Wednesday, July 18, 2012

वल्लुवर  ने अध्यवसाय  के महत्व्  पर एक अधिकार  लिखा है।  क्यों?

कुछ  लोगों का  कहना है  कि मेरा भाग्य ठीक नहीं है;

मैं दुःख को ही   अपने  जीवन में भोग  रहा हूँ।

 लेकिन वे अपने दुःख दूर करने के प्रयत्न  में नहीं लगते।

उनसे कोई  पूछेंगे   तो यहीं कहेगा   कि  मैंने कोई प्रयत्न नहीं किया .

वैसे  लोगों के लिए ही  वल्लुवर ने   "लगातार प्रयत्न "नामक अधिकार  लिखा है।

सुअवसर न मिलने पर भी ,

हतोत्साहित होकर बैठना ठीक नहीं है;

 हमें अपने दुःख पहचानकर
  उसे दूर करने के प्रयत्न  में लगना चाहिए।

वैसा प्रयत्न  न करना ही व्यक्ति का दोष  होता है।

किस्मत या सिरों रेखा  कहकर आरोप लगाना उचित नहीं है।

सब कुछ प्रकृति  ही   दे देता है  तो मनुष्य जन्म की जरूरत ही  क्यों? 

किसलिए?

"पोरी इनमै  यार्क्कुम  पलियनरु  अरिवु अरिन्तु   आल्विने  इनमै  पली।"

अंग्रेजी  अनुवाद :a person's physical deformity is not the real flaw  unlike the lack of willingness to persevere in seeking knowledge.
 g.u.pope;- adverse fate.
ADVERSE FATE IS NO DISGRACE TO ANYONE;TO BE WITHOUT EXERTION AND WITHOUT KNOWING WHAT SHOULD BE KNOWN IS GRACE.

"ARISTOCRACY "  शरीफों  का सुशासन था;

वही  आज लोकतंत्र बन गया। 
एक राजनीति संस्था  या दल स्थायी रूप में रहना है तो 

उस सरकार के सभी भागों में 

सरकारी अधिकारों की सुरक्षा की चाह होनी चाहिए।

      प्लेटो का सिद्धांत  है   कि लोकतंत्र  सब से नीच   है; लेकिन नीचताओं    में बढ़िया है।  

इस लोकतंत्र  सरकार बनाकर ही  हम जी रहे हैं।

सिद्धांत  या अवधारणा  जो भी हो शासकों को देशवासियों की भलाई के लिए शासन करना चाहिए।

जो भी करें ,
सही ढंग से करना चाहिए।

यही तिरुवल्लुवर महाशय की  शुभेच्छा   थी।

तिरुवल्लुवर ने इसी उद्देश्य  को लेकर ही "अर्थ'भाग लिखा था।

 वही सरकार  है,जो धर्म ,काम ,उपभोग वस्तू जीने केलिए 

आवास  आदि प्रदान करें;

और सुखी जीवन बिताने सभी प्रकार से साथ दें।

सरकार का मतलब ही सुरक्षा  होता है।अच्छी  सरकार के लक्षण भी यही है.

वल्लुवर के कुरल का पहला अधिकारं राजनीति के सम्बन्ध में सुशासन-सम्बन्धी ही है।

शासन करनेवाले नेता की श्रेष्ठता  है, ज्ञान-कौशल,सद्गुण,सद्कर्म आदि.










SHAASAK-10

वल्लुवर  मंत्री  को  व्यवहारिक  ज्ञान   के  बारे  में  कहते  हैं:-

सेयर्के  अरिन्तक  कडैत्तुम  उलकत्तु   इयारकै  अरिन्तु  सेयल .

कृत्रिम  ज्ञान सिद्धान्तिक  ज्ञान प्राप्त करने के बाद भी प्राकृतिक ज्ञान का ही एक मंत्री को प्रयोग करना चाहिए।

इसकी व्याख्या  में वल्लुवर खुद  कहते हैं  कि

उलकत्तोडोट ट  ओलुकल  पलकट्रुंग  कल्ला रारिविलातार .

