Wednesday, February 10, 2016

तिरुक्कुरल --अर्थ -- अशिक्षा /अनपढ़ --अविद्या .४०१ से ४१० तक =

तिरुक्कुरल  --अर्थ  --   अशिक्षा /अनपढ़ --अविद्या .४०१ से ४१० तक.

१.  अधूरे ज्ञान  लेकर  शिक्षितों की  सभा में बोलना  बिना  बिछौने के जुआ खेलने के समान है .

२. विद्वानों  की सभा  में अशिक्षित  कुछ कहना चाहता है तो वह  बगैर कुछ  की लडकी स्त्रीत्व चाहने के जैसे है.

३.शिक्षितों   की सभा  में  चुप रहने   पर  बुद्धू को भी  अच्छा  नाम मिल जाता  है.

४. अशिक्षितों को सहज ज्ञान मिलने पर भी लोग  उसके ज्ञान  नहीं  मानेंगे.

५. अशिक्षित  का शिक्षित छद्मवेश   शिक्षितों  के साथ बोलने पर खुल  जाएगा.

६. अशिक्षित बंजर भूमि के समान  है; वे चलते फिरते शव  समान  है.

७. देखने में सुन्दर ,पर अशिक्षित लोग  मिट्टी की सुन्दर मूर्ति के समान ही होंगे.

८.अशिक्षितों  के पास  जो धन   है ,वह शिक्षित  की गरीबी से  बढ़कर दुखप्रद है.

९. शिक्षित होने पर उंच -नीच के भेद मिट जायेंगे.

१०.पशु और मनुष्य में कितना अंतर है ,उतना ही अंतर शिक्षित और अशिक्षितों के बीच  में  है.

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