Wednesday, July 11, 2012

.-6.न्यायाधिपति

काल्पनिक  क़ानून उपन्यास  वह  है,जो  नहीं है,उस  के आधार  पर का  क़ानून।

.   बुराई करनेवाला  जो  सत्य  है,वह   मत  बोलो।
 वल्लुवर ने  इस पर बल देकर कहा   कि  कल्याण करनेवाला 
झूठ   सच   नहीं  है; लेकिन  सच  माना  जाएगा।
 इसे क़ानून  विशेषज्ञ  स्वीकृत  सत्य (deemed truth) कहते  है।   जो  सत्य  नहीं  है,वह सत्य  है ; उसे आजकल के  क़ानून  विशेषज्ञ  मानते हैं
यह काल्पनिक क़ानून उपन्यास  को वल्लुवर ने  हज़ार   साल  पहले  ही चालू  कर  दिया।
वल्लुवर के समय के  तत्वज्ञ  प्लेटो  ने   न्याय विभाग  पर ध्यान  नहीं दिया।यह  इतिहास  का  सत्य   है।

अपराधियों  को दंड  देना  क़ानून  है।
वैसे दंड देते  समय  मनुष्यता पर ध्यान  दिया जाता है।
दिल में अपराध के  विचार के  बिना अपराध  करना  अपराध नहीं  है।बिना  षड्यंत्र  के अकस्मात् अपराध  के व्यवहार  का  अपराध अपराध  नहीं  है।

दिल  और व्यवहार  दोनों  जुड़कर  अपराध  करना कानूनी  अपराध है।पूर्व तैयारियों  और छल-कपट से जो अपराध  करते है, वही कठोर  दंडनीय  अपराध  माना जाता  है।


न्यायाधिपति 

Tuesday, July 10, 2012

न्यायाधिपति-5

वध  न करना  अधिकार  में  सातवाँ  कुरल  में  वल्लुवर  ने  कहा   है ----"अपनी जान छोडो  ;पर  औरों  की जान लेने  का  कर्म  मत  करो।
न्यायाधीश  कहने  की  इस नीति  को  न्यायाधिपति  वल्लुवर ने भी  कहा  है।

कुरल:  तन्नुइर  नीप्पिनुम  सेय्यर्क  तान पिरितु    इन्नुयिर  नीक्कुम विनै।

4.न्यायाधिपति

ई.वे.रा. पेरियार ने बीसवीं शताब्दी के पूर्व आधे पचास वर्षों में तमिल नाडू भर में स्वमर्यादा यज्ञ के सम्मेलनों में जिन प्रस्तावों को पास किया,उन सब को इक्कीसवी सदी के आरम्भ में शासकों से क़ानून का रूप दिया गया। वे सब आज चालू हैं।
 वैसे ही तिरुवल्लुवर की  धर्म-  नीति    मृत्यु दंड देने के सम्बन्ध में कानून बन गया। इंडियन पीनल कोड 302 विभाग के अनुसार खून करने का दंड मृत्यु दंड या आजीवन कारवास का दंड दिया जाता है ।
वध न करने का धर्म-  नीति  का  क़ानून बन जाने का यह उदाहरण है।


यद्यपि तिरुवल्लुवर ने आधुनिक क़ानून का अध्ययन नहीं किया,फिर भी इंग्लैण्ड में जो क़ानून अस्सी साल के पहले लागू किया  गया,उसे वल्लुवर ने दो हज़ार साल पहले अपने कुरल में लिखा है।
ऐसा   लगता  है  कि  वल्लुवर बड़े न्याय-शास्त्र  के  ज्ञाता  रहे होंगे.




न्यायाधिपति 

न्यायाधिपति -3-

न्यायाधिपति -3.