संसार के व्यवहार के अनुसार जो व्यवहार  नहीं करता ,वह शिक्षित  होने पर भी अशिक्षित ही  होता है।

ratnakumar:- A MINISTER,EVEN IF HE HAS THE KNOWLEDGE TO PERFORM MUST BE PRACTICAL.
G.U.POP:-THOUGH YOU ARE ACQUAINTED WITH THE THEORETICAL METHODS OF PERFORMING AN ACT UNDERSTAND THE WAYS OF THE WORLD AND ACT ACCORDINGLY.

वल्लुवर  महोदय कहते हैं कि

 एक मंत्री गलती  करता है  या

 एक अयोग्य अपराधी को पास रखने से
एक दुश्मन  को पास रखने में  भला हो  सकता है।

एक  नहीं, सत्तर करोड़ दुश्मनों को पास रख लो;

लेकिन एक अयोग्य  की नियुक्ति ,सर्वनाश की नियुक्ति।

तुला  के एक ओर  योग्य मंत्री बिठाओ ;

दूसरी ओर सत्तर करोड़ दुश्मन बिठाओ;

एक बुरे विचारवाले मंत्री सत्तर करोड़ दुश्मन के बराबर होगा।

एक आतंरिक दुश्मन हैं;

बाह्य  दुश्मन सत्तर करोड़;

दोनों से हम लडें  तो आतंरिक शत्रु मंत्री  विजयी होगा।

इसलिए राजा का पहला  काम है

बुरे मंत्री को पद से हटा देना।

तिरुक्कुरल देखिये:
पलुतु एन्नुम मंतिरिइन पक्कात्तुल तेव्वोर  एलुपतु कोडी उरुम।

इस अधिकारं का शीर्षक  वल्लुवर ने "अमैच्चु " तमिल शब्द रखा था।

पर बुरे मंत्री के ऊपर के क्रोधावेश  के कारण कुरल  में  "मंत्री " संस्कृत  शब्द का प्रयोग  कर दिया।

गुण के शिखर  के वल्लुवर के मुख से क्रोध के कारण तमिल शब्द  सूझा नहीं हैं।


रत्नकुमार:-THE HYPOCRISY OF A MINISTER IS MORE DANGEROUS TO THE RULER THAN THE COMBINED HOSTILITY  OF MANY ENEMIES FROM OUTSIDE.
G.U.POPE:-
FAR  BETTER ARE SEVENTY CRORES OF ENEMIES FOR A KING THAN A MINISTER AT HIS SIDE WHO INTENDS HIS RUIN.

राजा हो या मंत्री हो या  प्रजा

  तीनों को अध्यवसाय की ज़रुरत है।

जो मनुष्य अपने प्रयत्न को छोड़ देता है,

उसे संसार छोड़ देगा।

वल्लुवर   का तमिल कुरल:-

विनैक्कन  विने केदल ओम्बल विनैक्कुरै  थीर्न्तारिन  तीर्न्दंरू उलगु।

मतलब है अपने कार्य के प्रयत्न को बीच में ही छोड़ना ठीक  नहीं है;
लगातार कोशिश करके अपने काम को पूर्ण करना चाहिए।
RATNA KUMAAR;-AS THE WORLD WILL GIVE UP ON A PERSON WHO LACKS THE WILL POWER TO PERSEVERE ONE SHOULD GET RID OF THIS NEGATIVE ATTITUDE.

G.U.POPE;-TAKE CARE  NOT TO  GIVE UP EXERTION  IN THE  MIDST OF A WORK;THE WORLD WILL ABANDON THOSE THEIR UNFINISHED WORK..


