Thursday, August 9, 2018

वृन्द के दोहे --வ்ருந்தரின் ஈரடி

 ஹிந்தியில்   கபீர் ,துளசி ,ரஹீம் ,பிஹாரி லால், போன்று
விருந்தரும்   தோஹே   அதாவது  ஈரடி எழுதியுள்ளார் .

திருவள்ளுவரின்  திருக்குறள் போன்று இவர்களும்  அவர் போன்ற  கருத்துக்களை  ஈரடியாக எழுதி புகழ் பெற்றவர்.

இன்று  அவரின்  சில  ஈரடிகளைக் காண்போம்.

1.    எல்லோரும்  சுயநல  நண்பர்களே.
       சுயநலமின்றி  யாருமே இல்லை.
      கொக்கு ,நாரை   நீர் உள்ளவரை  தான்
      ஒரு குளத்தில் இருக்கும் .
      நீர் வறட்சி ஏற்பட்டால்
       அந்த  குளத்தை விட்டு பறந்துவிடும்.
             அவ்வாறே  நம்மிடம் இருந்து ஏதாவது கிடைக்குமா
     என்று எதிர்பார்க்கும்  நண்பர்களே  அதிகம்.
     வறுமையில்  உதவ வருபவர்கள் குறைவே.


2. நல்ல குணம்  இருந்தால் தான்
நமக்கு மதிப்பு.
   இயல்பான நல்ல குணம் ,
அழகு உள்ள கிளியை வளர்ப்போர் அதிகம் .
காகத்தை யாரும் வளர்க்கமாட்டார்கள்.
 அது  இறந்த முன்னோர்கள் போல் .
அது நகரத்தை சுத்தம் செய்யும் .
ஒருநாள் அழைத்து உணவு படைப்பர்.
அதன் குணம் சரியில்லாததால்
 மதிப்பு இல்லை.

3.கல்விச் செல்வம்  என்பது  கடின உழைப்பு,
கவனத்தால் வருவது.
நூல்கள் வாங்கி அடுக்குவதால்  ஞானம் வராது.
நூல்கள் பொருளுணர்ந்து படிக்க வேண்டும்.
விசிறி வாங்கினால் காற்று வராது.
அதை கையில் எடுத்து வீசினால் தான் காற்றுவரும்.அதுபோல் நூல்களை
 வாசிக்கவேண்டும்.
4.நல்லவர்கள் -கெட்டவர்கள் ஒரே மாதிரி
இனிமையாகப் பேசமுடியாது.
 வசந்தகாலம் வந்தால் குயிலின்
 இனிய குரலும்
காகத்தின்
 கர்ணகொடூரக் குரலும்
தெரிந்துவிடும்.
 நிறம் காகத்திற்கு குயிலுக்கு ஒன்றே.
ஆனால்  குரல் மற்றும் குணம்  வேறுபட்டதே.

5. எல்லோரும்  பலமுள்ளவர்களுக்கே
 உதவுவார்கள்.
 அதிகாரபலம் ,பணபலம் ,குணபலம் , ஞானபலம் ,உடல்பலம் ஆனால்  அதிகார பலம் , பணபலம் மதிப்பு மிக்கது.

காற்று நெருப்பை அதிகமாக பற்றவைக்கும்.
 காட்டுத்தீ பரவும் .
ஆனால்   காற்று விளக்கை  அணைத்துவிடும் .




आश्रम न तो मन की शांति नहीं।

संगम के दोस्तों को सादर प्रणाम।
बेहद आसमान सा बेहद भक्ति
भावावेश के आंसू ,
ब्रह्मानंद अनुभूतियां,
अंचल मन , अनासक्त जीवन एक ओर।
विरलास मय नशीला आनंद दूसरी ओर।
लौकिक अलौकिक जीवन
एक सकर्म प्रधान,दूसरा अकर्म ।
सकर्म प्रधान न तो आलीशान आश्रम नहीं।
आ लीशान आश्रम न तो मन की शांति नहीं।

पत्नी का कठपुतला

Good
இனி ய காலை வணக்கம்
morning
सुप्रभात.
 आज मैं क्या लिखूँ.
आत्मा की बात  या परमात्मा  की बात.
समाज की बात  या सांस्कृतिक बात.
राजनैतिक  बात या राष्ट्र  की बात.
शादी की बात  या साथी की बात.
संयोग  की बात या संभोग का बात.
विष्णु की बात या शिव की बात.

मजहबी बात या मनौती  की बात.
स्वस्थ  या अस्वस्थ  बात
फिल्मी बात या फिर की बात.
यों सोचते सोचते रात बीती.
जो़रू  की जोर  की आवाज़
बर्तनों  की आवाज़
बडबडाना की आवाज
जो कुछ सोचा,
क्या सोचा क्या सिखा
पता नहीं, उठा, दाँत साफ कर
काफी पी, लंबा भाषण सुना.
सब भूल  पत्नी का लट्टू, कठपुतला.
कल देखा जाएगा  कवि की कल्पना की बात.

Monday, August 6, 2018

विस्मय सनातन धर्म शक्ति।

हिंदू  धर्म अर्थात  सनातन धर्म  प्राचीन काल से
 दिव्य शक्ति के लिए अति प्रसिद्ध है.

