Saturday, February 27, 2016

४७१ से ४८० तक ---अर्थ भाग --बल /ताकत पहचानना --तिरुक्कुरल

४७१  से ४८०  तक ---अर्थ भाग --बल /ताकत पहचानना --तिरुक्कुरल 

१.   किसी  कार्य  को  करने  के  पहले   ,कार्य के बल ,
      अपने  बल,  दोनों पक्षों के सहायकों  के बल आदि 
      जानकर  ही कार्य में  लगना   चाहिए.
२.किसी कार्य  को  करने  के  पहले
खूब सोच -समझकर  कार्य  करने के प्रयत्न में लगेंगे तो 
 कोई भी काम असंभव  नहीं  है.

३. अपने बल और अपनी क्षमता न जानकर 
कार्य में लगे लोगों  को 
 नुकसान  ही  उठाना पड़ेगा.

४.  दूसरों  की इज्जत  न करनेवाले  और अपने बल और क्षमता  न जाननेवाले  ,अपने को  बड़ा  मानकर  बोलनेवाले  जल्दी  बिगड़  जायेंगे.
५. मोर के पंख  ढोने  की गाडी में  भी  
अधिक  पंख रखेंगे तो वह गाडी का अक्ष टूट जाएगा. 
असीम बोझ ढोना भी बरबाद के कारण बनेंगे .
६. एक पेड़  की डाली पर चढ़नेवाले ,नोक तक पहुंचेंगे तो दाल टूटकर नीचे गिर  पड़ेंगे.
७.आय के अनुसार हिसाब लगाकर खर्च करने में ही भला होगा. न तो बहुत मुश्किल होगा. 
८. आय कम होने पर खर्च उसके अनुकूल करेंगे तो ठीक है; आय से अधिक खर्च  दुःख के कारण बनेंगे.
९.अपनी संपत्ति  के  परिमाण  न  जानकर  जीनेवालों का  जीवन संकट में पड  जाएगा.
   १०.  अपनी संपत्ति से ज्यादा परोपकार करना भी संकटप्रद है.

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