Tuesday, July 17, 2012

शासक-5

शासक-5

           आज जैसे केंद्र  सरकार  और राज्य -सरकार  आदि  विभाजन हैं ,वैसे ही वलूवर के जमाने  में और उनके बाद  साम्राज्य  राज्य और छोटे-छोटे राज्य  थे;जिसके शासक सम्राट,राजा होते थे।

वल्लुवर ने अपने "अर्थ " भाग में केंद्र और राज्य सरकार के दायित्व ,अधिकार आदि की व्याख्या की हैं।
विशेष रूप में कहें  तो अर्थ  भाग  में  केवल  केंद्र   सरकार  के बारे  में  ही वल्लुवर ने बताया है।प्रांतीय सरकार का उल्लेख  उन्होंने  नहीं की है।लेकिन उनकी व्याख्या  में केंद्र सरकार की जिम्मेदारियों  को बताने से   यह स्पष्ट  हो जाता  है  कि अन्य जिम्मेदारियाँ  राज्य-सरकार पर निर्भर हैं।यही वल्लुवर का प्राकृतिक -शक्ति और कौशल है।
राजा और सरकार की व्याख्या में सम्प्रभुतता   की  जो व्याख्या की है,वह तो ठीक है।लेकिन तानाशाह  की व्याख्या क्यों की है?
हमें  यह महसूस करना गलत  नहीं  है कि  वल्लुवर ने यह समझाने  के लिए ही लिखा होगा कि  राजा भी भूल करनेवाला  है;अपराध करनेवाला है।

उपर्युक्त  लगभग छत्तीस  किस्म  के शासन प्रणालियों में , आज सारे संसार  में दो तरह के शासन ही होते हैं। वे अधिकांश  राजतंत्र  और लोकतंत्र  शासन हैं।

वल्लुवर  ने अपने ग्रन्थ में  प्रजातंत्र और लोकतंत्र  दोनों के लिए उपयुक्त  आम  सिद्धांतों  के लिए एक बड़े भाग  की रचना की है।
अरिसिल किलार ने कहा है कि  अर्थ-शास्त्र को बड़ी गहराई से अध्ययन करने  से पता चलता है  कि  संक्षेप में बताकर  विस्तार पूर्ण व्याख्या करने में वल्लुवर -सम  कोई नहीं हो सकते।

Monday, July 16, 2012

shaasak-4


शैव मत के अटल भक्त मानिक्कावासकर ने तिरुवेम्बावै   में 

एक पद्य शिव -स्तुति में लिखा  है ---

प्राचीनतम आदिकाल के वस्तुओं में तू  आदी   हो! 

तमिल :- मुन्नैप पलम  पोरुटकुम मुन्नैप पलम पोरुले !

आगे उत्पन्न  होनेवाले नए सृजन में तू नए हो!!   

               पिन्नाप्पुतुमैक्कुम  पेर्तुतुम अप्पेट्रीयने !

आदी काल  के  प्राचीनतम  चीज़ों  में  अति आदी हो।

भविष्य में पैदा होनेवाली नई चीज़ों में प्राचीन हो ;

हे शिव तू आदि -अंत हो।

इस सन्दर्भ  में लेखक  कहते है कि  शिव के बदले तिरुवल्लुवर का नाम लिखने  से ,

नए आम-वेद के रचयिता की प्रशंसा होगी ;तिरुक्कुरल ऐसा  ही ग्रन्थ  है।

उपयोगी दानों के पौधों के बीच अनुपयोगी  नालायक  पौधे  भी उगते हैं।

लेकिन किसान नालायक. पोधों को जड़-मूल उखाड़ फेंककर 

 उपयोगी पौधों की रक्षा  करता है।

माँ।पो।शिवज्ञानम   ने लिखा है कि  तिरुवल्लुवर के जमाने में अच्छे  लोगों के  बीच

 कुछ विषैले पोधों के समान बुरे लोग  रहे होंगे; 

