Monday, February 8, 2016

संन्यास या अनासक्त जीवन ०३४१ से ३५०

संन्यास  या अनासक्त जीवन ०३४१ से  ३५०

१. मनुष्य  जिन  जिन  वस्तुओं से  अनासक्त हो जाता है ,उन  वस्तुओं  से आनेवाले दुःखों  से मुक्त हो जाता है.

२. बिन दुखों के जीना हैं तो अनासक्त जीवन जीना चाहिए.

३.  संयम से जीना ,पंचेंद्रियों की पसंद की चीजों से अनासक्त रहना ही संन्यास के लक्षण है,

४. सन्यासी बनना है तो मन में किसी भी चीज़ के प्रति इच्छा नहीं होनी चाहिए.किसी एक पर इच्छा रखना सांसारिक माया =मोह से फँसना है.

५. जन्म दुःख से जो छुटकारा पाना चाहता है, उसको उसका शरीर ही भर स्वरुप है ; अतः उस को बिलकुल अनासक्त हो जाना है.

६. अहंकार रहित मनुष्य देवों से बढ़कर नाम हासिल करेगा.

७.आसक्त व्यक्ति  जो इच्छा  नहीं छोड़ सकता  उसको कभी दुःख नहीं छोड़ेगा .

८. बिलकुल  जो अनासक्त बनता है ,वही सन्यासी है ; एक भी इच्छा रहें तो वह सांसारिक माया मोह से छूट नहीं सकता.

९. इच्छाओं को  छोड़ने पर सुख दुःख भी छूट जाता है; नहीं तो सुख -दुःख का बंधन घेरकर ही रहेगा.

१०.जो संन्यास बनना चाहता हैं ,उसको  अनासक्त साधुओं  से आसक्त रहना चाहिए. तभी वह सांसारिक बंधनों और इच्छाओं से छूट सकता है,

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