Wednesday, July 11, 2012

.-8.न्यायाधिपति

तिरुवल्लुवर  ने   अपना    योजनाबद्ध    तिरुवल्लुववाद   में


 हर एक अधिकारं   के  शीर्षक पर दस-दस कुरलों  को  लिखा है।

एक ही विषय को अपनाकर उसको दस-दस    विविध रूपों   में  लिखा है।

एक विषय को दस  बार कहने  पर ही  असर पडेगा  और मन को लगेगा।

इस सांसारिक रीति  को जानकर  ही  वल्लुवर ने दस कुरलों  में अपने विषय  पर बल दिया है।

नीतिपति  पे।वेणुगोपाल  ने तिरुवल्लुवर के दस कुरल लिखने के कारणों पर यह विचार प्रकट  किया था।

तिरुक्कुरल  ग्रन्थ  केवल ताड़-पत्र के रूप में ही अनेक साल पड़े रहे।

इस कारण  से  और अन्यान्य  कारणों से  कुछ   शीर्षकों  के कुरलों  में दूसरों का हाथ  लगा है

और कुछ  कुरलों में मूल  कुरल से कुछ हेर-फेर   हैं।

फिर भी  यह ग्रन्थ  अधिकाँश मूल -रूप-सा  ही लगता है।


डा0.रा।पि।सेतुप्पिल्लै  ने तिरुक्कुरल की विशेषता  की तारीफ करते हुए  कहा --"शिक्षित  जो नहीं  जानते,

उनको वल्ल्लुवर जानते थे।

शिक्षितों की सीमा रेखा बनकर ,अध्यक्ष  बनकर,महत्वपूर्ण  सत्य बातों को

अपने ज्ञान  से पहचानकर,

संसार के लोगों के सामने  प्रकट करके   तिरुवल्लुवर ने अमर कीर्ति  पायी है।

  अब तक  हमने देखा  कि वल्लुवर में मनुष्यता  और मनुष्य -स्नेह  की पूरी योग्यताएं  विद्यमान  थीं। .

 वे  श्रेष्ठ गुण थे,जिनके कारण वे न्यायाधिपति कहलाने लगे।

पूर्व -काल  में तमिल  संस्कृति को उत्तर की संस्कृति हड़प रही थी।

तिरुक्कुरल  की रचना रीति  पर ध्यान देने पर  पता  चलता है  कि  वे एक राजनैतिक विशेषज्ञ थे;

तामिल संस्कृति   के  श्रेष्ठ ज्ञाता  थे;

तमिल-जाति  के  प्रेमी थे;

 तमिल लोगों  के जीवन-क्रमों की  हर बात के ज्ञाता थे।

अतः  वे काव्य -सिद्धांत   की रूढ़ियों  के अनुसार रचना करने में समर्थ रहे;

साथ ही  अल्प-संख्य  लोगों की

शिष्ठ्ता की व्याख्या करके  तामिल लोगों का क़ानून -ग्रन्थ तिरुक्कुरल  लिख चुके हैं।

तिरुक्कुरल  की महत्ता  इस में  है कि  वह शुद्ध  तमिल-ग्रन्थ है।

वल्लुवर ने  अपने इस ग्रन्थ में  तमिल,तमिल लोग,तमिळ नाडू  आदि शब्दों का  कहीं प्रयोग नहीं किया है।

फिर भी यह  पराये सिद्धांत के विरोध का ग्रन्थ  है।

तमिल  लोगों  की जिदगी  ही तिरुक्कुरल  है।ये सब तिरुक्कुरल  की खूबियाँ हैं।


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