Monday, February 1, 2016

कीर्ति = यश =प्रसिद्धि --तिरुक्कुरल --२३१ से २४०

कीर्ति = यश =प्रसिद्धि --तिरुक्कुरल --२३१ से २४० 

१. दीन -दुखियों  को  दान देना और यश भरे जीवन जीना  
 इससे  बढ़कर   और दूसरी बड़ी  कोई संपत्ति नहीं  है.

२. दींन -दुखियों के दाताओं की प्रशंसा ही सब से ऊंची कीर्ति है.

३. इस संसार में कोई चीज  अतुलनीय  और शाश्वत है तो 
वह  कीर्ति या यश  ही है.

४. आनेवाले युग में भी नामियों की ही प्रशंसा होगी ,
न विद्वानों की न शिक्षितों की .

५. जीते जी कीर्ति और मृत्यु की दशा में भी कीर्ति  पाना 
 सब के वश में नहीं हैं .
ऐसी प्रसिद्धि उनको मिलेगी ,जिनको  सहज रूप में वह शक्ति मिली हो.

६. संसार में जन्म लेने पर यश प्राप्त करना चाहिए; 
अर्थात जो भी काम करने को मिलता है ,
उसे ऐसा करना है ,
जिससे नाम मिले. 
 ऐसा  न  हो तो जन्म न  लेना ही  उचित है. 

७. जो अपने यश के लिए उचित कर्म न कर सकते ,
वे अपने आप दुखी होना  पडेगा. 
 ऐसा न करके  वे क्यों अपनी निंदकों
 और  अपने अपामान करने वालों की निंदा  करते है .
यह तो सही नहीं  है. 

८. अपने कर्म से  यश  प्राप्त न करनेवालों पर,
उसके निदन के बाद  लोग निंदा  ही  करेंगे .

९. बिना नाम के अर्थात कीर्ति के शारीर को भूमि ढोता है तो 
 मतलब है भूमि ऊसर है.

१० . बिन अपयश के जीना ही जीवन है,
 बिन कीर्ति के जीना और न जीना दोनों बराबर ही है. 

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