Monday, February 1, 2016

परोपकार २११ से २२० तक --तिरुक्कुरल

परोपकार   २११ से २२० तक --तिरुक्कुरल 

     १.    वर्षा  प्रत्युपकार  की चाह के बिना ही होती है;
वैसे   ही संसार में परोपकार करनेवाले होते हैं.

२. परोपकारी कठोर मेहनत  करके जो  कुछ जमा करता है ,वे सब दूसरों की मदद करने के लिए ही है. 
३.परोपकार जैसे सत्कार्य के सामान और कोई श्रेष्ठ कार्य इस लोक में भी नहीं और परलोक में भी नहीं.
४. परोपकार के लिए ही जीनेवाला ही ज़िंदा आदमी है; बाकी सब मरे हुए माने जायेंगे .
५. सार्वजनिक भलाई के लिए जीनेवाले की संपत्ति 
सार्वजनिक तालाब जैसा है.जिसमें पानी का स्त्रोत भरता रहता है.
६. दयालु और परोपकारी की संपत्ति शहर के बीच पले
फलों के वृक्ष सामान हैं ,जिसमें जो चाहे फल तोड़ सकते हैं.
७.दयालु और परोपकार की संपत्ति  एक ऐसे पेड़ के सामान हैं ,जिसके सारे अंग दूसरों के लिए ही काम आयेगा,
८. जो परोपकार को ही श्रेष्ठ मानते हैं ,वे अपनी दीनावस्था में भी परोपकार कर्म पर दृढ़ रहेंगे ; ज़रा भी विचलित नहीं  होंगे. 
९.जो परोपकार करता हैं ,वह तभी पछतायेगा ,जब वह दूसरों  को दे नहीं सकता .
१० .परोपकार से बुराई होगी तो वह उसे अपने को बेचकर भी प्राप्त कर सकता है.

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