जो दूसरों को देता नहीं और खुद उसका उपभोग नहीं करता, वह करोड़ों के अधिपति होने पर भी गरीब ही है।.
नाल-अडियार भी वल्लुवर के इस विचार का समर्थन करता है। वह कहता है---अज्ञानी धन को अपना मानकर खुद भी उसको नहीं भोगता और दूसरों को भी नहीं भोगने देता।.
।.वह धन को अपना ही मानकर आनंद का अनुभव करेगा।
.लेकिन उस धन से वह सुख नहीं पायेगा।.
महानों के बुनियाद गुण ही नागरिकता के गुणों को जानना-पहचानना होता है।
साधुता
नागरिक के कर्तव्य जानकर अपने नागरिकों की उन्नति के कार्य में लगना ही बड़े लोगों का काम होता है।
वल्लुवर ने इस अध्याय में जो कुछ बताया है , बड़े ही गंभीरता से सोचने समझने का विषय है।.उसका हर एक कुरल अर्थ की चरम सीमा पर पहुँच गया है।.उससे मालूम होता है कि उनका मन नागरिक -सेवा में अधिक जुडा हुआ था।
देश के नागरिक को बेकार रहना उचित नहीं है। हर एक युवक को अपने परिवार को उन्नत करने केलिए तन-मन -वचन से कठोर परिश्रम करना चाहिए।
इस विचार के कारण इस अध्याय में अति विशेष ध्यान दिया है वल्लुवर जी ने।.
पावानर ने भावावेश में वलूवर के बारे में कहा है---व्यापक दृष्टिकोण से नागरिक के कर्त्तव्य को समझाने की सेवा करनेवाले एक मात्र नेता थे वल्लुवर।
अपने परिवार की दयनीय स्थिति देखकर लज्जित होकर साहस पूर्वक युवक कुछ करने के लिए प्रेरित होता है।.
इसीलिये नागरिक -कर्म और कर्त्तव्य शीर्षक , लज्जाशीलता अध्याय के बाद आता है।.
जो अपने नागरिकों की प्रगति चाहते हैं या प्रगति करने के अधिकार पर रहते हैं,
यदि वे समय पर ध्यान न देकर आलसी से रहेंगे तो नागरिकों का पतन होगा।
अतः जो अपनी जाति की प्रगति चाहते हैं,
उनको समय पर ध्यान न देकर, सदा सर्वकाल अपने देश की सेवा में लगना चाहिए।
भूख,,मान ,काल आदि पर ध्यान न देकर काम करना चाहिए।
कुरल: कुडिसेय्वारुक्कू इल्लै परूवं मडीसेय्तु मानंग करुतक केडूम .
THE PRESENT MOMENT IS THE RIGHT TIME FOR ONE TO DO SO SOMETHING FOR THE GOOD OF THE COMMUNITY WILL SUFFER OF THE PROCRASTINATES.
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