उन बुरे लोगों की संख्या बढाने से रोकने के लिए  ही

 तिरुवल्लुवर ने तिरुक्कुरल  लिखा होगा।


वल्लुवर के जमाने में ही तमिल रीति-रिवाजों  के उलटे रीति-रिवाज के 

उत्तर भारत की आदतें तमिल प्रांत में प्रवेश हो रही थीं।

अब हम अंदाजा लगा सकते हैं कि  तमिल लोगों को अपने ही रीति-रिवाजों  के पालन में

 दृढ़ रहने के लिए वल्लुवर  ने कुरल लिखा होगा।

पुलवर कुलन्तै ने अपने तिरुक्कुरल के मूल्यांकन में लिखा है 

  तिरुक्कुरल तमिल लोगों के जीवन का  कानून ग्रन्थ  है।

तमिल लोगों की सुरक्षा-सेना है।

वह तमिल-संस्कृति  का भण्डार-गृह है।

शासक -3





                                                                                         शासक -3

   तमिल  कविवल्लुवर  के विचारों को ध्यान से अध्ययन करने पर पता  चलता है  कि  संसार आज एक परिवार -सा मित्रता रखना  चाहता  है तो वल्लुवर के बताए  "मित्र" का मार्ग ही है। आज अमेरिका ऐक्य देश और रूस  दोनों  मित्रता  को एक आदर्श समझ रहा है जिससे  संसार एक  दूसरे  के निकट संपर्क में आ रहा है।

सरकार ,शासन आदि शब्द  राजनीती -शाश्त्र से  प्रयोग में आये  हैं।इसको संप्रभुता ,शासन प्रणाली आदि अर्थ  होते हैं।
राजा-सिंहासन ,राज-सभा आदि शब्दों से राजा के लक्षण बनाए गए हैं।

सरकार के मतलब  राजा के गुण ,राजा,राज्य ,नेतृत्व   आदि बताये गए हैं।"राज्य करना "शब्द प्रशासन हैं ;और सरकार के छे अंगों से सम्बंधित  है।

राजा को अंगरेजी में "king " कहना रूढ़  शब्द  है;राजा परम्पराधिकार का शासक होता है।राजा शब्द जातिवाचक सज्ञा  है तो मतलब है देश का शासक।  वही क्रिया है तो शासन करो के अर्थ देता है।
इसमें  "king  stroke " का मतलब है  तानाशाह;"किंग क्राफ्ट "का मतलब है  सप्रभुत्व  शासन।
किंग्डम   का मतलब है ---राजतंत्र  देश;राजा के अधीन का राज्य ;शासित भाग;क्षेत्र; आदि।

किंगडम  शब्द  से किन्ग्शिप  शब्द  बना;मतलब है  राजपद;राज्स्थिति;राजा का मूल्य ;आदि ।

उपर्युक्त शब्दों से ही "शासन" शब्द  बना। इस शब्द का मतलब है शासन करना ,शासनाधिकार आदि।जो उपर्युक्त अधिकार प्राप्त है ,वही शासक   बनता  है।














शासक --2

शासक -2

सम्प्रभूति  के राजा धर्म,अर्थ,काम, प्राण -भय   आदि  गुणों से  युक्त
 मंत्री,सेनापति,दूत,चर आदि चार प्रकार के  पटु लोगों  को
  चुनकर   नियुक्त  करता  था ।उनके द्वारा देश को समृद्ध बनाता था।

 और देश की आय बढाता  था ।
जो आमदनी मिलती थी ,उन सब को धर्म अर्थ और काम
 कार्यों  में   व्यय करता था ।
वह देखने में सरल  और  व्यवहार  में मधुरभाषी  था।
 वे अपराधियों को दंड देते थे।
निम्न लोगों के संग में नहीं रहते।
बड़े लोगों के संग में रहकर  नाते-रिश्तों  से  गले लगाकर ,
अपराध सहकर  शासन  करते थे।

वे चार प्रकार  की  सेना रखते थे।
दुसरे राजाओं से मिलनसार  होते थे।
उनमें स्त्री -मोह न था।
वेश्या-गमन  न था।
मधु  नहीं  पीते।
वे  जुआ नहीं खेलते;
संतुलित भोजन  करते थे।
 अपने शरीर  को स्वस्थ रखते थे।
नागरिकों के दुःख दूर करते   थे।
मंत्री और सेनापति  का बड़ा सम्मान  करते थे।
 संक्षेप में कहें तो   नागरिकों को पांच प्रकार्  के दुखों से रक्षा  करना  ही तिरुवललुवर  की राजनीती  थी।






शासक प्रशासक--1

शासक
प्रशासक

 पहले  ही हमने  उल्लेख  किया  कि सारी  नदियाँ   सागर  में  ही  संगमित  होती  है। वैसे ही मानव  समाज  की सभी  घटनाएँ  न्याय  में संगमित होकर  परिवर्तन    हो जायेंगी। अब वह न्याय भी संगम होने का स्थान  सरकार है।

