Tuesday, July 10, 2012

4.न्यायाधिपति

ई.वे.रा. पेरियार ने बीसवीं शताब्दी के पूर्व आधे पचास वर्षों में तमिल नाडू भर में स्वमर्यादा यज्ञ के सम्मेलनों में जिन प्रस्तावों को पास किया,उन सब को इक्कीसवी सदी के आरम्भ में शासकों से क़ानून का रूप दिया गया। वे सब आज चालू हैं।
 वैसे ही तिरुवल्लुवर की  धर्म-  नीति    मृत्यु दंड देने के सम्बन्ध में कानून बन गया। इंडियन पीनल कोड 302 विभाग के अनुसार खून करने का दंड मृत्यु दंड या आजीवन कारवास का दंड दिया जाता है ।
वध न करने का धर्म-  नीति  का  क़ानून बन जाने का यह उदाहरण है।


यद्यपि तिरुवल्लुवर ने आधुनिक क़ानून का अध्ययन नहीं किया,फिर भी इंग्लैण्ड में जो क़ानून अस्सी साल के पहले लागू किया  गया,उसे वल्लुवर ने दो हज़ार साल पहले अपने कुरल में लिखा है।
ऐसा   लगता  है  कि  वल्लुवर बड़े न्याय-शास्त्र  के  ज्ञाता  रहे होंगे.




न्यायाधिपति 

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