Sunday, February 28, 2016

अर्थ भाग --राजनीती --स्थान पहचान --४९१-से -५०० --तिरुक्कुरल

अर्थ भाग --राजनीती --स्थान पहचान --४९१-से -५०० --तिरुक्कुरल 

१.  शत्रुओं का सामना उचित मैदान  चुनकर करना है;शत्रुओं को   दुर्बल  समझकर कभी उदासीन  दृष्टी से देखना  न चाहिए. 
२.  दुश्मनों से अधिक ताकतवर होने पर भी सुरक्षित स्थान में रहना ही  ठीक  है  और बुद्धिमानी भी. 
३.  दुर्बल भी तभी बलवान बनेंगे  जब  वे सुरक्षित स्थान में रहकर शत्रु का सामना  करते हैं।  
४. उचित रण-क्षेत्र  चुनकर शत्रु का सामना करें तो विजय निश्चित है.
5. जब तक पानी में रहेगा तब तक मगर मच्छ को बल  है;पानी छोड़कर बाहर आने पर  दुर्बल पशु भी उसे हरा देगा. 
६.  बड़े जहाज  जमीन   पर नहीं चलेगा .सदृढ़ चक्र के  रथ समुद्र पर चल नहीं  सकता .हर एक को अपने अपने स्थान में ही बल है.
७.एक कर्म करने के लिए निडर रहना आवश्यक  है. 
८. छोटी  सेना भी  अपने उचित स्थान में  रहेगी तो जीतेगी ही. 
९. सुरक्षित दुर्ग के  बिना ,सबल सेना के बिना  शत्रु के यहाँ जाकर आक्रमण करना  नामुमकिन है. 


Saturday, February 27, 2016

समय का पहचान --४८१ से ४९० --तिरुक्कुरल

समय का  पहचान  --४८१  से ४९० --तिरुक्कुरल 

१, 
कौआ  अपने  से बलवान  उल्लू  को  दिन में हरा देगा।  
इसलिए दुश्मनों को  हराने  समय  का पहचान  जरूरी  है। 
२ 
काल या ऋतू  जानकर उसके   अनुसार  चलना ,
 सफलता  को रस्सी  में बाँधकर  अपने  साथ ले  चलने  के समान  है।  
३.
उचित औजारों को  पास रखकर काम करने पर  असंभव  काम कोई नहीं है.
४.
उचित  समय  और  काल  पहचानकर  काम  करें तो  संसार हमारे मुट्टी में  आ जाएगा। 
५. 
संसार को  जो अपने वश में   करना चाहते हैं ,
वे उचित अवसर और काल  की प्रतीक्षा में  रहेंगे। उचित समय  तक सब्रता दिखाएँगे।
६.
साहसी और हिम्मती   दबकर रहने  का मतलब है,
वह उचित समय  की प्रतीक्षा में  है। 
वह  ऐसा  हैकि  भेड जैसे  अपने शत्रु  पर  आक्रमण  करने  पीछे जाता  है। 
७.
बुद्धिमान  और चतुर  अपने क्रोध को  बाहर  नहीं  दिखाएँगे। 
 वे तब तक सब्रता से रहेंगे ,जब  तक उचित समय नहीं आता। 
८. 
शत्रु  को देखकर सहनशील  बनना  है; उचित समय आने पर शत्रु का सर लुढ़केगा। 
९. 
जब दुर्लभ  समय  मिलता  है ,उस समय को  न  खोकर ,
  असंभव काम को कर देना चाहिए। 
१०. 
१०. उचित  समय  आने तक हमें बगुला भगत बन जाना चाहिए. 





४७१ से ४८० तक ---अर्थ भाग --बल /ताकत पहचानना --तिरुक्कुरल

४७१  से ४८०  तक ---अर्थ भाग --बल /ताकत पहचानना --तिरुक्कुरल 

१.   किसी  कार्य  को  करने  के  पहले   ,कार्य के बल ,
      अपने  बल,  दोनों पक्षों के सहायकों  के बल आदि 
      जानकर  ही कार्य में  लगना   चाहिए.
२.किसी कार्य  को  करने  के  पहले
खूब सोच -समझकर  कार्य  करने के प्रयत्न में लगेंगे तो 
 कोई भी काम असंभव  नहीं  है.

