बीसवीं शताब्दी में तमिल समाज को ई..वे.रा ने आमूल परिवर्तन किया।.उस महान को यह कुरल बहुत पसंद था।
वल्लुवर के "साधुता" शीर्षक का दूसरा कुरल था ---" यदि दुःख को ही दुःख देने का साहस हो जाएँ ,तो इस संसार में कोई दुःख न होगा।
कुरल:- इदुम्बैक्के कोल्कलंग कोल्लो कुदुन्पत्तई कुत्र मरिप्पानुडम्बू।
अपने परिवार को दुःख से बचाने के लिए जो कोशिश करता है, क्या वह कोशिश दुःख का ही कैदकर रखनेवाला बर्तन हो जायेगी?? नहीं।. वह तो सुख का भण्डार-गृह हो जाएगा।.
हर एक नागरिक का फर्ज़ है , अपने परिवार की उन्नति करना।.वैसे सब के सब आगे बढ़ेंगे तो देश आगे बढेगा। एक देश या संसार का छोटा -सा अंश परिवार है।.बड़ा अंश देश होता है। अतः देश की उन्नति का बुनियाद परिवार है। अतः वल्लुवर परिवार की उन्नति पर जोर देते हैं।.
It is only to suffering that his body is exposed who undertakes to presence his family from evil.
माँग के बाद का शीर्षक है मांगने का भय। यह दूसरों से माँगकर जीने का जो भय है ,वही मनुष्य को बड़ा बनाता है। अतः वल्लुवर ने उसका उल्लेख बड़ी गंभीरता के साथ किया है।
वल्लुवर खुद याचकों से याचना करते हैं। उनकी माँग दिल पिघलनेवाली माँग है। उनकी माँग के अनुसार हमें भी याचना करना आवश्यक हो जाता है।खुद याचक बनकर, दृष्टांत बननेवाले वल्लुवर ही उल्लेखनीय महान हो सकते है।
वह कुरल है---जो माँगकर भी नहीं देता, उनसे मत माँगिये ,जितना भी अत्यंत तकाजा हो।.---यही वल्लुवर की मांग है।.ऐसे महान संत संसार में विरले ही मिलेंगे।
कुरल---इरप्पन इरप्पारै एल्लाम इराप्पिं करप्पार इरवन मिन एन्रू।
I BESEECH ALL BEGGERS AND SAY," IF YOU NEED TO BEG, NEVER BEG OF THESE WHO GIVE UNWILLINGLY."
मनुष्य-प्रेमी वल्लुवर ने एक सामान्य व्यक्ति को महान बनने का मार्ग दिखा रहे हैं।.यह साधुता या
महानता का शीर्षक को आगे रखना है। इसके पहले जो आठ अध्याय है, वे सब महान बनने का सहायक शीर्षक है।.
महान बनने के लिए चार आधार स्तम्भ है --प्यार, लज्जा, अतिथि--सत्कार,दया, सत्य आदि।
इन पाँच गुणों को अपनाने पर ,पालन करने पर महान बनने में कोई बाधा नहीं होगी। लज्जा का मतलब
है, भूल करने के लिए लज्जा का महसूस करना।
प्यार,लज्जा,,दया,अतिथि--सत्कार,सत्य आदि गुणों में एक कम होने पर भी महान बनने में पूर्णत्व नहीं होगा।.यह तो स्पष्ट बात है।
कुरल---अनबू ,नान ओप्पुरावु, कन्नोट टम वाय्मैयोडु ऐन्तु साल्बू ऊन्रिय तून .
हम जिसको महानता रुपी समुद्र का किनारा कहते हैं, वे अन्य समुद्र के किनारे के भंग होने पर भी अटल रहेंगे ।
कुरल: ऊली पेयारिनुम ताम पेयारार सान्रान्मैक काली एनप पदुवार।
वल्लुवर ने साधुता का महत्व् बढ़ाने समुद्र शब्द का प्रयोग किया है। सारा संसार महानों के विरुद्ध होने पर भी महान अपने गुण और व्यवहार को नहीं बदलेंगे।
PEOPLE WHO ARE NOBLE IN CHARECTER AND BEHAVIOUR WILL NOT CHANGE EVEN IF THE WHOLE WORLD TURNS AGAINST THEM.
वल्लुवर ने जो साधू और महान को बनाया, उससे बढ़कर कोई महान को बना नहीं सकते।यह तो ठीक है न?
वल्लुवर के "साधुता" शीर्षक का दूसरा कुरल था ---" यदि दुःख को ही दुःख देने का साहस हो जाएँ ,तो इस संसार में कोई दुःख न होगा।
कुरल:- इदुम्बैक्के कोल्कलंग कोल्लो कुदुन्पत्तई कुत्र मरिप्पानुडम्बू।
अपने परिवार को दुःख से बचाने के लिए जो कोशिश करता है, क्या वह कोशिश दुःख का ही कैदकर रखनेवाला बर्तन हो जायेगी?? नहीं।. वह तो सुख का भण्डार-गृह हो जाएगा।.