Tuesday, July 17, 2012

SHAASAK-9


तिरुवल्लुवर इस कुरल में जो "कुड़ी "शब्द का प्रयोग किया है,उसे विद्वान "किसान " कहते हैं।
अव्वैयार  का मुक्त-गीत का भी उल्लख करते हैं।

नूलेनिलो कोल्सायुम नुन्दमरेल वेंचमराम
कोलेनिलो  वानगे  कुडीसायुम---नूलावान
मंत्रियुमावान  वलिक्कुत्तुनैयावान अन्तअरसे  अरसु।

इसमें  कवयित्री  ने कहा है कि  बिना सलाह के राजा का पतन होगा;उनका शासन ठीक नहीं है तो किसान /प्रजा का कष्ट  होगा। वही सरकार  सरकार है जो अच्छी सलाह दें;मार्ग का सहायक बने;मंत्री बने।

ratna kumaar :A MINISTER IS ONE WHO IS BRAVE,ABLE TO TAKE CARE OF THE PEOPLE,EAGER TO LEARN ETHICS OF POLITICS,ABLE TO DO RIGHT THINGS AND IS WILLING TO PERSEVERE.  यह रत्नकुमार  का हिंदी अनुवाद है  तिरुक्कुरल  का।

जी।यू।पोप  का  अनुवाद:----

THE  MINISTER  IS ONE WHO IS ADDITION  TO THE AFORESAID FIVE THINGS EXCELS IN THE POSSESSION OF FIRMNESS,PROTECTION OF SUBJECTS,CLEARNESS BY LEARNING AND PERSEVERANCE. पोप  ने इसका शीर्षक भी दिया है:-THE OFFICE OF MINISTER OF STATE.
मंत्री  के बारे में बोलते समय  मंत्री  के स्वभाव,गुण,कार्य आदि पर भी ध्यान देना चाहिए।उसको पंचेद्रियों का नियंत्रण और पवित्रता की भी जरूरत है।एक कहावत है कि  किताब की लौकी ,पकाने  का काम नहीं आयेगा। अर्थात  एक मंत्री के लिए  ग्रंथों  का ज्ञान  मात्र काफी  नहीं  है;सांसारिक ज्ञान की भी जरूरत  है।
  

SHAASAK-8

कुरल  का तो नाम के  अनुसार रूप छोटा ही है;

पर  कुरल अर्थ तो संसार-सा विस्तार होता है।

सारा संसार उसके अंतर्गत  ही है।

 हम जानते  हैं कि नक्कीरर ,शेक्किलार,कंबर जैसे संघ काल के  कवि

अपने-अपने ग्रंथों को जग  के नाम से ही शुरू किया हैं।

लेकिन वल्लुवरने   तमिलादु में तमिल में  लिखा है;

लेकिन उनकी दृष्टी सारे मनुष्य समाज पर थी।

सारा संसा ही उनकी सीमा है।

उनके एक हजार तीन सौ तीस  कुरलों  में

 अधिकांश  कुरल संसार शब्द  को लेकर  या संसार के अर्थ लेकर ही दीख  पड़ते हैं।

तिरुक्कुरल:-एव्वतु  उरैवतु  उलकम  उलकत्तोडु   अव्वतु  उरैवतु   अरिवु।

इस कुरल में वल्लुवर महाशय  कहते  है  कि

 हर एक आदमी को अपने व्यक्तिगत जीवन को संसार के व्यवहार के अनुसार  चलाना है।

वल्लुवर एक ज्ञानी हैं।एक कवि  है;वही तमिल के ज्ञाता है।

पेरुन्तोकै  नामक ग्रन्थ  के लेखक  कहते हैं: 

अवने  पुलवन। अवने  ज्ञानी ;अवने तमिलारिन्तोन .

वल्लुवर जिस  जग  के बारे में कहते हैं,वह ऊँचे  लोगों का जग है।

ऊँचे  लोगों  के अनुसरण करने पर  सामान्य जनता का अनुशासन ऊँचा  रहेगा।

जो शासक है उनका यश फैलेगा;उनका पद  सुरक्षित रहेगा।

ratnakumar:-IT IS THE ABILITY TO THINK REASON AND UNDERSTAND THAT HELPS ONE TO PROGRESS WITH THE WORLD.
G.U.POPE :-  TO LIVE AS THE WORLD LIVES IS WISDOM.

