Monday, July 2, 2012

4. महान।साधु/ उत्कृष्ट आदमी।


एक मुनि ने सर्प से कहा --तुम मनुष्य को मत डसो;उसे डराने के लिए फुफकारो।
 वैसे ही नालडियार  कहते हैं--
कोमालंगीनी  से करो कोमल व्यवहार।
वैरियों से वैरियों-सा व्यवहार;ठगों से ठगों के जैसे ही व्यवहार;
सद्गुणियों  से  सद्व्यवहार; यही उचित है।यह उपदेश नालडियार  में है।
तमिल:

मेल्लिय नाल्लारुल  मेन्मै  ;अतुविरन्तु
ओन्नारुट  कूट्रुत्कुम  उत्कुडैमै ,एल्लाम
सलावरुट   चालच चलमे ;नलवरुल 
नन्मै  वरम्बाय  विडल।

 याचकता  का  भय   के सम्बन्ध में वल्लुवर और नालडियार  के विचार एक समान ही  प्रकट  हुए हैं।

नीच कार्य करके, अन्यों की निंदा और अपयश का पात्र बनकर जीने से  और पेट भरने से , भूखा रहना ही बेहतर है।

कुरल:--इलि तक्क  सेय्तोरुवन  आर  उनलिन  पलित्तक्क   सेय्यान  पसित्तल  तवारो ?

वल्लुवर के उपर्युक्त कथनानुसार नालाड़ीयार ने भी लिखा है--

हमारी  आँखों के तारे के सामान के लोग,जो अपनी संपत्ति तक नहीं छिपाते ,
उनसे भी बिना माँगे जीना उत्तम है।माँगने  के बारे में सोचते ही दिल का धड़कन बढ़ जाता है।

नालडियार :-
करवात  तिन्नन्पिन  कननन्नार  कन्नुम
इरवातु  वाल्वताम  वाल्क्कै  ;--इरविनै
उल्लुन्काल  उल्लं  उरुकुमाल ,एन्कोलो
कोल्लुन्गाल कोलवार कुरिप्पू।


बात ऐसी है तो दूसरों की चीजों को अपहरण करने वाले
 के दिल में  कितनी  बेचैनी  होगी।
 नालडियार  के विचार सोचनीय है।
नालडि यार  और आगे अपने पद में जो कहते हैं,वे और भी पश्चाताप की चरम सीमा पर पहुंचा देता है---

दरिद्रता और गरीबी शरीर को कष्ट दे रहा  है ,
ऐसी स्तिथि में विवेकहीनता के कारण
 एक धनी से कुछ मांगकर ,
वह नकारात्मक जवाब दें तो
 वहीं  मर जाने की मनोस्थिति में आजायेंगे।
नालाड़ीयार का मतलब है,  मांगकर जीने से मरना बेहतर है।
यह नालाडि यार का सुमार्ग है।
तमिल:
पुरत्तुत  तन  इनमै  नविय  अकत्तुत  तन
नन ज्ञानम्  निक्की  निरी इ  ओरुवने
इयाय एनाक्केंरिराप्पानेल  अन्निलैये
मायानो माट्री  विदीन।

सबकी मर्यादा की रक्षा करने का शास्त्र और यन्त्र है--शिक्षा।
विशेषतः महानों को ज्ञान ही प्रधान होता है।
तालाब  में पानी भरा है;उसको अपयश करना पाप है;मनुष्य  मन में काम भरा रहता है।
उसको नाश करके उचित मार्ग  पर ले  चलनेवाला  ज्ञान ही है।

विलाम्बिक नायनार:

कुलित्तु  निर्पतु  नीर्तन्ने  पल्लोर  पलिततु  निर्पतु  पावं --अलित्तुच

चेरिउली  निर्पतु   कामंतनक् कोन्रु  उरुवुली  निर्पतु  अरिवु।

ज्ञान भरे बड़े लोग - और -शिक्षा और ज्ञान के कारण संयमित लोग ही  ज्ञानी  कहलाता है।.(इन्ना नार्पतु))

  ज्ञानी  वही  है    जिसमें  ज्ञान  भरा  हो,और संयमी हो। वही उत्कृष्ट  आदमी  है।

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