Tuesday, February 27, 2018

हरे कृष्ण

कन्हैया !तेरे गुण यशोगान
कैसे गाऊँ .
नाम स्मरण ही पर्याप्त
नारायण का प्यार प्राप्त .
हरे राम हरे राम , हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कुष्ण कृष्ण हरे हरे.
मुख में अग जग , माक्खन की चोरी ,
माँ से ठगने की बोली ,
दुष्टों का संसार ,
भक्तों का सन्देश ,
"सत्य बोल ,कर्तव्य कर ,
फल मेरे वश."
मानता नहीं कोई ,
करता मनमाना.
उठाता कष्ट तेरे मन जो माना .
हरे राम ! हरे कृष्ण ! हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ! हरे हरे .

हास्य

हास्य है तो
जीवन सदा आनंद है,
हास्य है तो मन में
स्वच्छ विचार है,
हास्य है तो तन मन में बल है,
ऐसी हँसी दुखप्रद है,
जिसमें व्यंग्य हो,
जलन हो, पीडा हो.
क्रोध और बदला का भाव उठे.
स्वस्थ हँसी चाहिए
जिससे सब के दुख नदारद हो.
घमंड की हँसी,
नाश की ओर.
हास्य रस ऐसा हो
जिससे हास्य ही प्रधान हो,
जिससे केवल हँसी नहीं,
दर्शन का भी स्थान हो.
स्वरचित अनंतकृष्णन द्वारा

Thursday, February 22, 2018

क्या होगा मानव हाल

नींद नहीं आ रही है,
नाते -रिश्ते की गलतफहमियाँ ,
ईर्ष्या , बदला ,घृणा ,
खुद नाश होनेवाला मनुष्य
खुश खोकर दुःख ही दुःख झेलकर 
कफन ओड जलनेवाला या
कब्रिस्तान में कीड़े -मकोड़े के आहार .
कबीर का एक दोहा-
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे,
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदूगी तोहे ।
कहते हैं मनुष्य बुद्धिमान पर
न जानता है अपना अंत .पर
जानता है अंत होगा ही.
ऐसी हालत में इतना इठलाना .
इतने मनोभाव ,इतने क्रोध .
अगर मृत्यु नहीं तो
क्या होगा मानव हाल.

बुढापा पाकर खोकर मुक्ति.

जवानी दीवानी, 
बुढापे में बदल गया .
जिंदगी का यथार्थ दिख रहा.
क्या करें ?मन तो जवानी. 
अपने को ताकतवर
मानता रहता.
कितना इठलाता ,
अब किसका न रहा.
कहीं से गीत ..
जिंदगी और कुछ भी नहीं,
कुछ खोकर पाना है,
कुछ पाकर खोना है.
शैशव पाकर, खोकर बचपन.
बचपन पाकर खोकर जवानी
जवानी पाकर खोकर बुढापा
बुढापा पाकर खोकर मुक्ति.
स्वरचित अनंतकृष्णन द्वारा

मूक साधना

वाह ! माली जी श्री युक्त मालीजी !
नरसिम्ह प्रहलाद !
मूक साधना में 
जगत का कल्याण 
उज्जवलित.
सूरज न चमकते तो
उदर पूर्ती असंभव
जग की ,
सूर्योदय -सूर्यास्त ,
मध्याह्न ताप
आदी और अंत
आदी में कोलाहाल ,
अस्त में मधुर चहचहाहट,
फिर चुप चुप चुप.
सूरज ! अकेले दीखता है दिन में ,
रोशनी में तारे छिप छिप.
अदृश्य पर भरोसा नहीं ,
दृश्य पर भले ही मिथ्या हो ,
सत्य जानने मूक साधना.

कुछ कही ,कुछ अनकही बातें

मन मानता नहीं 
कुमन की बात।
सुमन तो सूख जाता है।
दमन के कारण।
वामन के रूप में धोखा।
बामन के रूप में धोखा।
माया मची संसार।
कुछ कही कुछ अनकही बातें।

कलियुग में आत्म चिंतन ,

जिन्दगी जीने के लिए ,
आधुनिक युवकों में 
कलियुग में आत्म चिंतन ,
आत्मानुभूति , आत्म विश्वा आदि 
कम हो रहे हैं. 
खुद मरना , दूसरों की हत्या करना ,
प्रेम करो ,न तो तू दुसरे के लिए भी नालायक बनो ,
तेज़ाब फेंकना , बलात्कार करना,
कितना न्याय सोचिये संभ्य स्नातक -स्नातकोत्तर
युवकों! आजकल आत्म हत्या की खबरें आती हैं ,
हत्या या आत्म हत्या संदेह प्रद हो गए.
चतुर , चालाक , बुद्धिमान , प्राकृतिक शक्ति को
नियंत्रण में रखने वाले युवकों को
ऐसी दुर्बलता कैसे और कहाँ से आयी ?
शिक्षा में अनुशासन की कमी ,
नैतिक बातों की कमी ,
वेतन भोगी अध्यापकों में तटस्थता की कमी ,
शिक्षा में अंक प्रधान ,
अंक पाने आम जनता घूस देने तैयार ,
ज्ञान हो या न हो प्रमाण -पत्र सब के हाथ.
योग्यता पात्र कितने ?
एक छात्र से पूछा , पैसे देकर प्रमाण पत्र ! क्या फायदा?
कहा उसने हमारे अनपढ़ दादा की संपत्ति देखिये,
और कई पीढ़ियाँ बैठकर खा सकते.
लडकी वाले लडकी देने
दहेज़ देते हैं प्रमाण पत्र के आधार पर.
हमारी परम्परागत संपत्ति के आधार पर.
हम तो छोटे बड़े व्यापार में लगें हैं.
नौवीं कक्षा पास हो , पढाई छोड़ो ,
एक लाख दहेज़.
यों ही प्रमाण पत्र, डिग्री बढ़ाता है दहेज़.
सोचता हूँ , क्या होगा समाज .
जितने कम पढ़े लिखे हैं ,
शिक्षा संस्थान चलाते हैं ,
उनकी योग्यता केवल अमीरी.
उनसे मिलने बड़े बड़े डाक्ट्रेट प्रतीक्षा कर रहे हैं .
ऐसे समाज में जीने की राहें , उम्मीदें ज्यादा है.
सोचिये , मरना, मारने के मनोवृत्तियाँ छोड़ दें.
मृत्यु तो निश्चित , क्यों खुद मारने - मरने के विचार
ईश्वर के नाम लीजिये , आत्मविश्वास बढ़ाइए.
ध्यान कीजिये , शान्ति मार्ग अपनाइए.