३. अपने बल और अपनी क्षमता न जानकर 
कार्य में लगे लोगों  को 
 नुकसान  ही  उठाना पड़ेगा.

४.  दूसरों  की इज्जत  न करनेवाले  और अपने बल और क्षमता  न जाननेवाले  ,अपने को  बड़ा  मानकर  बोलनेवाले  जल्दी  बिगड़  जायेंगे.
५. मोर के पंख  ढोने  की गाडी में  भी  
अधिक  पंख रखेंगे तो वह गाडी का अक्ष टूट जाएगा. 
असीम बोझ ढोना भी बरबाद के कारण बनेंगे .
६. एक पेड़  की डाली पर चढ़नेवाले ,नोक तक पहुंचेंगे तो दाल टूटकर नीचे गिर  पड़ेंगे.
७.आय के अनुसार हिसाब लगाकर खर्च करने में ही भला होगा. न तो बहुत मुश्किल होगा. 
८. आय कम होने पर खर्च उसके अनुकूल करेंगे तो ठीक है; आय से अधिक खर्च  दुःख के कारण बनेंगे.
९.अपनी संपत्ति  के  परिमाण  न  जानकर  जीनेवालों का  जीवन संकट में पड  जाएगा.
   १०.  अपनी संपत्ति से ज्यादा परोपकार करना भी संकटप्रद है.

461 से ४७० तक --तिरुक्कुरल -अर्थ भाग --समझकर जानबूझकर कर्म में लगना .

461 से ४७० तक --तिरुक्कुरल -अर्थ भाग --समझकर जानबूझकर  कर्म में लगना .


१. एक  काम करने के पहले 
सोच-समझकर
  उससे होने वाले लाभ -नष्ट  को हिसाब  करके ही
 उसे  कार्यान्वित  करना है.
२.
छान-बीन  करके  ,सोच-समझकर 
सही काम चुनकर
 योग्य लोगों की सहायता से करने पर 
लाभ ही होगा.
३. 
चतुर लोग  अपनी पूँजी तभी लगायेंगे ,
जिससे लाभ हो.
 नुकसान के व्यापार पर  पूँजी   न लगायेंगे. 
४. 
जो मान -अपमान से  डरते हैं ,
कलंकित होने के बदनाम से भयभीत होते हैं ,
वे कलंक लगने का  काम  न  करेंगे.
५.  पूर्व तैयारियों के बिना काम करना ,
शत्रुओं को लाभ पहुँचाने के सिवा और कुछ नहीं है.
६. जो काम करने योग्य हैं ,
उसे न करनेवाले ,
जो काम करना अयोग्य है , उसे करनेवाले 
 दोनों ही   नाश हो जायेंगे.
७. सोच -समझकर  ही कार्य में  लगना है, 
कार्य में लगने के बाद सोचना न्यून  है. 
८.  अनजान कार्य में लगने के बाद ,
कईयों की मदद मिलने पर भी 
 उसमें सफलता  पाना   असंभव  है. 
९.  किसी के स्वाभाव जानकार ही मदद करनी चाहिए ,
 नहीं तो उपकार के बदले अपकार  ही होगा. 
१०.अपनी स्तिथि और योग्यता  के अनुकूल काम न करेंगे  तो 
संसार के  दिल्लगी   का पात्र बन जायेंगे. 





Friday, February 26, 2016

सुनना -- अर्थ -तिरुक्कुरल --४१० से ४२० तक

सुनना -- अर्थ -तिरुक्कुरल --४१० से ४२० तक 

१. 
संपत्तियों  में बड़ी संपत्ति  सुनना है ; (बड़ों की नसीहतें और दूसरों की बातें)   वही  प्रधान संपत्ति  है। 

२.
जब अच्छी  बातों  का भोजन  सुनने  को नहीं  मिलता  ,
तभी पेट को जरा भोजन देना है। 

३.संसार  के  श्रवण ज्ञान के  ज्ञानी ,देवों के सामान होंगे। 

४. ग्रंथों को  न  पढनेवाले ,पढ़े -लिखों से सुनकर प्राप्त करना चाहिए.
वह श्रुत ज्ञान उसको शिथिलावस्था में छडी के सामान सहारा देगा. 

५. फिसलन भूमि में चलने को जैसे छडी सहायक है ,वैसे ही अनुशासित ज्ञानियों की बातें श्रवण करने से जीवन में सहारा देगा. 

