Tuesday, February 2, 2016

चोरी --२८१ --२९० तिरुक्कुरल

चोरी --२८१ --२९० तिरुक्कुरल 
 १.  जो अपने को श्रेष्ठ और सम्मानित बनाना चाहते है ,उनको अपने मन में चोरी करने को  स्थान देना नहीं चाहिए.


२. दूसरों की चीज़ों को चोरी करने  की बात सोचना भी अपराध है;


३..चुराकर धन जोड़ने पर एक दिन ऐसा वक्त आएगा , चोर  का  सर्वस्व लुट जाएगा.


४.चुराने की इच्छा  से असीम दुःख होगा.

५. जिसे के मन में चोरी करने का  विचार है,उसके मन में ज़रा भी दया या करूणा नहीं रहेगी.

६.. चोरी करके जीनेवाले मितव्ययी नहीं  होंगे.

७.आय के अनुकूल  जो जीना चाहते हैं ,उनमें चोरी का बुरा गुण  नहीं रहेगा.

८.ईमानदारी का मन धर्म पथ पर चलेगा; ठग या चोर का मन चोरी करने को ही सोचेगा.

९. चोरी  को ही अपनाकर  जीनेवाले जल्दी बरबाद  हो जायेंगे.

१० .चोर को खुद उसके प्राण घृणा करेंगे; ईमानदारी को देव -देवता भी प्रेम करेंगे.

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