शासक -2
सम्प्रभूति के राजा धर्म,अर्थ,काम, प्राण -भय आदि गुणों से युक्त
मंत्री,सेनापति,दूत,चर आदि चार प्रकार के पटु लोगों को
चुनकर नियुक्त करता था ।उनके द्वारा देश को समृद्ध बनाता था।
और देश की आय बढाता था ।
जो आमदनी मिलती थी ,उन सब को धर्म अर्थ और काम
कार्यों में व्यय करता था ।
वह देखने में सरल और व्यवहार में मधुरभाषी था।
वे अपराधियों को दंड देते थे।
निम्न लोगों के संग में नहीं रहते।
बड़े लोगों के संग में रहकर नाते-रिश्तों से गले लगाकर ,
अपराध सहकर शासन करते थे।
वे चार प्रकार की सेना रखते थे।
दुसरे राजाओं से मिलनसार होते थे।
उनमें स्त्री -मोह न था।
वेश्या-गमन न था।
मधु नहीं पीते।
वे जुआ नहीं खेलते;
संतुलित भोजन करते थे।
अपने शरीर को स्वस्थ रखते थे।
नागरिकों के दुःख दूर करते थे।
मंत्री और सेनापति का बड़ा सम्मान करते थे।
संक्षेप में कहें तो नागरिकों को पांच प्रकार् के दुखों से रक्षा करना ही तिरुवललुवर की राजनीती थी।
मंत्री,सेनापति,दूत,चर आदि चार प्रकार के पटु लोगों को
चुनकर नियुक्त करता था ।उनके द्वारा देश को समृद्ध बनाता था।
और देश की आय बढाता था ।
जो आमदनी मिलती थी ,उन सब को धर्म अर्थ और काम
कार्यों में व्यय करता था ।
वह देखने में सरल और व्यवहार में मधुरभाषी था।
वे अपराधियों को दंड देते थे।
निम्न लोगों के संग में नहीं रहते।
बड़े लोगों के संग में रहकर नाते-रिश्तों से गले लगाकर ,
अपराध सहकर शासन करते थे।
वे चार प्रकार की सेना रखते थे।
दुसरे राजाओं से मिलनसार होते थे।
उनमें स्त्री -मोह न था।
वेश्या-गमन न था।
मधु नहीं पीते।
वे जुआ नहीं खेलते;
संतुलित भोजन करते थे।
अपने शरीर को स्वस्थ रखते थे।
नागरिकों के दुःख दूर करते थे।
मंत्री और सेनापति का बड़ा सम्मान करते थे।
संक्षेप में कहें तो नागरिकों को पांच प्रकार् के दुखों से रक्षा करना ही तिरुवललुवर की राजनीती थी।
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