Friday, February 26, 2016

सुनना -- अर्थ -तिरुक्कुरल --४१० से ४२० तक

सुनना -- अर्थ -तिरुक्कुरल --४१० से ४२० तक 

१. 
संपत्तियों  में बड़ी संपत्ति  सुनना है ; (बड़ों की नसीहतें और दूसरों की बातें)   वही  प्रधान संपत्ति  है। 

२.
जब अच्छी  बातों  का भोजन  सुनने  को नहीं  मिलता  ,
तभी पेट को जरा भोजन देना है। 

३.संसार  के  श्रवण ज्ञान के  ज्ञानी ,देवों के सामान होंगे। 

४. ग्रंथों को  न  पढनेवाले ,पढ़े -लिखों से सुनकर प्राप्त करना चाहिए.
वह श्रुत ज्ञान उसको शिथिलावस्था में छडी के सामान सहारा देगा. 

५. फिसलन भूमि में चलने को जैसे छडी सहायक है ,वैसे ही अनुशासित ज्ञानियों की बातें श्रवण करने से जीवन में सहारा देगा. 

६. जितनी ज्ञान की बातें सुनते हैं ,उतना लाभ हमें मिलेगा।

७. सूक्ष्म श्रवण ज्ञानी  ,बुरी बातें सुनने पर भी ,गलत नहीं बोलेंगे।

८. अच्छे सुननेवाले कान होने पर भी 
अच्छी बातें सुनने तैयार नहीं है तो वे  बहरे ही है.

९. स्पष्ट  श्रवण ज्ञान जिसमें नहीं है ,वे कभी विनम्र न होंगे.

१०. जो भोजन को ही प्रधान  मानकर ,श्रवण ज्ञान का भोजन नहीं करते ,
उनका जीना -मरना दोनों बराबर है.


No comments:

Post a Comment