Monday, February 8, 2016

वेदना न देना /दुःख न पहुँचाना -----तिरुक्कुरल --३१० से ३२० तक

वेदना न देना /दुःख न पहुँचाना -----तिरुक्कुरल --
३१० से ३२० तक 
१. सज्जनों का सिद्धांत है ,दूसरों को हानि /दुःख /पीड़ा न पहुँचाना .

  दुःख  पहुँचाने  पर धन, दौलत ,यश आदि मिलेगा  तो भी न दुःख देंगे  बड़े लोग.
यद्यपि यश मिलें या धन , फिर भी बुराई न  करेंगे बड़े लोग.
௨.
मन में बदला लेने की भावना से बुराई करनेवालों को भी निर्दोषी  सज्जन

उनको हानियाँ  न  पहुँचाएँगे. 
३.
 हम दूसरे को बुराई न  करने  पर  भी  ,

 वह क्रोध के आवेग में हमें दुःख देता है , तो  

हम भी बदले में हानी करेंगे तो 

हमें बहुत  ऐसी बुराइयाँ होंगी,जिन से बचना मुश्किल है.
४.
जो हमें बुराई करता है ,दुःख देता है ,
उसको ऐसी भलाई करनी  है ,
 जिससे उसको शर्मिंदा होना पड़ें. 
५.
दूसरों के दुःख को अपना समझकर ,
उनके दुःख दूर करने की सहायता  न करनेवाले , 
 भले ही ज्ञानी हो , उसको अपने  उस  ज्ञान से भी प्रयोजन नहीं है..
६.
जो अपने को हानिप्रद और दुःख प्रद है, 
उसे दूसरों को न करनेवाले   ही श्रेष्ठ है. 
७.
तनिक भी हानी दूसरों को न पहुँचाना  या 
करने को न सोचना ही बड़प्पन है.
८.
अपने को जिससे दुःख या हानी होती हैं ,उन्हें क्यों दूसरों को देते हैं ;
 यह अवगुण कैसे आते हैं ,पता नहीं.
९. 
हम किसी को सबेरे हानी करेंगे तो शाम को हमें हानियाँ होंगीं .
१०.
मनुष्यों के सारे दुःख के कारण अन्यों को दुःख देना ही है; 
अतः अन्यों को दुःख  न देने में  ही भला है;


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