६. जितनी ज्ञान की बातें सुनते हैं ,उतना लाभ हमें मिलेगा।

७. सूक्ष्म श्रवण ज्ञानी  ,बुरी बातें सुनने पर भी ,गलत नहीं बोलेंगे।

८. अच्छे सुननेवाले कान होने पर भी 
अच्छी बातें सुनने तैयार नहीं है तो वे  बहरे ही है.

९. स्पष्ट  श्रवण ज्ञान जिसमें नहीं है ,वे कभी विनम्र न होंगे.

१०. जो भोजन को ही प्रधान  मानकर ,श्रवण ज्ञान का भोजन नहीं करते ,
उनका जीना -मरना दोनों बराबर है.


४५१ से ४६० तक तिरुक्कुरल ---निम्न लोगों से दूर रहना,

४५१ से ४६० तक तिरुक्कुरल ---निम्न लोगों से दूर  रहना,
१.  बड़े लोग निम्न गुणियों से दूर  रहेंगे. लेकिन छोटे लोग निम्न गुणियों के संग में ही रहेंगे.
२. जल का गुण   जहाँ हैं ,वहाँ की भूमि के अनुकूल ही रहेगा. वैसे ही लोगों के गुण  अपने कुल के अनुसार होगा. 
३. लोगों  को सहज ज्ञान मन से होगा; पर यश तो उसके कुल के कारण ही मिलेगा  और इज्जत भी. 
४. एक व्यक्ति का विशेष ज्ञान ऐसा लगेगा कि उसका अपना मानासिक ज्ञान  है; पर वास्तव में उसके कुल के कारण ही होगा.
५. मानसिक और कार्मिक पवित्रता एक व्यक्ति को अपने कुल के अनुसार ही होगी.
६. मन से जो अच्छे हैं ,उनके चले जाने के  बाद का यश ही श्रेष्ठ होगा.
कुल से जो अच्छे हैं ,उन के लिए कोई भी काम दुर्लभ नहीं है.
७. मन की पवित्रता उसको धन प्रदान  करेगा. कुल के गुण केवल धन ही नहीं ,और सभी तरह के नाम देगा. 
८. मन पवित्र होने पर  भी कुल के कारण ही नाम मिलेगा. 
९.एक आदमी को मन की पवित्रता के  कारण सुख  मिलेगा; पर अपने कुल के कारण बल पकड़ेगा. 
१०. अच्छे कुल से बढ़कर  लाभ प्रद और कोई  नहीं है.
बुरे कुल से बढ़कर हानी प्रद और कोई नहीं है.

ज्ञानियों से मित्रता --तिरुक्कुरल ४४१ से ४५० तक

ज्ञानियों  से मित्रता ४४१  से  ४५० 
१.  अपने से उम्र में बड़े ,
सूक्ष्म धार्मिक  ज्ञानियों  के मार्गदर्शन 
और मित्रता हासिल  करना  चाहिए .

२.जो दुःख हैं ,उन्हें  दूर करनेवाले  
और भविष्य में आने वाले दुःख से बचानेवाले 
 दूरदर्शी  को मित्र बना लेना चाहिए.
३.बड़ों की प्रशंसा  करके उनको मित्र बनाना मुक्ति  का  साधन  है.
४.हमसे  बढ़कर ज्ञानियों की मित्रता बलदायी  है.
५.उचित मार्गदर्शक ज्ञानियों को मित्र बनाने में ही कल्याण है. 
६.उचित बड़े ज्ञानियों के संग में रहने पर   
दुश्मन हानी नहीं पहुँचा  सकता. 
७.   जो निंदक  सज्जनों को अपने पास रखता  है , उसे   कोई उसे बिगाड़ नहीं सकता.
८.  जिस देश  में सरकार की  कमियों को  बतानेवाले नहीं होते ,वह शासन अपने  आप पतन हो जाएगा. 
९.  पूँजी रहित व्यापारी को कोई लाभ नहीं प्राप्त होगा ;वैसे  ही सज्जन के साथी रहित मित्र को  या शासकों को भी कोई प्रयोज़न नहीं  है.
१०. सज्जन मित्रों की मित्रता टूटना  दुश्मनी मोल लेना दोनों बराबर है.