जीव-शास्त्र  के ग्रन्थ  तिरुक्कुरलवाद  को जिन लोगों  ने शोध की है,जिनमें  प्रमुख थे साहित्यक  और क़ानून विशेषज्ञ ,उनहोंने  एक बात  को  स्पष्ट निर्णय  किया  है।वह  बात  है,धर्म के अंतर्गत  क़ानून है। ;कानून के अंतर्गत  धर्म नहीं है ।
नीतिराज प.वेणुगोपाल ने कहा कि धर्म के विषय पर  तिरुवल्लुवर  के जैसे गहरे विचार   आज तक संसार में किसीने  प्रकट नहीं किया है।इस कारण से हम यह नहीं  कह सकते  कि तिरुक्कुरल एक धर्म ग्रन्थ है।वेणुगोपाल की कथन से यह भय भी हो जाता है  कि  उसे धर्म ग्रन्थ कहकर छोड़ देंगे।लेकिन धर्म सम्बन्धी ग्रंथों  की अलग विशिष्ठता  है।

धर्म की नीतियाँ  जनता के मन तक  पहुँचेंगी  ;मनोभावों को स्पर्श करेंगी।
 मनुष्य  जाति  की श्रेष्ठता  के लिए  मार्ग-दर्शक  क़ानून है या मानसिक परिवर्तन?
 इस सवाल का जवाब है मानसिक परिवर्तन।

न्यायाधिपति -2

न्यायाधिपति  की  उपर्युक्त  योग्यताएँ  होनेवाले  न्यायाधीश  जो  कुछ  कहते  हैं, वही  फैंसला  होता  है।उनके फैंसले  के मुताबिक़ दंड  दिया जाता  है।आरोप,शोध निर्णय ,मूल्यांकन,राय,स्पष्टीकरण, आदि ईश्वरीय क्रोध की  निशानी    मानी  जाती है।

प्रशासनिक कोष  "justice " का अर्थ न्याय,,न्यायाधिपति, बताता है।लिफको  तमिल-तमिल-अंग्रेजी  बृहद-  कोष  न्यायाधीश  शब्द  का अर्थ  विस्तार से समझाता  है--"वादी -प्रतिवादी  का वाद-विवाद सुनकर  सच्चाई  का पता लगाकर,क़ानून के अनुसार फैंसला सुनानेवाला है।"
उपर्युक्त  कोष  से स्पष्ट  है ---न्यायाधिपति शब्द  ही   न्यायाधीश   के लिए सही अर्थ    होगा।

 तिरुवल्लुवर  को न्यायाधिपति    कहना   ही सही  है  क्योंकि  उनका ग्रन्थ   तिरुक्कुरल  संसार की नीति-रीतियों  का आदर्श  स्थायी -मार्ग  दिखाता  है।

सबको फैसला सु नानेवाले  वल्लुवर  सबसे बढ़िया  न्यायाधीश  मात्र  नहीं,वे नीतिपीठ  और नीति मान भी है।g

न्यायाधीश -न्यायाधिपति-1

न्यायाधीश -न्यायाधिपति


न्यायाधीश और न्यायाधिपति  दो शब्द  क्यों  बने ?
 इसके  भी कारण है।
न्यायाधिपति  शब्दार्थ  में विशेषता  है।
न्यायाधीश शब्द की विशेषता
 न्यायाधिपति को महत्व  देने के लिए बना है।


आज  न्याय  कहाँ  है? ऐसी मनोस्थिति में ही कई लोग मानसिक तनाव के साथ चल-फिर रहे हैं।

सामान्य  न्याय  नियमानुसार  मिलने केलिए कठोर  श्रम करना पड़ता है।सामाजिक न्याय मिलने के लिए
संग्राम  करने में आश्चर्य की कोई बात नहीं है।
 चेन्नई  विश्वविद्यालय  द्वारा प्रकाशित   शब्दकोष  चौथे भाग में न्यायाधीश,न्यायाधिपति   शब्दों  का ही उल्लेख  किया गया है।मायूरम मुन्शीफ  वेदनायकम पिल्लै  ने न्यायाधिपति  शब्द का प्रयोग किया था।
इसीलिये  विश्वविद्यालय शब्दकोष  में भी इसका उल्लेख  है  और न्याय -राजा,न्यायमूर्ति ,नीतिमान  आदि अर्थ के रूप में  भी लेते है।

