Tuesday, July 17, 2012

SHAASAK-8

कुरल  का तो नाम के  अनुसार रूप छोटा ही है;

पर  कुरल अर्थ तो संसार-सा विस्तार होता है।

सारा संसार उसके अंतर्गत  ही है।

 हम जानते  हैं कि नक्कीरर ,शेक्किलार,कंबर जैसे संघ काल के  कवि

अपने-अपने ग्रंथों को जग  के नाम से ही शुरू किया हैं।

लेकिन वल्लुवरने   तमिलादु में तमिल में  लिखा है;

लेकिन उनकी दृष्टी सारे मनुष्य समाज पर थी।

सारा संसा ही उनकी सीमा है।

उनके एक हजार तीन सौ तीस  कुरलों  में

 अधिकांश  कुरल संसार शब्द  को लेकर  या संसार के अर्थ लेकर ही दीख  पड़ते हैं।

तिरुक्कुरल:-एव्वतु  उरैवतु  उलकम  उलकत्तोडु   अव्वतु  उरैवतु   अरिवु।

इस कुरल में वल्लुवर महाशय  कहते  है  कि

 हर एक आदमी को अपने व्यक्तिगत जीवन को संसार के व्यवहार के अनुसार  चलाना है।

वल्लुवर एक ज्ञानी हैं।एक कवि  है;वही तमिल के ज्ञाता है।

पेरुन्तोकै  नामक ग्रन्थ  के लेखक  कहते हैं: 

अवने  पुलवन। अवने  ज्ञानी ;अवने तमिलारिन्तोन .

वल्लुवर जिस  जग  के बारे में कहते हैं,वह ऊँचे  लोगों का जग है।

ऊँचे  लोगों  के अनुसरण करने पर  सामान्य जनता का अनुशासन ऊँचा  रहेगा।

जो शासक है उनका यश फैलेगा;उनका पद  सुरक्षित रहेगा।

ratnakumar:-IT IS THE ABILITY TO THINK REASON AND UNDERSTAND THAT HELPS ONE TO PROGRESS WITH THE WORLD.
G.U.POPE :-  TO LIVE AS THE WORLD LIVES IS WISDOM.

ज्ञान की आवश्यकता  समझाने के बाद वल्लुवर महोदय  "मंत्रित्व" पर विचार करने को प्रेरित  करते हैं।

मंत्री वही है जिसमें मंत्री के गुण भरे रहते हैं।

वह एक सुशासन के लिए अत्यंत  आवश्यक सहारा  है।

राजा की दूरी स्थिति में मंत्री का स्थान होता हैं।

वल्लुवर  ने मंत्री-शास्त्र पर एक सौ कुरालों की रचना कर

 मंत्री के गुण,कार्य की व्याख्या की है।

पहले दस कुरल में मंत्री के लक्षण की व्याख्या मिलती है।

वन्कन  कुडि कात्तल  कटररितल  आल्विनैयोडू   ऐंतुडन  मान्दत्हू अरसु।

मंत्री के गुण पाँच  होते हैं:-वीरता,श्रेष्ठ -कुल,शिक्षा-दीक्षा नागरिकों की रक्षा में कौशल,अध्यवसाय आदि.


मंत्री के ज्ञान के बारे में कहते समय वल्लुवर ने सीखा  ज्ञान कहा है।

वल्लुवर किसीको शिक्षित आदमी का संबोधन नहीं करेंगे।

सीखा -ज्ञानी ही संबोधित करेंगे।क्योंकि स्नातकों में कोई ज्ञान नहीं रहेगा।

सीखकर ज्ञान प्राप्त लोगों में  ही सही रूप में समझने की शक्ति रहेगी।



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