Monday, February 1, 2016

दान --तिरुक्कुरल --२२० से २३०

दान --तिरुक्कुरल --२२० से २३०  

 १. दान --तिरुक्कुरल --२२० से २३० दीन- दुखियों को      देना ही दान  है ; बाकी सब दान किसी फल की प्रतीक्षा में दिया हुआ दान सम है.
२.   भलाई  के लिए दूसरों के आग्रह से 
दूसरों से कुछ लेने में बड़प्पन नहीं हैं ;छुटपन ही है. 
३. अपनी गरीबी का दुखड़ा न रोकर  दान  देना कुलीन कर्म है.
४. दाता को तभी सुख होगा , तब तक उससे दान देनेवाले के चेहरे से उदासी दूर होगी और प्रसन्नता दीख पड़ेगी. 
५. अनशन रखकर तप करने के फल -पुण्य से ,दूसरों की भूख  मिटाने से अधिक फल और पुण्य मिलेगा. 
६. अपने यहाँ आये भूखे का पेट भरना  ही अमीरी का भविष्य निधि है.
७. अपने पास जो कुछ है ,उसे बांटकर खानेवाले को कभी भूख का महसूस करेंगे.
८. अपनी संपत्ति को दान पुण्य न करके sampatti  खोनेवाले दान कर्म के आनंद और महत्त्व को न जानते.
९. दान देने से जो अपनी संपत्ति के घटने की बात सोचेगा ,अपनी ढेर संपत्ति को खुद भोगना चाहेगा ,वह भीख मांगने से निम्न कार्य है.
१०.मृत्यु के  दुःख से अधिक दुःख प्रद है दूसरों को दान  न देने की दयनीय दशा . 

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