चेन्नई विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित  अंग्रेजी कोष में "Judge " शब्द के  निम्न अर्थ मिलते है:-
औपचारिक-प्रधान,न्यायाधीश,माननीय मध्यस्थ ,न्याय प्रदान करनेवाला,मध्यस्थ,तटस्थ  न्याय कहनेवाला,
तटस्थ ,स्पर्धाओं में निर्णय बतानेवाला,बड़ा ,स्पर्धाओं में पुरस्कार देनेवाला,बुद्धिबलि।कल्याण तोलकर मूल्यांकन कर्ता ,विभागीय विद्वान,जाँचक ,साक्षी,यूदों की सेना,प्रशासन अधिकार का सम्माननीय मध्यस्थ,युदों के जोशुआ और राजा के काल के प्रधान पद के मुख्यमंत्री,ईश्वर  आदि।

ये  संज्ञाएँ  ही क्रियाएँ   बनकर  न्यायाधीश के काम करो ;   पूछ-ताछ करो;   मुकद्दमा पूछ-ताछ करो;  न्याय करो  ;फैंसला सुनाओ ;दंड दो   ;   वाद-विवाद करके निर्णय करो  ;   मूल्यांकन  करो   ; समाचारों की तुलना करके विशेषता बताओ;   दोष-निर्दोष का पता लगाओ   ;चुनकर निर्णय करने का अधिकार लो  ; शोधकरके बताओ   ;   दोष निकालो ; खंडन करो;      अंतिम  निर्णय दो  ; सोचकर अंतिम  विचार कहो  ;  ईमानदारपूर्वक फैंसला सुनाओ   ; कानूनी अंतिम  निर्णय  सूचित करो  ; कल्याण चुनकर बताओ  इत्यादि।








 

Monday, July 9, 2012

साधुता16

बीसवीं शताब्दी  में तमिल  समाज को  ई..वे.रा  ने आमूल  परिवर्तन किया।.उस महान को यह कुरल बहुत पसंद था।
वल्लुवर  के "साधुता" शीर्षक  का दूसरा  कुरल था ---" यदि   दुःख को ही दुःख देने का साहस हो जाएँ ,तो इस संसार में  कोई   दुःख न  होगा।

कुरल:- इदुम्बैक्के कोल्कलंग  कोल्लो कुदुन्पत्तई  कुत्र मरिप्पानुडम्बू।


  अपने परिवार को दुःख से बचाने के लिए जो कोशिश करता है,  क्या वह कोशिश   दुःख का ही कैदकर रखनेवाला बर्तन हो जायेगी?? नहीं।. वह तो सुख का भण्डार-गृह हो जाएगा।.

हर एक नागरिक का फर्ज़ है , अपने परिवार की उन्नति करना।.वैसे सब के सब  आगे बढ़ेंगे  तो  देश आगे बढेगा। एक देश या संसार  का छोटा -सा  अंश  परिवार है।.बड़ा  अंश देश होता है। अतः देश की उन्नति का बुनियाद  परिवार है। अतः वल्लुवर परिवार की उन्नति  पर जोर  देते हैं।.

It  is  only  to suffering  that  his body is exposed  who undertakes  to  presence  his family from evil.
  माँग  के बाद  का शीर्षक  है  मांगने का भय। यह दूसरों से माँगकर  जीने  का जो भय है ,वही  मनुष्य को बड़ा बनाता  है। अतः वल्लुवर ने उसका उल्लेख बड़ी गंभीरता के साथ किया है।

मर्यादा  नष्ट करनेवाली  "माँग "(दूसरों से भीख  माँगकर जीना))के  लिए डरना  ही मांगने (भीख)) का भय है। याचकता  का भय  ही मनुष्य को बड़ा बनाता है।


इड  मेल्लाम  कोल्लत  तकैत्तेयिड  मिल्लाक  कालुमिर  वोल्लाच  साल्बू।(कुरल)

