Saturday, February 27, 2016

461 से ४७० तक --तिरुक्कुरल -अर्थ भाग --समझकर जानबूझकर कर्म में लगना .

461 से ४७० तक --तिरुक्कुरल -अर्थ भाग --समझकर जानबूझकर  कर्म में लगना .


१. एक  काम करने के पहले 
सोच-समझकर
  उससे होने वाले लाभ -नष्ट  को हिसाब  करके ही
 उसे  कार्यान्वित  करना है.
२.
छान-बीन  करके  ,सोच-समझकर 
सही काम चुनकर
 योग्य लोगों की सहायता से करने पर 
लाभ ही होगा.
३. 
चतुर लोग  अपनी पूँजी तभी लगायेंगे ,
जिससे लाभ हो.
 नुकसान के व्यापार पर  पूँजी   न लगायेंगे. 
४. 
जो मान -अपमान से  डरते हैं ,
कलंकित होने के बदनाम से भयभीत होते हैं ,
वे कलंक लगने का  काम  न  करेंगे.
५.  पूर्व तैयारियों के बिना काम करना ,
शत्रुओं को लाभ पहुँचाने के सिवा और कुछ नहीं है.
६. जो काम करने योग्य हैं ,
उसे न करनेवाले ,
जो काम करना अयोग्य है , उसे करनेवाले 
 दोनों ही   नाश हो जायेंगे.
७. सोच -समझकर  ही कार्य में  लगना है, 
कार्य में लगने के बाद सोचना न्यून  है. 
८.  अनजान कार्य में लगने के बाद ,
कईयों की मदद मिलने पर भी 
 उसमें सफलता  पाना   असंभव  है. 
९.  किसी के स्वाभाव जानकार ही मदद करनी चाहिए ,
 नहीं तो उपकार के बदले अपकार  ही होगा. 
१०.अपनी स्तिथि और योग्यता  के अनुकूल काम न करेंगे  तो 
संसार के  दिल्लगी   का पात्र बन जायेंगे. 





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