हर एक नागरिक का फर्ज़ है , अपने परिवार की उन्नति करना।.वैसे सब के सब आगे बढ़ेंगे तो देश आगे बढेगा। एक देश या संसार का छोटा -सा अंश परिवार है।.बड़ा अंश देश होता है। अतः देश की उन्नति का बुनियाद परिवार है। अतः वल्लुवर परिवार की उन्नति पर जोर देते हैं।.
It is only to suffering that his body is exposed who undertakes to presence his family from evil.
माँग के बाद का शीर्षक है मांगने का भय। यह दूसरों से माँगकर जीने का जो भय है ,वही मनुष्य को बड़ा बनाता है। अतः वल्लुवर ने उसका उल्लेख बड़ी गंभीरता के साथ किया है।
मर्यादा नष्ट करनेवाली "माँग "(दूसरों से भीख माँगकर जीना))के लिए डरना ही मांगने (भीख)) का भय है। याचकता का भय ही मनुष्य को बड़ा बनाता है।
इड मेल्लाम कोल्लत तकैत्तेयिड मिल्लाक कालुमिर वोल्लाच साल्बू।(कुरल)
वल्लुवर के महान सम्बन्धी विचारों के झंडों में ऊंचा झंडा "मांगकर जीने के भय का झंडा।"
जब एक खोटा सिक्का भी हाथ में नहीं है, उस हालत में भी दूसरों से बिना माँगे जीने का गुण अतुलनीय और बेजोड़ है।उस गुण के कारण जितना बड़े और महान बनते है,उससे बड़ा बड़प्पन कुछ नहीं है। उस बड़े नाम को भरने संसार में बड़ा भण्डार--गृह नहीं मिलेगा।.उतना महत्त्व पूर्ण है
"याचकता का भय " शीर्षक कुरल।.
Even the whole world cannot sufficientlt praise the dignity that would not beg even in the midst of destitution.--G.U.POPE.
भीख माँगना का अनुवाद "begging" कहने से "the dread of mendicancy" ही ठीक मानते हैं।.वल्लुवर खुद याचकों से याचना करते हैं। उनकी माँग दिल पिघलनेवाली माँग है। उनकी माँग के अनुसार हमें भी याचना करना आवश्यक हो जाता है।खुद याचक बनकर, दृष्टांत बननेवाले वल्लुवर ही उल्लेखनीय महान हो सकते है।
वह कुरल है---जो माँगकर भी नहीं देता, उनसे मत माँगिये ,जितना भी अत्यंत तकाजा हो।.---यही वल्लुवर की मांग है।.ऐसे महान संत संसार में विरले ही मिलेंगे।
कुरल---इरप्पन इरप्पारै एल्लाम इराप्पिं करप्पार इरवन मिन एन्रू।
I BESEECH ALL BEGGERS AND SAY," IF YOU NEED TO BEG, NEVER BEG OF THESE WHO GIVE UNWILLINGLY."
मनुष्य-प्रेमी वल्लुवर ने एक सामान्य व्यक्ति को महान बनने का मार्ग दिखा रहे हैं।.यह साधुता या
महानता का शीर्षक को आगे रखना है। इसके पहले जो आठ अध्याय है, वे सब महान बनने का सहायक शीर्षक है।.
महान बनने के लिए चार आधार स्तम्भ है --प्यार, लज्जा, अतिथि--सत्कार,दया, सत्य आदि।
इन पाँच गुणों को अपनाने पर ,पालन करने पर महान बनने में कोई बाधा नहीं होगी। लज्जा का मतलब
है, भूल करने के लिए लज्जा का महसूस करना।
प्यार,लज्जा,,दया,अतिथि--सत्कार,सत्य आदि गुणों में एक कम होने पर भी महान बनने में पूर्णत्व नहीं होगा।.यह तो स्पष्ट बात है।
कुरल---अनबू ,नान ओप्पुरावु, कन्नोट टम वाय्मैयोडु ऐन्तु साल्बू ऊन्रिय तून .
हम जिसको महानता रुपी समुद्र का किनारा कहते हैं, वे अन्य समुद्र के किनारे के भंग होने पर भी अटल रहेंगे ।
कुरल: ऊली पेयारिनुम ताम पेयारार सान्रान्मैक काली एनप पदुवार।
वल्लुवर ने साधुता का महत्व् बढ़ाने समुद्र शब्द का प्रयोग किया है। सारा संसार महानों के विरुद्ध होने पर भी महान अपने गुण और व्यवहार को नहीं बदलेंगे।
PEOPLE WHO ARE NOBLE IN CHARECTER AND BEHAVIOUR WILL NOT CHANGE EVEN IF THE WHOLE WORLD TURNS AGAINST THEM.
वल्लुवर ने जो साधू और महान को बनाया, उससे बढ़कर कोई महान को बना नहीं सकते।यह तो ठीक है न?
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