हमें जमाने के साथ चलना है।
हमें समाज के साथ चलना है।
हमें समय के साथ चलना है।
हमें दोस्ती निभाना है।
हमें रिश्ता निभाना है।
हमें सत्य पथ पर चलना है।
हमें ईमानदारी निभाना है।
हमें कर्तव्य करना है।
अपने देश ,अपनी भाषा से प्यार करना है।
कया हम कह सकते हैं भ्रष्टाचारी करो।
रिश्वत लो। असत्य बोलो।
अन्याय करो। अनियायी भी नहीं कहेगा।
अत्याचार करो। अत्याचारी भी नहीं कहेगा।
खून करो खूनी भी नहीं कहेगा।
इसीलिए नश्वर संसार भी अनश्वर है।
पापी दनिया में पुण्य बचा है।
प्रदूषण में सफाई| है।
नमक| का दारोगा श्री मुंशी प्रेमचंद की कहानी है।
पिताजी नैकरी की तलाश में है।
पिताजी समझाते हैं--
मासिक वेतन पूर्णिमा का चाँद है। ऐसी नोकरी ढूँढो
जिस में ऊपरी आमदनी मिलें।
दारोगा पद मिलता है। असत्य के पक्ष में वकीलों का तांता है। अराधी छूट जाता है।
न्याय को दंड। फिर वह काले व्यापारी
दारोगा से मीलता है । अपनी सारी संपत्ती का स्थाई मैनैजर की नियक्ति। अपनी संपत्ति भलै ही अन्याय की कमाई हो सुरक्षा के लिए ईमानदार कर्तव्य निष्ठ आदमी ही चाहता है।
इसलिए सत्य और धर्म मार्ग की बधाइयाँ। ।
मोदकप्रिय विघ्नेश.
पंचामृतप्रिय पलानीश्वर.
प्रियअलगअलग तभीहोतोआनंद.
तुलसीप्रिय विष्णु.
बिल्वप्रिय शिव.
जन रक्षक राम
जनरंचक कृष्ण.
शालीन मेंअशालीनक्या?
सोचा साहित्यमेंश्रुंकार को
क्यों कहते हैं रसराज.
विद्यावती काविपरीतरति,
कामायनीका अधखुला अंक
नीलपरिधान बीच
इसकाहैअपनाविशेषअलग.
विचारप्रकट करनेमें नरोक
अश्लीलता हटाने-मिटाने
हर एक का अपना अधिकार.
मनुष्य है,पशुनहीं
कुत्तोंसागलीमें पीछा करने.
साहित्य हैसंयम सिखाने.
साहित्यहैं अनुशासन सिखाने.
साहित्य हैइश्कसिखाने.
साहित्यहै दान-धर्म सिखाने.
सुखान्तहै साहित्य.
मोहान्ध मिटाने साहित्य.
अहंकारमिटाने साहित्य.
आनंद देने साहित्य.
काम-क्रोध-लोभमिटानेसाहित्य.
नश्वरजगतमेंअनश्वर दिखानासाहित्य.
दानव कोमानवबनानासाहित्य.
इनसबका महत्त्व जनकहैं साहित्यकार.
लौकिकता मेंअलौकिकतालाना
साहित्योद्देश्य.
सुप्तगँवार जनताको
जगाता आदर्श साहित्य.
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