ज्ञान की आवश्यकता  समझाने के बाद वल्लुवर महोदय  "मंत्रित्व" पर विचार करने को प्रेरित  करते हैं।

मंत्री वही है जिसमें मंत्री के गुण भरे रहते हैं।

वह एक सुशासन के लिए अत्यंत  आवश्यक सहारा  है।

राजा की दूरी स्थिति में मंत्री का स्थान होता हैं।

वल्लुवर  ने मंत्री-शास्त्र पर एक सौ कुरालों की रचना कर

 मंत्री के गुण,कार्य की व्याख्या की है।

पहले दस कुरल में मंत्री के लक्षण की व्याख्या मिलती है।

वन्कन  कुडि कात्तल  कटररितल  आल्विनैयोडू   ऐंतुडन  मान्दत्हू अरसु।

मंत्री के गुण पाँच  होते हैं:-वीरता,श्रेष्ठ -कुल,शिक्षा-दीक्षा नागरिकों की रक्षा में कौशल,अध्यवसाय आदि.


मंत्री के ज्ञान के बारे में कहते समय वल्लुवर ने सीखा  ज्ञान कहा है।

वल्लुवर किसीको शिक्षित आदमी का संबोधन नहीं करेंगे।

सीखा -ज्ञानी ही संबोधित करेंगे।क्योंकि स्नातकों में कोई ज्ञान नहीं रहेगा।

सीखकर ज्ञान प्राप्त लोगों में  ही सही रूप में समझने की शक्ति रहेगी।



शासक-7

एक शासक के चिंतन  केलिए।


जी में प्रकाश  होने पर बोली में मिठास होगी। उसके बाद  कर्म में दृढ़ता होगी। सब को बल देते हैं कि  सोचकर काम करो।वल्लुवर ने मार्ग दिखाया हैं कि  सोचकर  काम में साहस  दिखाओ.


पोक्कियार  नामक कवि  ने  लिखा है :-

अरसियल ऐऐंदु  अमैच्चियल ईरैन्तु 

उरुवल्लरनइरंडु   ओंरू ओण   कूल-उरुवियल 
तिण प् डै   नत्पुपथिनेलु कुड़ी पतिं  मूंरू 

एन्पोरुल एलाम  इवै .

उपर्युक्त  तमिल  कविता  का भावार्थ  :-

अर्थ -भाग में राजनीती के लिए पच्चीस अधिकार,मंत्रित्व  के लिए दस अधिकारं दूर सुरक्षा के लिए दो अधिकारं,अर्थ-शास्त्र के लिए एक अधिकार,सैनिक -शास्त्र के लिए दो अधिकारं,मित्रता  के लिए सत्रह अधिकारं 
आदि  कुल मिलाकर  सत्तर अधिकारं  तिरुक्कुरल में हैं।
पोक्कियार  के आधार पर पहले  विचार करने का अधिकार  है  राजनीति का ज्ञान.
इस अधिकार  में प्रवेश होने के पहले ,साक्रतिस  का एक विचार ,जो अरिस्तातिल अपनी राजनीति में नामक ग्रन्थ के दूसरे भाग में  लिखा  है, उसे उल्लेख करना उपयुक्त  होगा।