हज़ारों  मंदिर  बनते हैं  तो
हर मंदिर के पीछे  की कहानियाँ 
अपूर्व ही नहीं ,
 शक्ति का प्रमाण  भी  है.
  ऐसे  ही मंदिरों में एक है   नाच्चियार कोइल अर्थात  नारायणी मंदिर।

  नरैयूर  तमिल शब्द है. एक गाँव का  नाम  है.
नरै  का मतलब है  शहद।
 तिरुमंगै याळ वार   ने लिखा  है --
  शहद  भरे  फूल ,
 सुगन्धित तालाबों से घेरे हैं
तिरुनरैयूर,   जहाँ  जाकर मैंने देखा
"श्री वेंकटेश्वर" को.
  इस   तीर्थ क्षेत्र  की कहानी अद्भुत हैं तो
 यहाँ के पत्थर के  गरुड़ की महिमा
अपूर्व अतिशय है.
महाविष्णु के भक्त है मेधावी महर्षि।
उन्होंने  चाहा कि  महाविष्णु ही अपने दामाद बने.
क्या  विष्णु भगवान को दामाद बनाना  सरल काम है?
 उन्होंने  मौलश्री पेड़ के  नीचे  बैठकर कठोर तपस्या की।
कठोर तपस्या के फलस्वरूप  फाल्गुन महीने के उत्तरा
नक्षत्र में  श्री देवी ही पुत्री के रूप में  पैदा हुई।
 जब  श्री देवी विवाह के योग्य बनी ,
तब महाविष्णु अपने वाहन
गरुड़ पर बैठकर  नरैयूर  पहुंचे।
श्री देवी से विवाह करने की इच्छा प्रकट की।

 तब पहली बार  मेधावी महर्षि ने  भारत में लड़की के पिता होकर भी
कन्यादान करने निम्नलिखित शर्तें रखीं :-
 विष्णु भगवान से  कहा ,
आप को हमेशा मेरी बेटी  की बात माननी चाहिए।
हर काम में उसीको प्राथमिकता और प्रधानता देनी चाहिए।
महाविष्णु  ने सहर्ष  महर्षि की बात  मान ली|
 गरुडाळवार  के  सामने  शादी हुई।
भगवान ने गरुडाळवार   से  कहा -
"तुम भी यहीं  रहकर भक्तों पर अनुग्रह कर"।

    अब  उस पत्थर के गरुडाळवार  की मूर्ती की विशेषता है कि
वही  उतसव मूर्ति  है.

उसको उठाते वक्त चार आदमी काफी है.
बाहर आते आते वजन बढ़ता रहता है.
और उठानेवालों की संख्या बढ़ती रहती हैं , वैसे ही
वापस आते समय भी,पर  मंदिर के  अंदर
चलते चलते उठाने वालों की संख्या  बढ़ती हैं,
पर मंदिर के अंदर जाते ही उठाने चार आदमी काफी हैं।
यही  इस मंदिर  की  बड़ी अतिशय विशिष्टता है.








Sunday, August 5, 2018

पूजा करने चली आई .

आध्यात्मिक मार्ग का मतलब है
बाह्याडम्बर रहित ईश्वर वंदना।
किसी के मन में धन के अभाव की चिंता उत्पन्न करना
वास्तविक आद्यात्मिक्ता नहीं है.
सुभद्राकुमारी चौहान जैसे kavita की प्रेरणा देना भक्ति नहीं है
देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं
धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं
मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं
मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लाई
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आई .

हिन्दू समाज

हिन्दू  समाज  में  एकता नहीं है.

मंदिरों में भी  उच्च वर्ग मंदिर ,दलित मंदिर,
पुजारी में भी नगर पुजारी।  ग्राम पुजारी।
मन्त्र रहित पूजा , मन्त्र रहित पूजा।
तमिलनाडु में संस्कृत अर्चना। तमिल अर्चना।
जब तक  ये भेद भाव हिन्दुओं में  प्रचलित रहेंगे ,
तब तक तीसरे  को लाभ होता  रहेगा।
चर्च गया वहाँ  नहीं लिखा गैर ईसाई प्रवेश  न करें।
पर मंदिर में गैर हिन्दू का प्रवेश मना  है.
इसके  मूल में विदेशों का मंदिर लूटना, डाका डालना , मूर्ति तोडना।
इसको  न  समझकर हिन्दू को अवहेलना हिन्दू के लोग ही करते हैं.
प्रार्थना  के विषय में भी मत भेद हैं.



Wednesday, August 1, 2018

अचंचल हो तो सुख ही सुख है.

आज श्री गणपतिसच्चिदानंद 
आश्रम में ध्यान में बैठा तो चंचल मन में कई प्रकार के विचार आये. 
क्या ये मंदिर, ये चर्च, ये मसजिद का संख्याओं बढाने से 
वास्तव में भक्ति का प्रचार हो रहा है या वाणिज्य प्रवृत्तियां बढा रहे हैं. 
कई प्रकार के आश्रम बाह्याडंबर से, 
आधुनिक सुख सुविधाएं से माया मोह धन लोलुपता
बढा रहे हैं या निस्पृह मानव सेवा की ओर जा रहे हैं.
जग की हर बात के दो पहलू है सत्य असत्य, भला बुरा,
जन्म मरण सुख दुख इन सब में माया मोह सद्यःफल की आशा, अतः मन गिरगिट के समान बदल रहा है.
लौकिक आशा में लोग अलौकिकता को भूल रहे हैं
एक आश्रम में ध्यान मग्न बैठने पर कहीं दूसरे आश्रम के चाहक या भक्त उसके मन पसंद आश्रम की श्रेष्ठता बताकर वहाँ से जाने का प्रयत्न करता है.
वैसे ही नये नये मंदिर का यशोगान करके मन बदल ने का माया पूर्ण नाटक चला रहे हैं.
माया भरी संसार में सर्वेश्वर की लीला अति सूक्ष्म है.
सूत्रधार वही है. वह मानव मन की स्थिरता अस्थिरता को तुला पर चलकर फल प्रदान कर रहाहै.
उसके अनुसार मानव जीवन में शांति अशांति, सुख दुख
बदल बदलकर आते हैं.
मन निश्चल, निश्छल, अचंचल हो तो सुख ही सुख है.