Thursday, February 22, 2018

भारत आजादी के बाद

भारत देश के युवक
और जन -संपर्क साधन
आजादी  के  बाद
इतने गिर गए ---

शहीद भगत सिंह की याद नहीं ,
सुखदेव की याद नहीं ,
राज-गुरु की याद नहीं,
संयम नहीं ,प्रेम दिन के नाम से 
सार्वजनिक स्थानों पर चुम्बन , आलिंगन ,
अश्लील लीलाएं,
पशु से गए गुजरे हैं .
पाश्चात्य शिक्षा का असर .

सपना

सपने होते हैं अनेक .
नींद में स्वप्न ,
निष्क्रिय बैठकर स्वप्न ,
कोई देवता या साधू
या
सिद्ध पुरुष की आशीषें मिलें,
कोई मन्त्र की छडी मिलें,
ईश्वर का वरदान मिलें.
ऐसे सपना साकार होना
भाग्य की बात हैं.
किसी किसी को जन्म से ही
कुछ बनने ,
समाज की भलाई करने का
ज्ञान मिलता रहता है;
आदि शंकराचार्य ,रमण महर्षी दोनों
बचपन से ही जगत कल्याण ,मुक्ति ,
ईश्वर की महिमा में
लग गए ,न उनको धन कमाने की चिंता ,
न कार ,बंगला की चिंता ;
केवल लोक कल्याण ,
जन कल्याण.

धन्यवाद

हिंदी प्रेमियों ! हिंदी मुख पुस्तिका दोस्तों !
सब को मेरा प्रणाम.
आप सब हिंदी प्रांत के कवि ,लेखक ,हिंदी के पारंगत
मेरी तुतली टूटी -फोटी ,तोड़ -मरोड़ हिंदी 
अभिव्यक्ति की चाह की हैं ,तारीफ की हैं ,प्रेरित और प्रोत्साहित किया है सबको विनम्र नमस्कार! धन्यवाद /शुक्रिया.
खासकर निम्न लिखित हिन्दी मुख-पुस्तिका दल के दोस्तों को .
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व्यक्तिगत मित्र :-
डाक्टर राम शंकर चंचल
गोपालदास गुप्ता रेज़ा
सरन घई
गोपाल दस गुप्त
श्री प्रहलाद वन माली
ईश्वर करूण
नंदिता दस
अनिता मल्होत्रा सोनी
सबको पुनः सादर प्रणाम.

सपना

सपना /स्वप्न / होते हैं 
कई तरह के. 
दिवा सपना साकार होता नहीं, 
तडके के स्वप्न का 
होता है फल. 
सपन को कार्यान्वित करने
परिश्रम कठोर करने की आवश्यकता है.
कितने आविष्कारक हुए जग में
अग जग के कल्याण के लिए.
अघ जग अलग, वे हैं गरीबी में,
आविष्कारकों के सपने साकार होने
धन कमाना है आवश्यक.
तभी बनता है अघ जग.
भ्रष्टाचारी / रिश्वतखोरी / हतयारे/ आतंकवादी.
यह धन का सपना पाप की कमाई.
पुण्य की कमाई भाग्यवानों के लिए.
न राजा, न मंत्री, न सांसद न विधायक न अधिकारी
पाप की कमाई से जग को अघ जग ही बना देते.

