कृपा कटाक्ष ---तिरुक्कुरल --२४१ से २५० तक.
१. क्रूर अत्याचारियों के यहाँ भी धन -दौलत भरा रहेगा.
पर वह कृपा कटाक्ष की संपत्ति के बराबर नहीं हो सकता.
पर वह कृपा कटाक्ष की संपत्ति के बराबर नहीं हो सकता.
२. कई प्राकार के अनुसंधान के बाद यही निष्कर्ष निकला कि जीवन का साथी कृपा कटाक्ष ही है.
३. कृपा प्राप्त लोग दुःख के अँधेरे में घेरकर न रहेंगे.
४. दूसरों को और अन्य जीवराशियों पर दया दिखानेवाले और रक्षा करनेवाले सज्जन अपने प्राण को अति तुच्छ मानेंगे.
५. कृपा कटाक्ष प्राप्तकर जीनेवाले को कभी किसी हालत में दुःख नहीं होगा. इस उक्ति का प्रमाण वायु है.वायु के चलने से ही संसार अति बलवान है.
६. जो कृपा प्राप्त करके जीते हैं वे निर्धनी होंगे और कर्तव्य विमुख होंगे.
७. अर्थविहीन गृहस्थ जीवन इस संसार में दुखी रहेगा. उसी प्रकार करूण बिन उस लोक में दुखी रहेंगे;
अर्थात इस संसार में अर्थ ही प्रधान है और उस संसार में अर्थात देव लोक में कृपा ही प्रधान है.
८ . धन खोकर पुनः प्राप्त कर सकते हैं;पर कृपा खोकर प्राप्त करना असंभव है.
९. ईश्वर की कृपा अप्राप्त व्यक्ति का धर्म- कार्य ,
अज्ञानी के ग्रन्थ पढने के सामान ही होगा.
अज्ञानी ग्रन्थ समझ नहीं पायेगा;
कृपा अप्राप्त धर्म कर्म सही मूलसे कर न पायेगा.
अज्ञानी के ग्रन्थ पढने के सामान ही होगा.
अज्ञानी ग्रन्थ समझ नहीं पायेगा;
कृपा अप्राप्त धर्म कर्म सही मूलसे कर न पायेगा.
१० .कृपा अप्राप्त बलवान दुर्बलों को सताते वक्त
यह सोचना चाहिए कि उससे बलवान इस संसार में है. उसके सामने भयभीत रहना पड़ेगा .
यह सोचना चाहिए कि उससे बलवान इस संसार में है. उसके सामने भयभीत रहना पड़ेगा .
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