Friday, September 1, 2017

साध्य नहीं है


सुप्रभात.
मनुष्य को अपने को
अति शक्तिशाली
 सोचना गलत है.
बिना भगवान की कृपा  से
कुछ भी कोई भी
साध्य नहीं  है.
प्रयत्न ये न होगा.
बार ही पडेगा.
करुणानिधि  के अत्यंत प्रयत्न,
उनके स्वयंसेवक  के प्रयत्न
सब कुछ होने के बाद भी
जयललिता की जीत. उनके  पैरों पर पडे.
फिर शशिकला  के पैरोंपर.
दिनकर का प्रयत्न.
पन्नीर शेल्वम का पतन.
खान वंश का गांधी वंश बनना.
सीता की जंगल में जाना.
प्रबल सन्यासी पर कलंक,
ऐसे सब को नचानेवाले भगवान की कृपा
और रक्षा पाने प्रार्थना  करेंगे.
 अल्ला ईसा, शिव विष्णु शक्ति को
 पूर्ण रूप में समझकर, जानकर,

स्पष्टता प्राप्तकर्ता मनुष्यता,
 सत्य, ईमानदारी के मार्ग पर
कर्तव्यनिष्ठ होकर जो मनुष्य चलता  है,
 उसके आत्म संतोष,
अात्म आनंद ,
आत्म शांति,
  सब मिलते हैं.

மனி தன் தன் னை  மி கவு ம் ஆற்றல
மி க்கவன் என்று  நி னை ப் ப து  தவறு.
இறைவ னி ன்
அரு ளி ன் றி  எதுவும்
சா தி க்க மு டி யா து .
முயற்சியா ல் மு டி யா து
தோல்வி யே.
கரு ணா நி தி  அவர்கள் மு யன் று ம்
ஆழ் மன தொண்டர்கள் முயன்று ம்
அம்மா  வெ ற்றி.
கா லி ல்  வி ழு த்தர்கள்
சி ன்னம் மா   காலி ல்.
சின்னம்மா  சிறை யி ல்.
தி னகரன்  மு யற்சி
பன் னீ ர் வீ ழ்ச் சி.
பி ரபல சா மி யா ர்  களங்கம்
அனி தா  தற்கொலை
கா ன் காந்தி  ஆனது
சீ தை  கா னகம்
என எல் லோ ரை யு ம்
ஆட்டு  வி க்கு ம்  ஆண்டவன்
 அரு ள் பெற  வணங்கு வோம்.
அல்லா  என்றா ல்
ஏசு  என்றா ல்
சி வன் வி ஷ் ணு
சக்தி  என்றா ல் மு ழு மை யா க
அறி ந்து  தெரி ந் து    பு ரி ந்து
தெ ளி ந்து  மனி த நே யத் து டன்
சத் தி ய வழி யி ல் கடமை ஆற்றும்
மனி தர் ளு க்கு  மன நி றை வு,
மன மகிழ்ச்சி  மன அமை தி  நி ச்சயம்.

Monday, August 28, 2017

నారీ సత్తాత్మక్ - नारी सत्तात्मक

नर-नारी की बातें , 
प्रेम -इश्क -मुहब्बत की बातें 
कविता के मूल समझ 
रचना करना ही सही समझना 
कहाँ तक सार्थक है पता नहीं.
नारी का कठपुतली समझ
उसके अपहरण में ही वीरता,
बाल विवाह , सति प्रथा.
जवाहर व्रत , कितने अत्याचार .
सब केवल एक मान -मर्यादा के लिए .
पतिव्रता के सम्मान के लिए ,
नारी को दुर्बल बना रखे थे पूर्वज.
पढना मना, हँसना मन , खिड़की से झाँकना मन .
मुग़ल आये तो पर्दा प्रथा आयी ,
साथ ही तलाक का मन माना ;
बहुविवाह न केवल मुगलों में ,
हिन्दुओं में भी नहीं मना.
तमिल की एक कहावत हैं,
तोते से सुन्दर पत्नी के रहते ,
बंदरिया -सी एक रखैल रखना
बड़े-प्रमुख लोगों के लिए तो गौरव की बात.
अब ज़माना बदल रहा हैं ,
पुरुष कमज़ोर हो रहा है,
केवल पढाई लिखाई में ही नहीं,
कमाई में , और काम की शक्ति में.
युवा पीढी संयम भूल ,
अंग्रेज़ी सभ्यता के पीछे पढ़ ,
कथानक के नायक बनता बदमाश,
नायिका बनती पढी लिखी होशियार .
पर करती प्रेम उस नायक से जो खलनायक
बाद में बनता साद-नायक.
पुरुष को सतानेवाली नारियां,
तलाक के मुकद्दमे बढ़ रहे हैं.
ईश्वरीय दृष्टी में नारी कोमल,
पर अति चतुर.
आगे नारी सत्तात्मक राज्य ,
पितृ सत्तात्मक ख़तम.

Friday, August 25, 2017

हिंदी प्रचारक रीढ़ की हड्डी

ईश्वर करुण जी को जनसंपर्क अधिकारी का  पद  मिला  है. बधाइयां.दक्षिण हिंदी प्रचार सभा की रीढ़ की हड्डी प्राथमिक से प्रवीण  की परीक्षाएँ  न  उच्च शिक्षा और शोध संस्थान .


 पर उनके बयान में केवल उच्च परिक्षा और शोध संस्थान  का ही उल्लेख हैं ,
जिसमे अधिकांश छात्र तमिलनाडु के नहीं.
दूसरी बात है प्राथमिक से प्रवीण तक  कठोर मेहनत करके छात्रों की संख्या और सभा के नाम बढाने वाले सच्चे जनसंपर्क  की परीक्षाएं प्राथमिक से प्रवीण तक का  उल्लेख नहीं है .

आगे से इस पर  भी ध्यान देना है और प्रचारकों की सहूलियतें  और स्थायी प्रचारक की नियुक्ति पर भी  ध्यान देना चाहिए.
शोध संस्थान   में खर्च और छात्र संख्या और प्रचारोकों द्वारा मिलनेवाले नाम और आय पर  भी ध्यान देना है.
उच्च संस्थान का उद्देश्य हिन्दी प्रचार नहीं है. और उसमें नौकरी भी तमिलनाडु के हिंदी विद्वानों को नहीं मिल रही है. 

Tuesday, August 22, 2017

सत्य की चमक

क्या लिखूं ?
ईश्वर से प्रेरणा  न मिली ,
ईश्वर  से  संकेत न मिला
ईश्वर से ज्ञान  न मिला  तो
लिखूं  क्या?
हर बात के मूल में
आदी मूल है तो
यह नर तन का मैं
क्या लिखूं?
कहा  किसी ने करोड़  पति ,
पर  वहां एक बच्चा  पागल,
एक बड़े डाक्टर उनके बच्चे लंगड़ा
क्या लिखूं मैं
बगैर  उसकी प्रेरणा के
वज़ह हैं अनेक
संसार के सुख -दुःख का ,
यश -अपयश  का
हम हैं परेशान में
सत्य -असत्य के   मनुष्य जीवन  में ,
नश्वर जगत , चंचल मन , चंचल विचार
न जाने क्या बनता  है, बिगड़ता है
पर  वास्ताविलता के पहचान में
आरोप -प्रत्यारोप में
गलत्फह मियाँ  ही  ज्यादा .
भिखारी भी दुखी , बड़े पदाधिकारी भी दुखी
न चैन  मन , न खामोशी मन ,
दिल है तो कर सकते  हैं ,
दिल में बल है सुविचार .
सद्विचार , सत्कर्म ,सत्संग
पनपते  कहाँ ?
राजनीति में  सोचा  नहीं .
आध्यात्मिक  परिवेश में
वह  भी नहीं ,
शिक्षित समुदाय में
वह भी नहीं ,
कहीं भी नहीं तो
ईश्वर  सत्य को ऐसे बनाया ,
वह बीच , उसके इर्द गिर्द
घू मते हैं , भ्रष्टाचार ,मोह म मद , माया, ममता
लाल पन्नों के रूप में ,
बाह्याडम्बर के रूप में ,
निथ्यादाम्बर के रूप में ,
तस्करी के  रूप  में ,
फिर भी सत्य की चमक
चमकते सत्य  महिमा मानते हैं सब .
यही ईश्वरीय लीला -क्रीडाएं .

Thursday, August 17, 2017

हिंदी प्रचारक

अहिन्दी क्षेत्र खासकर 
तमिलनाडु के प्रचारक 
उनको प्रोत्साहित करने ,
युवकों को हिंदी प्रचार में लागने चाहिए 
नयी शक्ति . 
वर्ष है यह सभा के शदाब्दी वर्ष
कुछ करना है हिंदी प्रेमियों को
न वहां राज्य सरकार से प्रोत्साहन ,
न केंद्र सरकार से ,
खुद अपने परिश्रम और आमदनी से कर रहे हैं प्रचार.
मुफ्त में कुछ लोग , पैसे लेकर कुछ लोग
अन्यान्य कामों के बीच हिन्दी के प्रचार में ही लग जाते,
न पूर्ण कालीन हिदी के सहारे जीने वाले प्रचारक,
न यहाँ हिंदी में जीविकोपार्जन का मार्ग
फिर भी लाखों की संख्या में हिंदी के चाहक
कम से कम करें प्रशंसा के प्रोत्साहन.
अहिन्दी लेखकों को भी दें प्रोत्साहन.

जिओ जीने दो.

मनुष्य पढता है ज्यादा,
सुनता है ज्यादा ,
सुनाता है ज्यादा ,
दया की बात,
परोपकार की बात ,
दान की बात .
इंसानियत की बात -पर
करता है सब विपरीत.
सीमा जैन सयुक्त राष्ट्र संघ में
बालिका की अभिव्यक्ति
हर कोई खामोश, किसी किसी की आँखों में आंसू,
क्या हमारे आगे की पीढियां तितलियाँ देखेंगी ,
गौरैया देखेंगी , भारत में झीलें देखेंगी .
मनुष्यता का छाप देखेंगी ,
भारतीय भाषाएँ जानेंगी ,या
प्राकृतिक , अपभ्रंस , मैथिलि ,संस्कृत सम शिलालेख देखेंगी .
बंगाल में स्वतंत्रता दिवस मनाने में रोक,
जम्मू कश्मीर में इकहत्तर साल आजादी के बाद भी
५०० में ही देश भक्ति,
क्या यह मोदीजी की गलती या पूर्व शासकों का द्रोह
अब युवकों को आ गया सोचकर कदम बढाने का वक्त.
जिओ और जीने दो.

Monday, August 7, 2017

अंग्रेज़ी जानो अर्थ के लिए /सार्थक के लिए.

हिन्दी प्रेमी समुदाय ,
ह्रदय से जुड़ते हैं ,
अर्थ को अर्थहीन समझ
बिताते हैं सार्थक जीवन.
शुद्ध हिंदी, अंग्रेज़ी से दूर,
मतलब है अर्थ के आडम्बर नहीं,
अर्थ क्या चंचल बूढ़े की पत्नी ,
रहीम ने कहा,हम ने सोचा मुगलों का व्यंग्य.
सच मुच लक्ष्मी मातृभाषा से दूर,
अँगरेज़ के पीछे छलती है,
चलना -छलना में उच्चारण भेद ,
उछलती -कूदती आश्रमों में धन भी अंग्रेज़ी
भाषण से बरस रहा है,
अतः बढे बढे आश्रम के आचार्य
कम संस्कृत , कम मातृभाषा, अधिक अँगरेज़
अर्थ तो बढ़ रहा है , पर युवा पीढी
अर्थहीन जीवन की और ही संस्कृति
प्रेम विवाह , तलाक , मधुशाला,पर
नारी को तंग की आह्वान समझ रहे हैं,
आतंक है भविष्य में न रहेगा परिवार.
न रहेगा स्त्री मोह , न रहेगा प्यार का घुमाव.
कुत्ते के पिल्लै जैसे लेंगे बच्चे बाज़ार से ,
शुक्ल दान बैंक से गर्भ धारण .
विज्ञान की तरक्की , अंग्रेजों का शान
ले जा रहा है अज्ञान की और.