धोखा

धोखा /ठगाना भी कहते हैं ;
धोखा देना /धोखा खाना 
दोनों में दया के पात्र 
धोखा खानेवाले हैं,
पर धोखा देनेवाले 
अति चतुर होते हैं ;
चतुर लोग भी धोखा खाते हैं.
ऐसे लोग हँस मुख होते हैं.
मधुर वचन बोलते हैं,
क्रोध न करते हैं ,
देखने में भोले भाले होते हैं .
उनका अभिनय ऐसा हैं ,
चेहरे ऐसे हैं ,
उनपर दया आती हैं ,
चतुर भी धोखा खाते हैं.
हार की जीत ,
सुदर्शन की कहानी .
साधू के घोड़े को
डाकू खड्ग सिंह
रोगी के छद्म वेश में
ले लेता है.
धोखा देता हैं.
तब साधू बाबा उससे
कहते हैं --मेरे प्रिय घोड़ा तुम्हीं रख लो .
पर किसी से न कहना --
रोगी के वेश में ठगा है;
क्योंकि कोई भी दुखी को
मदद न करेंगे.
यह तो कहानी ही रह गयी;
अब पता माँगकर ,चोरी करते हैं;
बिकुत देकर धोखा देते हैं.
मदद देकर धोखा देते हैं .
तमाशा दिखाकर धोखा देते हैं.
दस रूपये नोट नीचे डालकर
लाखों रूपये चोरी कर लेते हैं.
भगवान के नाम , प्रायश्चित के नाम भी
धोखा देते हैं;
किसी कवि ने लिखा है -
कदम कदम पर फूँक=फूंककर चलना है;
दुनिया तो अजब बाज़ार हैं.
सिनेमा का गाना याद आती है -
धोखा शब्द पढ़ते ही ,
हरे भाई ! देखते चलो,
दाए भी नहीं ,बाएं भी नहीं ,
ऊपर भी नहीं ,नीचे भी .
आगे भी नहीं ,पीछे भी .
पग -पग पर सतर्क चलना है.
चुनाव धोखा देने का परिणाम है.
उनकी होशियारी हैं ,
पिछले चुनाव के वादे को
नया जैसा बताना.
शासक दल न करते ,
विपक्षी दल आरोप लागाते
हमें चुनो, पूरा करेंगे.
पर वादा न निभाते,
पक्ष-विपक्ष दोनों ऐसे ही
ठग ते हैं , चाँदी के चंद टुकड़े लेकर
मत दाता भी उन्हीं के पिछलग्गू बनते हैं.
ठगने /ठगाने मत दाता तैयार.

मानव अद्भुत सृष्टि

कुछ न कुछ
लिख सकते हैं,
क्या लिखना है,
वही सोच.
तभी याद आई-
शीर्षक समिति का
एक शीर्षक.
प्रेरित गीत.
निराश मन बैठा तो
कबीर अनपढ की प्रेरित
देव वाणी याद आई.
जाके राखै साइयाँ,
मारी न सके कोय.
हाँ, भगवान ने मेरी सृष्टि की है.
जरूर उनकी कृपाकटाक्ष मिलेगी ही.
गुप्त जी की याद आई
नर हो, न निराश करो मन को,
हाँ मैं नर हूँ,. सिंह हूँ,
शेर हूँ, सियार हूँ, भेडिया हूँ,
हाथी हूँ, साँप हूँ, हिरण हूँ
सब पशु पक्षियों की तुलना
कर
जी रहा हूँ.
कोयल स्वर,
गरुड नजर,
उल्लू की दृष्टि,
मीन लोचन,
कमल नयन,
वज्र देह
ईश्वर की अद्भुत सृष्टि हूँ.
अद्वैत हँ.
अहं ब्रह्मास्मि,
मैं भगवान हूँ,
भगवान को नाना रूप देकर
खुद भगवान तुल्य बन जाऊँगा.
विवेक है, विवेकानंद बन सकता हूँ.
आदी शंकराचार्य बन सकता हूँ.
खारे पानी को मीठे पानी
बना सकता हूँ,
पंख हीन , पर
आकाश में उड सकता हूँ.
उमड़ती नदी को बाँध
बनाकर रोक सकता हूँ.
मैं मानव हूँ,
अद्भुत सृष्टि हूँ.

भारत में पट कथा

बाह्याडंबर से मध्यवर्ग 
उठाते है कष्ट 
चित्रपट गया, सौ रुपये में 
गन्ना रस, दस रुपये के छोटा सा टुकडा, 
बाहर पच्चीस, वहाँ अंदर सौ. 
पुलिस, अधिकारी अन्य विभागियें को
वी ऐ पी पास,
बाह्याडंबर का बातें
मुझे विवश होकर नाते रिश्तों के संतोष
ते लिए जाना पडा.
वाहन खडा करने एक घंटे के तीस रुपये.
तीन घंटे बहार निकले चालीस मिनट.
चार घंटे के लिए 120.
हीरो बदमाश कई बलात्कार, हत्या के बाद
हीरोइन से मिलना, सुधरना, .
पुलिस अन्यायी, वकील न्यायाधीश अन्यायी
मंत्री राजनीतिज्ञ अन्यायी,
हीरो के हाथ में न्याय की रक्षा.
न सरकार, न पुलिस,

आहा! भारत की रक्षा.