वल्लुवर के  महान  सम्बन्धी  विचारों के झंडों में ऊंचा झंडा  "मांगकर  जीने के भय का झंडा।"

जब एक खोटा  सिक्का भी हाथ में नहीं है,  उस हालत में  भी दूसरों से बिना  माँगे  जीने का गुण अतुलनीय  और बेजोड़ है।उस गुण  के  कारण  जितना बड़े और महान बनते है,उससे बड़ा बड़प्पन कुछ नहीं है। उस  बड़े नाम को भरने  संसार में  बड़ा भण्डार--गृह  नहीं  मिलेगा।.उतना महत्त्व  पूर्ण है 

 "याचकता का भय  " शीर्षक  कुरल।.

Even the whole world  cannot  sufficientlt praise the dignity that would not beg  even in the midst of destitution.--G.U.POPE.
भीख  माँगना   का अनुवाद  "begging" कहने  से  "the dread of mendicancy" ही ठीक  मानते हैं।.

वल्लुवर खुद    याचकों   से  याचना  करते   हैं। उनकी माँग  दिल पिघलनेवाली  माँग  है। उनकी माँग  के अनुसार हमें  भी  याचना  करना  आवश्यक हो जाता  है।खुद याचक बनकर, दृष्टांत  बननेवाले  वल्लुवर ही     उल्लेखनीय महान हो सकते है।

वह कुरल है---जो माँगकर  भी  नहीं देता, उनसे मत माँगिये ,जितना भी अत्यंत तकाजा हो।.---यही  वल्लुवर की मांग है।.ऐसे महान संत संसार में विरले ही मिलेंगे।

कुरल---इरप्पन  इरप्पारै   एल्लाम इराप्पिं  करप्पार   इरवन मिन  एन्रू।

  I  BESEECH ALL BEGGERS  AND SAY," IF YOU NEED TO BEG, NEVER BEG OF THESE WHO GIVE UNWILLINGLY."

मनुष्य-प्रेमी  वल्लुवर ने  एक सामान्य  व्यक्ति  को  महान  बनने  का  मार्ग  दिखा रहे हैं।.यह साधुता या
महानता का शीर्षक  को  आगे रखना है। इसके पहले जो आठ अध्याय है, वे सब  महान बनने  का  सहायक शीर्षक  है।.

महान बनने  के लिए चार आधार स्तम्भ  है --प्यार, लज्जा, अतिथि--सत्कार,दया, सत्य  आदि।

इन  पाँच  गुणों  को अपनाने पर ,पालन  करने  पर  महान बनने  में  कोई बाधा नहीं होगी। लज्जा  का  मतलब

है, भूल करने के लिए लज्जा का महसूस करना।

 प्यार,लज्जा,,दया,अतिथि--सत्कार,सत्य  आदि गुणों में एक कम होने पर भी महान बनने  में पूर्णत्व  नहीं होगा।.यह तो स्पष्ट  बात  है।

कुरल---अनबू ,नान   ओप्पुरावु, कन्नोट टम   वाय्मैयोडु   ऐन्तु  साल्बू  ऊन्रिय तून .

   हम जिसको  महानता  रुपी  समुद्र का  किनारा  कहते  हैं,   वे   अन्य  समुद्र  के किनारे  के  भंग होने पर भी   अटल रहेंगे ।

कुरल:  ऊली  पेयारिनुम ताम पेयारार सान्रान्मैक काली एनप पदुवार।

वल्लुवर ने साधुता का महत्व्   बढ़ाने  समुद्र  शब्द  का प्रयोग किया है। सारा  संसार महानों  के विरुद्ध  होने  पर भी महान  अपने गुण और व्यवहार  को नहीं बदलेंगे।
  PEOPLE  WHO  ARE NOBLE  IN CHARECTER  AND BEHAVIOUR WILL NOT CHANGE  EVEN  IF THE WHOLE  WORLD  TURNS AGAINST THEM.

वल्लुवर ने जो साधू और महान को बनाया, उससे  बढ़कर कोई  महान को बना नहीं सकते।यह तो ठीक है न?