भाग्य /विधि /किस्मत . तिरुक्कुरल --३६१ से ३७० तक
१. भाग्य या विधि के अनुसार धन जुड़ने पर उत्साह बढेगा . विधि गरीबी लायेगी तो आलसी बढ़ेगी.
उत्साह या आलसी विधि के कारण ही बढ़ता है.
२. विधि या भाग्य के कारण घाटा होगा तो अज्ञानता बढेगी . बेवकूफी घर कर लेगी. संपत्ति भाग्य के अनुसार बढ़ेगी तो ज्ञान का भी विकास होगा.
३. सूक्ष्म ज्ञान के ग्रंथों के अध्ययनसे बढ़कर लाभ देगा सहज ज्ञान जिसका आधार भाग्य ही है.
४.संसार में भाग्य दो प्रकार के हैं. भाग्य किसी को अमीर बनाता है तो किसी को दरिद्र . यही विधि की विडम्बना है.
५. भाग्य बड़ी है; कल्याण कार्य करने काम शुरू करेंगे तो बुराई होगी; बुराई करने काम शुरू करेंगे तो भलाई होगी . यही भाग्य का खेल है.
६. जिसे हम अधिक चाहते है और सुरक्षित रखते हैं ,उसे भाग्य रहने नहीं देगा, जिसे हम नहीं चाहते उसे भाग्य जाने नहीं देगा.
७. करोड़ों रूपये मेहनत करके कमाने पर भी भाग्य हो तो उसे भोग सकते है. कमानेवाले के इच्छानुसार भोगना अपने अपने भाग्य पर निर्भर है.
८.कष्ट भोगने की विधि लिखित आदमी को कष्टमय जीवन से मुक्ति नहीं मिलेगी ; विधि उसको संन्यास बन्ने नहीं देगी.
९.जीवन में सुख -दुःख बदल बदल कर आयेंगे. सुख में प्रसन्नता और दुःख में अप्रसन्नता क्यों ?पता नहीं.
१०.भाग्य से बढ़कर बलवान संसार में कोई नहीं है. भाग्य से बचने के उपाय करने जायेंगे तो आगे विधि रोकने आयेगी.
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