वेदना न देना /दुःख न पहुँचाना -----तिरुक्कुरल --
३१० से ३२० तक
१. सज्जनों का सिद्धांत है ,दूसरों को हानि /दुःख /पीड़ा न पहुँचाना .
दुःख पहुँचाने पर धन, दौलत ,यश आदि मिलेगा तो भी न दुःख देंगे बड़े लोग.
दुःख पहुँचाने पर धन, दौलत ,यश आदि मिलेगा तो भी न दुःख देंगे बड़े लोग.
यद्यपि यश मिलें या धन , फिर भी बुराई न करेंगे बड़े लोग.
௨.
मन में बदला लेने की भावना से बुराई करनेवालों को भी निर्दोषी सज्जन
उनको हानियाँ न पहुँचाएँगे.
३.
हम दूसरे को बुराई न करने पर भी ,
वह क्रोध के आवेग में हमें दुःख देता है , तो
हम भी बदले में हानी करेंगे तो
हमें बहुत ऐसी बुराइयाँ होंगी,जिन से बचना मुश्किल है.
वह क्रोध के आवेग में हमें दुःख देता है , तो
हम भी बदले में हानी करेंगे तो
हमें बहुत ऐसी बुराइयाँ होंगी,जिन से बचना मुश्किल है.
४.
जो हमें बुराई करता है ,दुःख देता है ,
उसको ऐसी भलाई करनी है ,
जिससे उसको शर्मिंदा होना पड़ें.
उसको ऐसी भलाई करनी है ,
जिससे उसको शर्मिंदा होना पड़ें.
५.
दूसरों के दुःख को अपना समझकर ,
उनके दुःख दूर करने की सहायता न करनेवाले ,
भले ही ज्ञानी हो , उसको अपने उस ज्ञान से भी प्रयोजन नहीं है..
६.
जो अपने को हानिप्रद और दुःख प्रद है,
उसे दूसरों को न करनेवाले ही श्रेष्ठ है.
उसे दूसरों को न करनेवाले ही श्रेष्ठ है.
७.
तनिक भी हानी दूसरों को न पहुँचाना या
करने को न सोचना ही बड़प्पन है.
करने को न सोचना ही बड़प्पन है.
८.
अपने को जिससे दुःख या हानी होती हैं ,उन्हें क्यों दूसरों को देते हैं ;
यह अवगुण कैसे आते हैं ,पता नहीं.
यह अवगुण कैसे आते हैं ,पता नहीं.
९.
हम किसी को सबेरे हानी करेंगे तो शाम को हमें हानियाँ होंगीं .
१०.
मनुष्यों के सारे दुःख के कारण अन्यों को दुःख देना ही है;
अतः अन्यों को दुःख न देने में ही भला है;
अतः अन्यों को दुःख न देने में ही भला है;
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