Thursday, February 11, 2016

धर्म --राजनीती --राज्य और राजा की विशेषता ---तिरुक्कुरल ३८१ से ३९०

 धर्म --राजनीती --राज्य  और राजा की विशेषता ---तिरुक्कुरल ३८१ से ३९० 

१. राज्यों में श्रेष्ठ सिंह जैसे  राज्य  के छे अंग हैं  , शक्ति शाली सेना ,होशियार होनहार प्रजा ,धन का न घटना ,अटूट मित्रता ,मजबूत किला ,निर्दोष मंत्री  आदि. 
२. साहस , दया( दानी ) ,चतुराई ,ऊंचे लक्ष्य पर पहुँचने के सिद्धांत  आदि चार ही आदर्श राजा के स्वभाव है.
३.राजा के आवश्यक शाश्वत  तीन गुण हैं --समय का पालन ,ज्ञान और साहस .
४. श्रेष्ठ राजा के लक्षण हैं :-१. धर्म मार्ग पर अटल चलना २. अधर्म को मिटाना ,निष्कलंक ,३.वीरता ४. मर्यादा  आदि .
५.
संसार उसी राजा 
को ही चाहेगा, प्रशंसा करेगा ,
 जो देखने में सीधा साधा हो 
और मधुरवाणी बोलता हो ,
कठोर शब्द न बोलता हो.
६.
न्यायोचित मार्ग पर कर वसूल करके  खजाना 
भरना   और धन को सुरक्षित रखकर सही   योज़ना  बनाकर  खर्च  करना    ही   सुशासन  के लक्षण  है.
७.

मधुर बोली बोलकर  उचित ज़रूरतमंदों को दान देनेवाले उदार राजा  ही संसार के लोगों  की प्रशंसा के पात्र बनेंगे. 
८. 
न्याय और नैतिक में तटस्थ राजा  को  ही लोग ईश्वर तुल्य  सम्मान देंगे .
९.
निंदकों की बातें सहने वाले  गुणी शासक के अधीन/ उनके छत्र -छाया   में  ही संसार ठहरेगा.
१०.
दानी ,दयालु ,न्याय पर अटल ,दुखीलोगों  के रक्षक  आदि गुणवाले शासक  आकाश दीप के समान होते हैं. 


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