Monday, February 8, 2016

वध या ह्त्या न करना तिरुक्कुरल ३२१ से ३३०

 वध  या  ह्त्या  न  करना  तिरुक्कुरल  ३२१ से ३३० 

१.  वध या हत्या न  करना ही धर्म है; 
 हत्या करने  से  सभी अधर्म कर्म का बुरा परिणाम मिलेगा ही .


२.

जो कुछ मिलता है ,उन सब को  समानता  से बाँटकर खाने  से कल्याण  होगा;
  सभी जीव राशियों के जीने  के निरपेक्ष सिद्धांत के सामान 
और कोई दूसरा धर्म कर्म  संसार  में  नहीं है.

३.
धर्मों  के कतार में पहला स्थान  हत्या न करने को मिलता  है ;
 दूसरा  स्थान झूठ बोलनेवाले को मिलता है.

४.
किसी जीव की हत्या न   करना ही धर्म मार्ग है.कल्याण  मार्ग है.
५.
सांसारिक  कष्टों को जानकार 
संन्यास धर्म को अपनाने वाले  से वही श्रेष्ठ है ,
जो जीव वध  न करने को अपना लक्ष्य बनाकर  जी ता है . 
६.
जीव हत्या न  करने केधार्मको  जिसने अपनाया ,उसके प्राण लेने यम भी डरेगा .
७.
  हत्या  करने  से  बहुत बड़े लाभ मिलने की संभावना  भले ही हो ,फिर भी बड़े लोग हत्या न करेंगे.
८.
जीव हत्या  से अत्यधिक संपत्ति प्राप्ति की संभावना होने पर भी  बड़े लोग हत्या को अपना पेशा न बनायेंगे.

९.
जो हत्या करने को ही अपना पेशा बना लेते हैं , उसकी बुराई को जानने वाले चतुर उस को हीन ही मानेंगे.

१० 
  बड़े लोग दीर्घ रोगी और दीर्घ दरिद्री को    पूर्व जन्म का  हत्यारा ही कहेंगे,.




1 comment: