Friday, February 12, 2016

निरपराध --अर्थ -तिरुक्कुरल --४३१ से ४४०

निरपराध --अर्थ -तिरुक्कुरल --४३१ से ४४० 
१. काम ,क्रोध और मद आदि  अपराध रहित मनुष्य  ही निर्दोषी है. वे ही श्रेष्ठ  है.
२. शासकों के अपराध है --दान  न देना ,दोषी मन , अपराध में आनंद  ,बड़ों का अपमान करना आदि  अपराधी शासकों  के अवलक्षण है.  
३. 
जो अपयश से डरते हैं ,वे ज़रा - सी गलती  भी नहीं  करेंगे. तिल बराबर की गलती भी उन्हें बहुत बड़े पर्वत -सा लगेगा.
४.
अपराध ही एक मनुष्य को सर्वनाश करेगा ; अतः अपराध से बचना चाहिए. 
५. अपराध करने  से जो पहले ही नहीं अपने को बचा नहीं सकते  उनका जीवन  आग  में बड़े भूसे के सामान भस्म हो जाएगा. 
६. पहले अपने दोष और अपराधों से बचनेवाले नेता को किसी  भी  प्रकार का दुःख  न  आएगा. 
७. सत्कार्य में खर्च न करके धन जमा करने वाले कंजूस की संपत्ति बेकार हो जायेंगी . वह खुद सुख नहीं भोग सकता.
८.कंजूसों का अपराध अपराधों की सूची से हटकर विशेष अपराध हो जाएगा. 
९. किसी भी स्थिति में अपने को बड़ा मानकर अहंकार वश  दूसरों के लिए हानिकारक काम नहीं करना चाहिए.
१०.अपनी इच्छाओं और अपनी योज़नाओं को जो गोपनीय रखता है,उसको दुश्मनों का षड्यंत्र कुछ नहीं  कर सकता.

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