Tuesday, February 20, 2018

पाप की सजा

पाप की सजा
पाप  की  मात्रा,
जन्म फल, कर्म फल के हिसाब से
माफी या दंड .
 सबहीं नचावत राम गोसाई  का 
उपन्यास  पढिए.

.  एक खूनी साफ साफ बच जाता है.
   उस का बेटा गृह मंत्री  बनता है.
  एक निरपराध  को दंड मिल जाता है.
  दशरथ वेदना में तडपकर मरते हैं.

 अनजान गल्ती से शाप का पात्र बनता हैं.  कर्ण  की सजा,  
 माँ का त्याग,
 कबीर की जीवनी,

सबहीं नचावत राम गोसाई. मोहनदास करमचंद की हत्या,
इंदिरा गांधी की हत्या,
 संजय की  मृत्यु,,
 राजीव की हत्या
कर्म फल या जन्म फल.

 नगरवाला, यल .यन.  मिश्रा ,
 पुलिस अफसर की हत्या,

 शाहजहाँ  का कारावास,
अशोक हत्यारे का महान
अशोक बनना,

सबहीं नचावत राम गोसाई.

आत्म मंथन

हमारा आत्म मंथन  ,खुद को सुधारता है,
सामाजिक आत्ममंथन
कभी कभी  बंदर -गौरैया

कहानी बन जाती है.देश भक्तों की आत्म मंथन
त्याग का मार्ग दिखाता है.
सांसद - वैधानिक के आत्म मंथन

आधुनिक काल  में  बदमाशी,
भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोरी
न जाने कितनी बातें 
 युवकों को बिगाड  देती.

चित्रपट के मंथन सेयुवक पहले बदमाशी, 
खूनी, बलात्कारी,
मध्यावधि   के बाद
खुद कानून हाथ में ले

पुलिस, सांसद, मंत्री, न्यायाधीश ,
सब को  अपने   नियंत्रण  में.
युवकों में  बुरा प्रभाव.
 यों ही  विचार मंथन व्यक्तिगत सुधार या बिगाड के मूल में.

Sunday, February 18, 2018

आज के चिंतन

कल मैंने प्रेम , नफरत ,और कुछ चिंतन जो आये लिखे हैं. उनके चाहकों को , प्रशंसकों को मैं आभारी हूँ . धन्यवाद प्रकट करता हूँ.

________आज के चिंतन__

मनुष्य क्यों असंतोष , दुखी ,नाखुशी , अशांत हैं ,
इन पर आज जो विचार आये ,
हर मनुष्य की सृष्टि में ,
ईश्वर ने सुख-दुःख ,पद ,
अधिकार , कर्तव्य आदि
लिखकर ही पैदा करता है.
मनुष्य की बुद्धी भी उसीने पहले ही
भरकर भेजता है.
कला संगीत ,नृत्य ,भक्ति ,
भी जन्मजात है.
प्रायः हम कहते सुनते हैं ,
मेरा बच्चा जन्म से गुन - गुनाते रहते हैं .
मेरा बच्चा हमेशा औजारों से खेलता है.
मेरा बच्चा कुछ न कुछ चित्र खींचता है.
मेरा बच्चा गणित में रूचि दिखाता है.
मेरा बच्चा वैज्ञानिक विचार में है,
मेरा बच्चा चालाक है,
मेरा बच्चा चतुर है ,
मेरे बच्चे को झूठ बोलना पसंद नहीं हैं .
मेरा बच्चा झूठ ही बोलता है, चोरी करता हैं ,
भगवान की प्रार्थना नहीं करता.
मेरा बच्चा किताब लेकर पढता रहता है.
मेरे बच्चे को राजनैतिक विचार है.
मेरे बच्चे को अभिनय आता हैं ,
भाषण देता है ,
यों ही बच्चपन में ही
अहंकार, क्रोध , ईर्ष्या , प्रतिशोध ,सेवा भाव ,
अधिकार ,आज्ञा आदि गुण-भाव मालूम हो जाते हैं .
जन्म से रोगी को देखते हैं ,
असाध्य रोगी को देखते हैं ,
जवानी में कमजोरी , संतान हीन लोगों को देखते हैं .
शादी पत्नी या पति में राक्षसी गुण देखते हैं ,
कामुक देखते हैं , छद्मवेशी देखते हैं ,
सन्यासी देखते हैं ,
विभानडक ने अपने पुत्र को
ब्रह्मचारी ही देखना चाहते थे ,
पर सहज ही वह स्त्री के मोह में
पड जाने की दशा होती हैं ,
बुद्ध को सन्यासी से बचाने की
बड़ी कोशिश की गयी.
पर असंभव ही रहा.
रत्नाकार ,तुलसी, दास , मूर्ख कालिदास ,
तमिल के स्त्री कामान्धाकार अरुण गिरी
,अशोक आदि अपने बुरे गुण तजकर
लोक प्रिय बन गए.
जनता उनके बुरे कर्मों को भूलकर
आदर- सम्मान की दृष्टी से देखते हैं.
जन्म से लिखी भाग्य रेखा को
बदलने की शक्ति किसी में नहीं.
ईसा को शूली पर चढ़ना पड़ा.
मुहम्मद को पत्थर की चोट सहनी पडी.
इंदिरा ,राजीव को निकट से ही ह्त्या हुयी.
दुर्घटना में अल्पायु में मर जाते हैं .
यों ही समाज के चालू व्यवहार के
अध्ययन करें तो
पता चल जाएगा--;
सबहीं नचावत ,राम गोसाई.

