Monday, July 16, 2012

shaasak-4


शैव मत के अटल भक्त मानिक्कावासकर ने तिरुवेम्बावै   में 

एक पद्य शिव -स्तुति में लिखा  है ---

प्राचीनतम आदिकाल के वस्तुओं में तू  आदी   हो! 

तमिल :- मुन्नैप पलम  पोरुटकुम मुन्नैप पलम पोरुले !

आगे उत्पन्न  होनेवाले नए सृजन में तू नए हो!!   

               पिन्नाप्पुतुमैक्कुम  पेर्तुतुम अप्पेट्रीयने !

आदी काल  के  प्राचीनतम  चीज़ों  में  अति आदी हो।

भविष्य में पैदा होनेवाली नई चीज़ों में प्राचीन हो ;

हे शिव तू आदि -अंत हो।

इस सन्दर्भ  में लेखक  कहते है कि  शिव के बदले तिरुवल्लुवर का नाम लिखने  से ,

नए आम-वेद के रचयिता की प्रशंसा होगी ;तिरुक्कुरल ऐसा  ही ग्रन्थ  है।

उपयोगी दानों के पौधों के बीच अनुपयोगी  नालायक  पौधे  भी उगते हैं।

लेकिन किसान नालायक. पोधों को जड़-मूल उखाड़ फेंककर 

 उपयोगी पौधों की रक्षा  करता है।

माँ।पो।शिवज्ञानम   ने लिखा है कि  तिरुवल्लुवर के जमाने में अच्छे  लोगों के  बीच

 कुछ विषैले पोधों के समान बुरे लोग  रहे होंगे; 

उन बुरे लोगों की संख्या बढाने से रोकने के लिए  ही

 तिरुवल्लुवर ने तिरुक्कुरल  लिखा होगा।


वल्लुवर के जमाने में ही तमिल रीति-रिवाजों  के उलटे रीति-रिवाज के 

उत्तर भारत की आदतें तमिल प्रांत में प्रवेश हो रही थीं।

अब हम अंदाजा लगा सकते हैं कि  तमिल लोगों को अपने ही रीति-रिवाजों  के पालन में

 दृढ़ रहने के लिए वल्लुवर  ने कुरल लिखा होगा।

पुलवर कुलन्तै ने अपने तिरुक्कुरल के मूल्यांकन में लिखा है 

  तिरुक्कुरल तमिल लोगों के जीवन का  कानून ग्रन्थ  है।

तमिल लोगों की सुरक्षा-सेना है।

वह तमिल-संस्कृति  का भण्डार-गृह है।

No comments:

Post a Comment