  " सत्य -वचन "  कहकर  ज्ञानियों  से प्रशंसा  प्राप्त  तिरुक्कुरल  वेद  में  बीच के सत्तर  अधिकार  राज-शासन, प्रशासन ,राजा और प्रशासक के लिए  साथ देनेवाले चिंतन ,बुद्धिपूर्ण  उपदेश  आदि बातें ही
 व्यापक रूप में  मिलते हैं।

राज्य-शासन  के लिए लाभ  देनेवाले  ज्ञान ,मंत्री,व्यक्तित्व,राज्य-महत्ता ,क्षेत्र -पहचान,गुप्तचर,अत्याचार(नीचता),समय-ज्ञान,उत्कृष्टता,रक्षा,जान-समझकर काम करना,जान-समझकर ज्ञान प्राप्त करना, शोधकर कार्रवाई लेना,सैनिक महत्त्व,बड़ों के साथ चलना ,कार्य -प्रणालियाँ,आदि अधिकारों  का सृजन वल्लुवर ने किया है।
 यूनान के  ज्ञानी  प्लेटो  ने  बढ़ती  सरकार  के बारे में  कहते  हैं-----
अच्छों  के शासन या  उच्च  लोकतंत्र बनाना  जो चाहते हैं ,वे एक गलती  करते हैं।वे  अमीरों को अधिक अधिकार देते हैं।चालाकी से लोगों को ठगने की कोशिश  में गलती करते हैं।झूठी भलाई से झूठी बुराई का  एक समय  आ  जाता  है।क्योंकि  अमीरों का अधिक स्थान  लेना ,आम जनता  के असीमित कार्यों के कारण, सरकार के पतन निश्चित   हो जाते  हैं।

कई प्रकार की शासन प्रणालियों की सूची देकर,वल्लुवर के कुरलों  की सहायता से शासकों के बारे में कुरल जो कहता है,उसपर  विचार करने से  शासन के बारे में, वल्लुवर के जो  गहरे  चिंतन  है,उसका पता चलेगा।
देखिये, शासन  प्रणालियों की सूची:-
मातृसत्तात्मक (matriarchy)

पितृसत्तात्मक(patriarchy

नगर-शासन(city state)

धर्म-तंत्र (theocracy)

राजतंत्र (monarchy)

निरंकुशता(Autocracy)

तानाशाह(dictatorship)

सीमित राजतंत्र (limited monarchy)

 संसदीय राजतन्त्र  (parliamentary monarchy)


 द्विशासन प्रणालियाँ :

  1. धर्म-गुरुतंत्र।
    (hicrocracy)
  2. अभिजात वर्ग तंत्र
    (aristocracy)

  3. अल्प-सूत्र  शासन (oligarhy)

  4. बहुसूत्र शासन(polyarchy)

  5. धनिक्शासन(plutocracy)

  6. फौजिहुकूमत  आदि।(stratocracy)

  7. लोकतंत्र  के विभाजन
  8. गणतंत्र(Republic)

  9. एकात्मक सरकार(unitary government)

  10. संघीय सरकार(federal government)

  11. समाजवाद(socialism)

  12. साम्यवाद(communism)

  13. फाज़िज़म (बंधयुक्त

  14. मज्दूर्शाही(ergatocracy)

  15. हुल्लडी बाज़ी(mobocracy ochlacracy)
    16.    सर्वतंत्र (partisocracy) आदि.

 व्यवहार में  उपर्युक्त  शासन दो  तरह के होते हैं।1.सम्प्रभुत्व शासन (benign government)  2.निरंकुश(despotic government}

होमरूल ,गृह-शासन

अन्य -शासन (xenocracy)

एकतंत्र (monocracy)

बहुतंत्र( polyarchy)

 साम्राज्य(imperialism)

राज्य(Feudalism)

संसदीय  सरकार(parliamentary)

असंसदीय सरकार(nonparliamentary)

नर-सत्ता(androcracy)

नारी-सत्ता(gynecrocracy)

पूंजीपति-सरकार(capitalistic government)

मजदूर-शाह
आदि।


तिरुवल्लुवर के जमाने  में  राजतंत्र   मात्र  था। उसके अंग  थे ---नागरिक,अर्थ,सेना,दुर्ग ,मंत्री,मित्र   आदि।

शासन  एक अमुक  क्षेत्र के अंतर्गत  था। ;   राजतंत्र  सम्प्रभुत्व  या निरंकुश  होता है।

