Friday, February 16, 2018

नफरत

नफरत


नफरतें
_____________

प्रेम के अति
आनंद के रहते ,

नफरत क्यों ?

दुखप्रद चीज़ों से 
नफरत.
बदबू से प्रेम.

क्रोध करने से नफरत .

बुराई करने से नफरत.

नफरत इसलिए भी हैं ,

अच्छे लोगों के नाम से नफरत.

चोर को पुलिस से नफरत .

नक़ल करनेवाले  छात्र को
अध्यापक से नफरत.

शासित दल की योजना ,
बढ़िया होने पर भी
विपक्षी दल के   नफरत .
मजहबी नफरत ,

जाति-सम्प्रदाय के कारण
 नफरत
काले -गोर रंग के कारण
नफरत.
अमीर को गरीबों से ,
गरीबों को अमीरों से ,
नफरत .

बिना   कारण के भी नफरत.
नफरत -घृणा क्यों?
मानसिक -शारीरिक दुर्बलता ही
नफरत के मूल.

प्रेम.

प्रेम.
    प्रेम  देखते  ही प्रेम,
    मानसिक प्रेम ,
    शारीरिक  मोह .
     स्वार्थ प्रेम ,
    निस्वार्थ प्रेम
     देश प्रेम ,
      देश -  भाषा प्रेम,
     धन   प्रेम ,
      दान प्रेम ,
      धर्म प्रेंम,

   क्षेत्रीय प्रेम .
   विश्वप्रेम.
 सिर्फ भारतीय  में  है --
 विश्व  बंधुत्व  विश्व प्रेम है.

Sunday, February 11, 2018

भाग्यवान

मैं हूँ एक भाग्यवान --

कैसे ?क्यों ?कहते हो ;

पूछेगा कोई तो

 मेरे उत्तर निकलेगा यों ही ---

मैं हूँ तमिलनाडु का
एक हिंदी प्रचारक;

मेरी माँ गोमतिजी
एक हिंदी प्रचारिका.
हम है प्रचारक तीव्र
 उस समय के ,
तब हिन्दी विरोध के कारण
जल रही थी गाड़ियाँ;
राजनैतिक चाल-छल में ,
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की नींव हिल रही थी;
तब मेरे हिंदी क्षेत्र प्रवेश;
महात्मा मोहनदास करमचंद गांधीजी की
दूरदर्शिता
 महान विभूति कीआस्था में

हम भी गिलहरियों के समान
हिलते नींव को
मज़बूत बनाने में
सैकड़ों छात्रों के कंकट जोड़
 डाल रहे थे;
मेवा मिले या न मिले ,
सेवा करें तो मिलेगा संतोष;

मेरी नियुक्ति भी एक स्कूल में हुई ,

आन्दोलन के उस भयानक स्थिति में ,

हिन्दी अध्यापक के रूप में ,
जब मेरे अन्य सहपाठी थे बेकार;
हिंदी द्वि भाषा सूत्र के कारण
पाठशालाओं से तो चली ,
पर मेरे घर में तो छात्र संख्या बड़ी; बढी.

