Saturday, February 27, 2016

समय का पहचान --४८१ से ४९० --तिरुक्कुरल

समय का  पहचान  --४८१  से ४९० --तिरुक्कुरल 

१, 
कौआ  अपने  से बलवान  उल्लू  को  दिन में हरा देगा।  
इसलिए दुश्मनों को  हराने  समय  का पहचान  जरूरी  है। 
२ 
काल या ऋतू  जानकर उसके   अनुसार  चलना ,
 सफलता  को रस्सी  में बाँधकर  अपने  साथ ले  चलने  के समान  है।  
३.
उचित औजारों को  पास रखकर काम करने पर  असंभव  काम कोई नहीं है.
४.
उचित  समय  और  काल  पहचानकर  काम  करें तो  संसार हमारे मुट्टी में  आ जाएगा। 
५. 
संसार को  जो अपने वश में   करना चाहते हैं ,
वे उचित अवसर और काल  की प्रतीक्षा में  रहेंगे। उचित समय  तक सब्रता दिखाएँगे।
६.
साहसी और हिम्मती   दबकर रहने  का मतलब है,
वह उचित समय  की प्रतीक्षा में  है। 
वह  ऐसा  हैकि  भेड जैसे  अपने शत्रु  पर  आक्रमण  करने  पीछे जाता  है। 
७.
बुद्धिमान  और चतुर  अपने क्रोध को  बाहर  नहीं  दिखाएँगे। 
 वे तब तक सब्रता से रहेंगे ,जब  तक उचित समय नहीं आता। 
८. 
शत्रु  को देखकर सहनशील  बनना  है; उचित समय आने पर शत्रु का सर लुढ़केगा। 
९. 
जब दुर्लभ  समय  मिलता  है ,उस समय को  न  खोकर ,
  असंभव काम को कर देना चाहिए। 
१०. 
१०. उचित  समय  आने तक हमें बगुला भगत बन जाना चाहिए. 





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