Sunday, July 15, 2012

संप्रभुता-3

संप्रभुता -3

कोई राजा अपने राज्य में न्यायपूर्ण शासन  करता है ,तो संसार के लोग उसके चरण स्फर्श  करेंगे।उसके
 सुशासन का  बल अधिक  होता  है।

वल्लुवर की तुलना यूनान  के कवि   पोकिलैटिस   के साथ  करना चाहता  है। उनका  जीवन-काल ई.पूर्व छठवाँ  शताब्दी  है। उनके बारे में  अरस्तु ने  अपने "राजनीती"नामक  ग्रन्थ  में लिखा  है।पोकिलैटिश  यूनान के मैलिटास  नामक स्थान  में रहते  थे।उनके पद भी  कुरल -सा दो चरणवाले होते हैं।  उनमें धार्मिक अनुशासन के  सिद्धांत  होते  हैं।

 अपनी कविताओं के बारे में  उन्होंने  लिखा  है--"विषय जो भी हो,अपनी तटस्थता   के कारण अमर रहेगा।
मैं  भी  अपने शहर  में  तटस्थ  रहना चाहता हूँ।
वल्लुवर के कुरल भी  दो चरण के हैं। वल्लुवर का उद्देश्य  यह हैं  कि  न्याय  की स्थापना  में न्यायाधीश  को
तटस्थ  रहना चाहिए। उसके लिए उन्होंने जो औजार दिखाया  है  वह "तुला"है।
काल के अनुसार पोकिलैटिश   वलूवर के  पहले जमाने में रहते थे।फिर भी तटस्थता  के चिंतन में दोनों
बराबर  हो जाते  हैं।

संप्रभुता  के लक्षण  हे क्या है?
प्रजा की चाह  राजा होनी चाहिए;राजा की चाह प्रजा होनी चाहिए।

प्रजा की भलाई में राजा प्रजा को गले लगाकर चलेगा तो प्रजा राजा के गले लगाकर चलेगी।


      कुड़ी तलियीक  कोल ओच्चुम  मानिल  मन्नन   अडितलीयी   निर्कुम  उलकू।

 the world takes heed of the advice of a ruler who treats  his people fairly and justly.


लोगों से गले मिलने का मतलब होता है ---लोगों की जरूरतें  पूरी  करना।मधुरता से लोगों की बातें सुनना और सुनाना, लगान न मांगना, आदि।राज्य को अति ध्यान देकर  शासन करना;देश की प्रगति करना आदि।वल्लुवर के इस कुरल का अनुवाद पोप ने यों क्या  है:-
 the world  will constantly embrace the feet of the great king who rules over his subjects with love.

न्यायाधिपति  वल्लुवर  कसम खाकर कहते हैं  कि  न्यायानुसार शासन करनेवाले राजा की रक्षा न्याय ही करेगी।

  इरै  काक्कुम वैयकम  एल्लाम  अवनै   मुरै   काक्कुम  मुटटाच चेयिन .


कोवलन के अपराध  की  पूछ -ताछ  न करके  पांडिय राजा नेदुन्चेलियन  ने वध करने की सजा दी;
सत्यता प्रकट हुयी तो खुद अपनी जान दे दीं।अनजान  से  गलती हो गयी ;फिर भी उन्होंने   अपनी गलती मान ली; सुशासन उनकी रक्षा करने से नहीं फिसलेगा।

 if the ruler takes care of his people fairly and justly the rule of law  will safguard him.

g.u.pope:--
THE KING DEFENDS THE WHOLE WORLD;AND JUSTICE WHEN ADMINISTERD WITHOUT DEFECT,DEFENDS THE KING.

एक   राजा  तमिल वेद    के  लेखक और नयायाधिपति   वल्लुवर  के कथनानुसार सुशासन  न करेगा  तो उसका पतन निश्चित है।
 राजा  जो सुशासन  नहीं करता, उसका  पतन  तुरंत  न होगा।उन्नति  और -पतन दोनों के  बीच  संघर्ष करके,
अपमानित  होकर खुद विनाश हो आयेगा।

कुरल: एनपतततान  ओरा  मुरै   सेय्य़ा  मन्नन   तन्पतंतान   ताने  केडुम।


हाथी  अपने सर और शरीर  पर अपनी सूंड से मिट्टी  डाल  देता है,वैसे  ही वह राजा धूल  लेकर अपने सर पर डाल  लेगा।
THE RULER WHO IS UNAPPROACABLE  AND HAS NO SENSE OF ORDER OR FAIRNESS WILL SOON LOSE HIS STATUS AND DESTROY HIMSELF.
G.U.POPE:--
THE  KING WHO GIVES NOT FACILE AUDIENCE (TO THOSE WHO APPROACH HIM)
AND WHO DOES NOT EXAMINE AND PASS JUDGEMENT (ON THEIR COMPLAINTS)
WILL PERISH IN DISGRACE.