ताने -बाने  के ऊन के सूत  अलग-अलग ऊन  के सूत से बनाए जाते हैं।फिर एक हो जाते हैं।वैसे ही शासक और शासितों का सम्बन्ध होना चाहिए।तभी शासक और शासित  मानसिक संतोष से जी सकते हैं।
उसके लिए बड़े होशियार,अभ्यस्त  और ज्ञानी  की आवश्यकता है।ऐसे व्यक्ति को प्रदान करने के लिए 
तिरुवल्लुवर महोदय  ज्ञान  अधिकारम  के साथ तैयार खड़े हैं।
सरकार  राजनीती के अंतिम सर्वोच्च  अधिकारं है।इसे समझने के लिए ज्ञान की जरूरत है।
तिरुक्कुरल :- 
अरिवु अटरम  काक्कुम  करुवी सेरुवार्क्कुम 
उल्लालिक्कल आका अरण।
ज्ञान  एक ऐसा  अधिकार है,वह शासक को मात्र नहीं बचाता;वह दुश्मन से भी बचानेवाला एक सुरक्षित दुर्ग है।
ज्ञान क्या है?
जानना (PERCEPTION,KNOWING,UNDERSTANDING)
जाना हुआ  समाचार (KNOWLEDGE)
ज्ञान  की सूक्ष्मता (WISDOM)
बुद्धि (INTELLIGENCE)
इन चारों का एकत्रित रूप ही ज्ञान हैं।हमें यह सोचना चाहिए कि ज्ञान को वल्लुवर महोदय ने अत्यंत आवश्यक मानकर ही  उस अधिकारं को इतना महत्त्व दिया है।इस अधिकार के दस कुरलों में ज्ञान के अर्थ के शब्द का प्रयोग किया है।
A PERSON 'S ABILITY TO THINK ,REASON,AND UNDERSTAND PROTECTS HIM LIKE THE FORTRESS  TO A GARRISON FROM SURPRISES. --S.RATNAKUMAAR.

G.U.POPE:--WISDOM  IS A WEAPON TO WARD OFF DISTRUCTION;IT IS AN INNER FORTRESS WHICH ENEMIES CANNOT DESTROY.
इससे ज्ञान की शक्ति   समझ में आती है।



शासक-6

शासक  जो भी हो,सब के लिए लाभप्रद  बातें  अर्थ  अधिकार देते हैं।फिर भी अठारह अधिकारम  100% एक शासक  या प्रशासक के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।उनमें अठारह अधिकारं में नौ  अधिकारं शासकों को सोचने-समझने के लिए हैं ,और  नौ अधिकारं  कार्यान्वित करने केलिए  हैं।
सोचने-समझने  के अधिकार  हैं---ज्ञान,मंत्रीत्व,व्यक्तित्व,शासन,स्थान-पहचान,जासूसी,नीचता,समय-पहचान,उत्कृष्टता   आदि ।

कार्यान्वित करने के अधिकारं  हैं---दुर्ग-सुरक्षा,जान-समझकर कार्य करने का मार्ग,जानकर -स्पष्ट  होना,जानकर  कर्म करना,सेना-संचालन,बड़ों की सलाह और सहायक  लेना,अर्थों के कार्यान्वयन का मार्ग,बल-जानना,कर्म करने के तरीके  आदि।


शासक-6

शासक  जो भी हो,सब के लिए लाभप्रद  बातें  अर्थ  अधिकार देते हैं।फिर भी अठारह अधिकारम  100% एक शासक  या प्रशासक के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।उनमें अठारह अधिकारं में नौ  अधिकारं शासकों को सोचने-समझने के लिए हैं ,और  नौ अधिकारं  कार्यान्वित करने केलिए  हैं।
सोचने-समझने  के अधिकार  हैं---ज्ञान,मंत्रीत्व,व्यक्तित्व,शासन,स्थान-पहचान,जासूसी,नीचता,समय-पहचान,उत्कृष्टता   आदि ।

कार्यान्वित करने के अधिकारं  हैं---दुर्ग-सुरक्षा,जान-समझकर कार्य करने का मार्ग,जानकर -स्पष्ट  होना,जानकर  कर्म करना,सेना-संचालन,बड़ों की सलाह और सहायक  लेना,अर्थों के कार्यान्वयन का मार्ग,बल-जानना,कर्म करने के तरीके  आदि।