Tuesday, July 3, 2012

5.महान।साधु/ उत्कृष्ट आदमी।

महान (बड़प्पन ) साधुता


तिरुक्कुरल के तीन भाग धर्म,,अर्थ,,काम को पोय्कैयार तीन भागों में बांटकर  काम के बदले सुख नाम दिया है।.

इस संसार में महानों और बड़ों के दिखाए मार्ग पर चलनेवाले थोड़े ही लोग है;
अपने मन की इच्छा  के अनुसार चलनेवाले ज्यादा लोग हैं।
.यही आज की हालत है  "।इन्निलै "   नायनार का ग्रन्थ है;.अर्थ है मधुर--दशा।.

पलमोली  नानूरू  अर्थात लोकोक्ति चार सौ  नामक ग्रन्थ के कवि  मुन्रुरैयानार
  अपने इस ग्रन्थ में महानों का स्वाभाव  और महानों के कर्म  पर व्याख्या करते हैं।
.महान अपनी महानता कभी नहीं छोड़ेंगे।.

पांडिय राजा ने अकेली  स्त्री  जो  दूसरे  की पत्नी है ,उसका हाथ पकड़ा था।.
 यह  बड़ा अपराध  था।
.उसके अपराध का कोई गवाह नहीं था।
.फिर भी उसने अपने अपराध के दंड स्वरुप अपने ही हाथ को काटा था।
.मतलब है महान अपने बुरे कर्म के लिए दूसरों के न देखने पर भी दुखी होंगे।
.खुद अपने को दंड का भागी बना देंगे।
.यही महानों का सहज गुण है।

तमिल:

एनाक्कुत टहवेंराल  एन्पते नोक्कित,
तानाक्कुक  करियावां तनाय्त  तवट रै
निनैत्तुत  तन  कै  कुरैत्तान  तेंनवनुम   कानार
एनच  सय्यार  माणा  विनै।

दुश्मनों पर भी दया दिखाना बड़ों का कार्य है।.


दूसरों को दुःख देनेवाले और जान लेनेवाले सांप भी महानों के दरबार में घुसें
 तो उसकी जान का कोई खतरा न होगा।
.वैसे ही महान अपने दुश्मनों का दुःख देखकर
  उनके अपराधों को भूलकर दया दिखाएँगे।.यही महानों का सर्वोच्च काम है।.

No comments:

Post a Comment