अपनी  प्रजाओं  में कुछ लोग  अज्ञानता  के कारण अपराध  करें  तो उन अपराधों के कारण खुद  को
और अपने परिवार -सी  रह्नेवाली भोले भाले  जनता  को होनेवाले कष्टों से बचाना चाहिए।अपराधी को दंड
देना चाहिए। वही राजा का धंधा  है। अपराधी को दंड देने  से  अपयश नहीं  होगा।

राजा  अपने  देश  के अपराधियों को दंड दे ने की तीन प्रणालियों का उल्लेख करते हैं वल्लुवर महोदय।
वे हैं;-1. दंड-शुल्क 2.शारीरिक दंड।3.फांसी की सजा।
हम तो तीनों को अपराध कहते हैं। वह तो गलत हैं।

अपराध:-अपराध के दंड हैं, मंदिरों में दीप जलाना;भक्तों के जूतों  को  धोना, आदि। ये दंड तो स्थान और देश के अनुसार  दिए जाते हैं।
शारीरिक दंड ही कठोर दंड है।
अपराधियों के अपराध के अनुसार दंड  देने पर ,वह उस अपराध को पुनः करने में संकोच करेगा या डरेगा।

उसको अपने को सुधारने  का अवसर मिल जाता है।अपराधी को राजा जो दंड देता है ,उसके फल स्वरुप वह अपराध फिर नहीं होना चाहिए।यह दंड न्याय  राजा का है।

ह्त्या करनेवालों में भी अत्यंत  पापी  कौन होता है? देखिये, पापियों की सूची:-

हत्यारे
आग लगानेवाले,
पेय-जल में विष उन्डेल्नेवाले,
डाकू,उचक्के,
देवालय संपत्ति को चुरानेवाले,
दूसरों के घर -चाहनेवाले
राजा से न  डरनेवाले
 इन सब दुष्टों  को मारकर  अच्छे लोगों की रक्षा करने से बढ़कर  राजा के लिए  और  कोई काम नहीं है।यही राजा का पहला कर्तव्य  है।
विदेशी शत्रुओं  से लड़ना,अपने देश की सीमा बढ़ाना आदि  राजा के लिए द्वितीय काम ही है।

राजा तो यहाँ विष पौधे और  अनावश्यक  पौधों को निराई  करनेवाला माली  है।

 A RULER LIKE A GARDNER WEEDING THE GARDEN MUST REMOVE THE MURDERERS IN ORDER TO PROTECT INNOCENT.

G.U.POPE:-FOR A KING TO PUNISH CRIMINALS WITH DEATH IS LIKE PULLING UP THE WEEDS IN THE GREEN CORN.
 प्राध्यापक पूर्नालिंगम पिल्लै  ने अपने तिरुक्कुरल के अनुसंधान में सम्प्रभूत्व का रस निछोडकर  वल्लुवर
महोदय  को सब न्यायाधीशों के न्यायाधिपति  कहकर ढिढोरा पीटा  है।

"A GOOD KING WILL BE JUST AND IMPARTIAL TAKE ADVICE AND ACT.HE WILL BE HELD DEAR  RAIN DROPS.HE WILL PROMOTE LEARNING AND SAGELY VIRTUE.
HE WILL WIN THE HEARTS OF THE SUBJECTS WHO WILL EMRACE HIS FEET.
THE LAND OF A KING WHO RULES BY JUST LAWS WILL BLESSED WITH SHOWERS AND WILL HAVE ABUNDANCE.EQUITABLE RULE NOT LANCE GAINS VICTORY FOR THE KING.IF THE KING GUARDS HIS REALM JUSTICE GUARDS HIM.THE KING WHO HEARS NO GRIEVANCES AND HEARING DOES NOT EXAMINE EVIDENCE AND PASS
JUDGEMENT WILL GO TO RAIN.TO PUNISH THE WICKED WITH DEATH WILL BE TO WEED OUT THE FIELS OF CORN.