सेवा तो शर्त के अनुसार बिलकुल मुफ्त ;

एकसाल -दो साल में मिलती

एक अध्यापक विद्यालय अनुदान;

मैं और माँ भूखा -प्यासा प्रचार में लगे तो

एक आत्म -संतोष; आत्म -शान्ति -आत्म -सम्मान;

जहां भी शहर में जाए
कोई न कोई कहता "नमस्ते जी;
उस समय का वह आनंद
ब्रह्मानंद सा लगता;
प्रचार छोड़ चेन्नई में वेस्ली स्कूल में
 हिन्दी अध्यापक की नौकरी मिली
मेवा तो मिला ,सेवा सम्मान तो नहीं;
इसीलिये मैं भाग्यवान हूँ .

सत्याग्रही आचार्य जो मद्रास सभा के प्रबंधक थे
उनके द्वारा सूचना मिली ;
पांडिच्चेरी शाखा में हुई मेरी नियुक्ति;
आठ महीने की नौकरी
इस्तीफा करके चला
मेरे शहर पलनी को ;
भगवान ने भागीरथ प्रयत्न करने पर भी
भगा दिया चेन्नई;
वेस्ली स्कूल के चार साल की नौकरी आराम से बीता;
स्कूल जाता; छात्र बंद; स्कूल बंद ; वेतन पक्का ;
तब से श्री वेंकटेश्वर जी ,तिरुमलै बालाजी की पूरी कृपा मुझपर लग गयी;
वेस्ली के शेल्वादास जो बी;टी ;विज्ञान के मुझे एम् .ए;पढने की प्रेरणा डी;
सौ रूपये छूट परीक्षा शुल्क सहित ,
दो सौ रूपये में एम् .ए;

मेहनत करने की शक्ति
,बुद्धी दोनों दीं भगवान गोविन्दजी ने;

तभी स्कूल में हायर सेकंडरी का परिचय;
एम्.ए के  परीक्षा फल  के आते ही
 हिन्दू स्कूल में स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक;

फिर क्या एक भाग्यवान प्रचारक केलिए;

मैं जितना हो सके उतना सत्य का पालन किया .

भले ही लौकिकता के कारण
कुछ झूठों को साथ देना पड़ा;
हिन्दू एजुकेशनल आर्गेनाईजेशन एक मामूली संगठन नहीं,

बड़े तीव्र मेधावी अटर्नी जनरल परासरण समान दिग्गज
 न केवल ज्ञान के
लक्ष्मी के वर-पुत्र ;
सत्कैंकर्य शिरोमणि एन.सी राघवाचार्य ,
प्रतिभाशाली वकील अध्यक्ष थे .
प्रसिद्ध ऐ/ए/एस/  ऐ.पि. एस ., सदस्य सचिवगण;
ऐ.ये.यस . बी. एस. राघवन .एम्.ओ .पार्थसारथी ऐयांगार ,
डाक्टर  गणेशन , सीनियर एडवोकेट   एम्.ये. राजगोपालन
आदि  .केवल यही नहीं , सिल्वार्तंग श्रीनिवास शास्त्रियार
प्रधान अध्यापक पद पर थे.

अध्यापक संघ की ओर से हर साल बालाजी दर्शन;

मेरे सह -अध्यापक कितने मिलनसार ,
कितने सहृदय दानी ,मित्रता के प्रतीक
उस संस्था ने मुझे प्रधान अध्यापक पद पर बिठा दिया;

हम मद्रास शहर के दो प्रचारक पि.एस .चंद्रशेखर ,सनातन धर्म स्कूल के
और मैं हिन्दू हायर सेकंडरी के दोनों को
 अपने दायरे में उच्च पद मिला;

हिन्दी प्रचारक --हेडमास्टर कौन पूछेगा या सम्मान देगा ;

 मैं भाग्यवान -सभा ने सम्मान दिया;

मद्रास प्रचारक संघ ने दिया ;
भले ही हम दूर रहे ;
अब कहिए-- मैं भाग्यवान इसलिए हूँ -
मैं एक हिंदी प्रचारक मामूली.

jay javaan jay kisaan




— thinking about the meaning of life.