Saturday, July 21, 2012

  वल्लुवर  सुमंत्री के लक्षण और उनके कर्तव्य  और जिम्मेदारियों   के महत्व बताने के बाद  उनके अधीन के कर्मचारी   सेनापति  के लक्षण  का जिक्र  करते हैं।
उनके कुरल -ग्रन्थ  में सैनिक-महत्व्  के अधिकारं  सतहत्तरवाँ  है।  सत्तास्वाँ   अधिकारं है  शत्रु-लक्षण।
इन दोनों अधिकारमों के भेद  पर पहले जान्ने का बाद  सैनिक -महत्व्  पर विचार  करेंगे।

 बेवकूफी,मित्रता  न  निभाना, रिश्ता छोड़ना,निस्सहायता  आदि कमी-पेशियों से शत्रुता के लक्षण बताना  शत्रु-का महत्व  अधिकारं है। थोड़े  में कहें तो  शत्रु-पर आक्रमण करके  शत्रु-नाश करना शत्रु-विशेषता है।
सैनिक महत्व्    तो चढाई के बाद  जान को तुच्छ  मानकर  अंत  तक लड़-मरना।

राजा के सुमार्ग की कमाई  की सुरक्षा  करना  और दुश्मनों से देश को बचाना  सैनिक-विशेषता होती है।

इस अधिकारं  में एक कुरल को छोड़कर  बाकी  नौ  , कुरलों  में "पडै "(सेना) शब्द  का प्रयोग हुआ है।यही कुरल की विशेषता  है।

एक राजा की रक्षा के लिए  अंत तक  लड़कर , पीठ  न दिखाकर वीर गति प्राप्त करने की सेना  मूल-सेना है।
क्या सेना में भी भेद हैं?  हाँ, सेनायें  छे  प्रकार की होती  हैं।1.कूली सेना,देश सेना,जंगली सेना,सहायक सेना,दुश्मनी-सेना आदि। इनमें  मूल-सेना का ही महत्व  अधिक है। युद्ध  काल में ही जो सेना तैयार  की जाती है,वह कुली सेना है।दुश्मनों से किसी मानसिक-कटुता के कारण आ मिले हैं,व शत्रु-सेना है।




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