Saturday, July 14, 2012

संप्रभुता -2

संप्रभुता -2

राजा को तमिल में  "कोन " कहते  हैं।"कोन ' तमिल शब्द  का अर्थ  है गडरिया।एक देश की प्रजाएँ  "बकरियाँ"  हैं  तो   राजा " गडरिया " है। "संप्रभुता" जिसका  तमिल शब्द  है  चेंकोंमै .यह संप्रभुता  चुस्त  राजा ही  कर   सकता  है।  यह  अधिकार "अपराध  न करना  अधिकार  के बाद  ही आता है।यह ध्यान  देने की बात  है।
अपराध और गुण दोनों को तोलकर शोध  करने  से यह " दंड " बन गया।

   "अत्याचार "  में  जैसे  तीन प्रणालियों के बारे में वल्लुवर  महोदय  ने चर्चा  की  है,वैसे  ही "संप्रभुता " को पुष्टि   करने तीन प्रणालियों का जिक्र  किया है।

 एक  अपराधी  के अपराधों को पूछ-ताछ  करके किसी प्रकाक की दया दिखाए बिना ,अपराध के अनुसार दंड  देना  ही   "इन्साफ " हॉट है।

वल्लुवर ने अपने  कुरल  में पाँच  बातें   इन्साफ  देने  के सम्बन्ध  में   बतायी  हैं। खोज करना,अवलोकन करना ,प्रशासनिक कार्य  करना,अपराधी  जो  भी  हो,दंड चुनना  आदि के बाद  ही न्याय दे सकता  है।ऐसी बातें
 उनके कुरल में खान के धातु -सम  मिलती रहेगी।

अपने  प्रथम  कुरल  में  वल्लुवर ने संप्रभुता के लक्षण खूब बताये  हैं।एस।रत्नकुमार  ने  एक ही शब्द  में   इस वल्लुवर के कुरल के बारे में  बताया  है  ---"सम्प्रभूता  को  वल्लुवर ने "जस्टिस"कहकर  संसार को बताया है।


THERE WILL BE JUSTICE IF THE RULER IMPLEMENTS A COURAGE OF ACTION ONLY AFTER HE HAS EVALUATED  THE SITUATION   IN HAND.

REV.FATHER.G.U.POP--TO EXAMINE IN TO (THE CRIMES WHICH MAY BE COMMITED)
TO SHOW NO FAVOUR (TO ANY ONE)TO DESIRE TO ACT  WITH IMPARTIALITY TOWARDS ALL AND TO INFLICT (SUCH PUNISHMENT)AS MAY BE WISELY RESOLVED ON ,CONSTITUTE.
ब्राह्मणों  द्वारा रचित नीति-ग्रन्थ  और धार्मिक ग्रन्थ , जो लोगों के सुमार्ग  पर चलने  का आधार हैं,

वह राजा के सम्प्रभूता  के कारण ही  सुरक्षित  रहेगा।तोल्काप्पियर  ने  कहा --एक ग्रंथकार  की प्रशंसा
 करना,कर रहित खेत  देना,
पुरस्कार देना,एक ग्रन्थ को प्रकाशित करना  आदि   काम  राजा के ही हैं।  तोल्काप्पियम  के अनुसार

पुराने  जमाने  में  सभी आदि ग्रन्थ मुनियों के  द्वारा  ही लिखे गए हैं।
इन सब को वल्लुवर ने क ही कुरल में बताया है।

राजा  का दंड  ही विप्रों के ग्रन्थ ,धर्म आदि के आदी है  राजा का सम्प्रभुत्व।

राजा का शासन सुशासन न  होने पर  धर्म -ग्रंथों  की स्तुति करनेवाले,धर्म पथ का पालन करने वाले कम हो जायेंगे।
वल्लुवर एक धार्निक सज्जन हैं।धर्म ग्रंथों  में जो धर्म की बातें हैं,वे सब तिरुक्कुरल के 'धर्म "भाग में मिलते हैं।

THE  RULER'S GOOD SENSE OF JUSTICE AND FAIRNESS AND INSTRUMENTAL FOR THE PROGRESS OF MORAL LAWS AND "ARAM"  (DOING THINGS ,WITH HONOUR FOR THE LESS FORTUNATE.

G.U.POPE--THE SCEPTER OF THE KING IS THE FIRM SUPPORT OF TH E VEDAS  OF THE
BRAHMIN AND OF ALL VIRTUES THERE IN DESCRIBED.