Thursday, February 4, 2016

क्रोध न करना -तिरुक्कुरल --३०१ से ३१०

क्रोध  न  करना   -तिरुक्कुरल --३०१ से ३१०


१.जहाँ अपने क्रोध सफल होगा ,वहाँ क्रोध दबाना ही क्रोध  न करना है; जहां अपना क्रोध असफल होगा  वहाँ   क्रोध न करने क्रोध न करने से क्या लाभ.

२. अपने से  बलवानों से क्रोध करने से बुराई होगी ; अपने से दुर्बलों से क्रोध करने पर भी बुराई ही होगी.

३. क्रोध  भूल जाने में ही भलाई है; न तो उस क्रोध से कई बुराइयाँ  होंगी.

४.क्रोधीके चेहरे में खुश दिखाई न  पडेगा. वैसे ही उसके मन में भी खुश न रहेगा.

५. जो अपने को बचाना चाहता है ,उसको अपने क्रोध को दबा लेना चाहिए. नहीं तो उसके क्रोध ही उसे नाश कर देगा.

६.क्रोधी  का क्रोध केवल उसीको ही
  नहीं ,उसके नाते -रिश्ते को भी नाश कर देगा.

७. जैसे धरती को हाथ से मारनेवाले  का  हाथ  दुखेगा ,वैसे ही क्रोधी के क्रोध ही उसको कष्ट देगा.

८.अग्नी जैसे जलानेवाले दुःख जो देता हैं , वह मिलने आयें तो उससे गुस्सा न दिखाना ही अच्छा  है.
९.  जो क्रोधी नहीं ,उसको फल ही फल मिलेगा..

१० , अति क्रोधी  मरे हुए आदमी के सामान है ; जिसमें क्रोध नहीं वह साधू संत -तपस्वी सामान है.

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