीं है।
 वललूवर ने कहा है ---बाह्य-हंसी  की मित्रता मित्रता नहीं है;

 आतंरिक हंसी की मित्रता ही मित्रता है।

वल्लुवर  कहते हैं कि  गुण -दोष ,खानदान,नाता-रिश्ता  आदि
पहचानकर ही एक व्यक्ति को मित्र बनाना
सर्वोत्तम  है।
वलूवर का कुरल ----गुण  खोजो;दोष खोजो; उनमें ज्यादा जो है,
उसे खोजो;फिर उसे अपनाओ.
यह कुरल अच्छी मित्रता के लिए मात्र नहीं ,
योग्य वर-वधु की तलाश केलिए भी मार्ग दिखाता है।

मित्र अन्याय या कुकर्म करें तो उसको कठोरता दिखाकर
सुधारना  या ठीक मार्ग पर लाना मित्र -धर्म है।
एक  कहावत है -अपने प्रिय जन रुलायेंगे;अन्य हंसाएंगे;

ये ही अपने या पराये का अंतर है।

dostiमित्रता -रिश्ता-9

दोस्ती  का अर्थ  प्रेमी भी है।

दीर्घ काल के संपर्क स्त्री होने पर प्रेम होता है

पुरुष हो तो मित्रता ;

वह भी एक प्रकार का प्यार ही है।
जैसे प्रेमिका को भूल  नहीं सकते;

वैसे ही मित्र की याद हमेशा बनी रहती है।
वल्लुवर ने कहा है-----दोस्ती में विद्वत्ता उसी में है ,
जो दोस्त की मांग या चाह  को जान-पहचानकर
हक़ लेकर   उसकी चाह की पूरी करना।

उस चाह में रूचि बढ़ने का अधिकार लेना।
मित्रता का अंग है अधिकार लेना।

बड़े लोग उस अधिकार के लिए मधुर बनते हैं।

नमक खारा है;उस खारेपन में भी मिठास लाना मित्रता है।

THE SECRET TO A LONG-LASTING FRIENDSHIP IS HONOURING THE UNWRITTEN RIGHTS AND OBLIGATIONS ESTAABLISHED LONG AGO;NOBLE PEOPLE PRACTICE IT.

मित्रता  अति पुरातन है;इसी में विशेषता है।

दोस्ती  का आदर्श उदाहरण  महाभारत में मिलता है।

मित्रता में ज़रा भी शक को स्थान देना मित्रता को भंग करती है;

 कर्ण  दुर्योधन की पत्नी के साथ जुआ खेल रहा  था;
 तब वहां अचानक दुर्योधन आया;
उसकी सेवा करने उसकी पत्नी भानुमती उठी तो कर्ण ने समझा --
 वह हार के भय से उठती है;
तुरन्त  उसने उसका वस्त्र पकड़कर खींचा तो
उसकी साडी में जड़े मोती गिर पड़े।

तब दुर्योधन दौड़कर आया;मोती चुगने लगा और बिना शक किये पूछा ---

मैं इन मोतियों को जमा करूं  या जोडू .

यह पुरातन दोस्ती है;पूराण की यारी है।

दुर्योधन  को  कर्ण के साथ अपनी पत्नी का  जुआ खेलना  गलत नहीं   लगा।
उसके मन में  सम्मान ही रहा  मित्रता का।
गलत विचार न उठा।
मित्र का कार्य घृणाप्रद हो तो यों ही समझना उचित है ---

वह उसकी अज्ञानता है  या अधिकार है।

हमें  सह लेना है;उसके प्यार पर संदेह का भाव ठीक नहीं है।

कुरल है-----मित्र का दुःख और घृणाप्रद कर्म अति हक़ के कारण ही; या अबोध के कारण है।
इस बात को पूर्ण लिंगम पिल्लई  वल्लुवर के व्यक्तित्व की तारीफ में कहते हैं---

THE LANGUAGE  OF THE POEM IS PURE TAMIL,AND  ITS CAPACITY TO EXPRESS ANY THOUGHT  ,WITTY,HUMOROUS AND SUBTLE,IS EVIDENCED IN EACH COUPLET.

Thursday, June 7, 2012

mitrataमित्रता -रिश्ता--8

वल्लुवर में विशेष  कौशल  है।
धोखे में दुश्मन दोस्त बन जाए तो उनसे बचने का एक छूट देते हैं ---
शत्रु मित्र बन गया तो तुम भी उसके समान मित्र का अभिनय करो।
हँस -मुख रहो।बाहर  दोस्ती-सा व्यवहार
.जरूरत न हो तो मित्रता तजो।
बुरी संगती से असंगति बड़ा खतरनाक होता है।
बुरी  दोस्ती प्रकट होने की संभावना है। कुसंगति में पड़ने पर वह

केंसर रोग के सामान है।दर्द   नहीं; रोग अति बढ़ने पर ही मालूम  होगा;,
अचानक मृत -अवस्था में डाल  देगा।।
कुसंग -रोग का निदान अंतिम समय में होगा।
निदान  के बाद दिन गिनना ही शेष रहेगा।बचना कठिन है।
वहीं हालत है असंगति का।

मित्रता  की स्थिरता  का अध्याय है पुरातन.
दीर्घकाल निकटता .अंग्रेजी में  antiquity,longstandig intimacy कहते हैं।

वल्लुवर ने जो पुरातनता  को  मित्रता केलिए प्रयोग किया है,
उसे  'familirity',long-lasting friendship
कहकर भी अनवाद कर चुके हैं।
प्राचीनता  -दीर्घ काल की मित्रता का मतलब है,
मित्र के कर्म या बात को बिन सोचे -विचारे अपनाना।
हकदार बन जाना।
हक़दार का मतलब है हानी -लाभ को एक सामान मानना या सहना।
यही मित्रता की  परिपक्वता है।
जग में कोई भी निर्दोष या निष्कलंक नहीं है।
अतः  दीर्घकालीन मित्र के दोषों को सह लेना ही मित्रता का पहचान है।
मित्र के अपराधों को सहर्ष सह लेना मित्र का कर्त्तव्य हो जाता है।
यह वल्लुवर के  प्रेम की आज्ञा    है।
वल्लुवर एक सर्वश्रेष्ठ मित्र है।वे तो मित्र-स्वरुप है।
मित्र का मतलब है सखा। COMPANION/ASSOCIATE